नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 12 जुलाई 2009

सायना नेहवाल

इंडोनेशियाई ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन चैंपियनशिप का खिताब जीतकर इतिहास रचने वाली 'वंडर गर्ल' सायना नेहवाल की नजरें इस वर्ष शीर्ष पांच खिलाडिय़ों में शामिल होने की है। उनका कहना है कि वह मैच दर मैच रणनीति बनाएंगी। सायना यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं। टूर्नामेंट में सायना ने विश्व की शीर्षस्थ खिलाडिय़ों को हराकर एक मुकाम हासिल किया है। पिछले साल बीजिंग ओलंपिक के क्वार्टरफाइनल तक का सफर तय करने वाली यह युवा खिलाड़ी निरंतर अपनी रैंकिंग में सुधार करती आ रही हैं। इंडोनेशियन ओपन जीतकर सायना ने यह साबित कर दिया कि आने वाले समय में दुनिया की दिग्गज महिला बैडमिंटन खिलाडिय़ों को इस भारतीय बाला से कड़ी टक्कर मिलने वाली है। हालांकि इससे पहले सायना सात खिताब अपनी झोली में डाल चुकी हैं। अपने कॅरियर की शुरुआत धमाकेदार तरीके से करने वाली इस खिलाड़ी ने पहला खिताब 2003 में चेकोस्लोवाकिया जूनियर ओपन जीतकर किया था। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रहीं। सायना विश्व की नंबर तीन खिलाड़ी वांग लिन को हराकर विश्व रैंकिंग में सातवें नंबर पर पहुंच गई हैं। 'भारतीय महिला बैडमिंटन की प्रकाश पादुकोण' कही जा रही सायना जिस प्रकार से सफलता की सीढ़ी चढ़ती जा रही हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में वह नंबर वन पर भी विराजमान हो सकती हैं। नंबर वन रैंकिंग के बारे में सायना का कहना है कि यह मुश्किल सही पर नामुमकिन नहीं है। 'देशबन्धु' से विशेष बातचीत में सायना ने कहा कि उनका ध्यान सिर्फ खेल पर है। जीत से गदगद सायना ने कहा कि इस प्रतियोगिता के लिए मैंने कड़ी मेहनत की थी, जिसका फल मुझे खिताब के रूप में मिला। मैं चैंपियनशिप जीतकर बहुत खुश हूं। उन्होंने कहा कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी जल्दी खिताब जीतूंगी। पिछले एक साल में सायना के खेल में गजब का सुधार आया है। इस दौरान उन्होंने आक्रामक शैली में बदलाव लाते हुए रक्षात्मक रूख भी अख्तियार करना सीखा है। झन्नाटेदार स्मैश के साथ डिसेप्टिव शॉट्स सायना की हमेशा से ताकत रही है। इस कड़ी मेहनत और लगन को देखकर बैडमिंटन प्रेमी उम्मीद कर सकते हैं कि वह विश्व खिताब पर भी कब्जा करने में सफल होंगी। सायना नेहवाल के स्वदेश लौटने पर उनसे विशेष बातचीत की 'देशबन्धु' के खेल संवाददाता कमलेश कुमार राय ने। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश... सबसे पहले आपको किसने बधाई दी? मैच खत्म होने के बाद मेरी मोबाइल की घंटी रूकने का नाम नहीं ले रही थी, उस समय मैं पुरस्कार दिर्घा में थी। वहां पर मोबाइल पर बात करना मना था। लगभग 4 घंटे बाद मैंने अपने पापा को फोन लगाया और उनसे बात की। मैं उन सभी प्रशंसकों को धन्यवाद करना चाहूंगी जिन्होंने उस दौरान मुझे फोन व एसएमएस किया। क्या आपने इंडोनेशियन ओपन के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित किया था? नहीं, मैंने केवल अपने खेल पर ध्यान दिया। मैंने कदम दर कदम रणनीति बनाई। जब आप विश्व के नंबर तीन खिलाड़ी के सामने पहला गेम हार गईं उसके बाद आपके दिमाग में क्या चल रहा था? सच कहूं तो मैं तीसरे गेम में 17-7 से आगे चलने के बावजूद अंदर से कांप रही थी। जबतक गेम ओवर नहीं हुआ मेरे अंदर डर बना हुआ था। जीत का श्रेय किसको देना चाहेंगी ? अपने कोच पुलेला गोपीचंद जी को और माता-पिता को। बैडमिंटन खेलने की प्रेरणा कहां से मिली? मेरे माता-पिता से। उन्होंने ही मुझे इस खेल के लिए प्रेरित किया। पापा ने मेरा हमेशा साथ दिया और मुझे किसी भी चीज के लिए मना नहीं किया। किसी भी बैडमिंटन खिलाड़ी के लिए मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी है या शारीरिक रूप से? दोनों का होना बहुत जरूरी है। आपका प्लस प्वाइंट क्या है? मेरा दृढ़संकल्प करके मैच जीतना। वह कौन सा क्षेत्र है जिसमें अभी भी आप सुधार करना चाहेंगी? मैं अपनी स्टेमिना को और ज्यादा ताकतवर बनाना चाहूंगी। इसके ऊपर मैं काफी मेहनत कर रही हूं। आपको कौन-कौन से खेल पसंद है? टेनिस व कबड्डी। आपके कोच कौन -कौन से रहे हैं? श्री पीएसवी नानी प्रसाद राव (एसएएपी कोच), आरिफ सर (साई कोच) व गोपीचंद जी। बैडमिंटन के अलावा किस खेल के खिलाड़ी पसंद हैं? टेनिस में रोजर फेडरर और क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर। इस खेल में चीन और मलेशिया की बादशाहत का राज क्या है? देखिए, सबसे बड़ी वजह है खेल की सुविधाओं को सही समय पर सही जगह मुहैया करना। ये दोनों देश इस खेल के प्रति कोई भी कोताही नहीं बरतते, चाहे वह खिलाडिय़ों के खान-पान हो या फिर स्टेडियम या खेल उपकरण। खिलाडिय़ों को शुरू से ही बेहतर प्रशिक्षण दिया जाता है और स्टेमिना को कैसे मजबूत व ताकतवर बनाया जाता है इसके ऊपर बहुत ध्यान दिया जाता है। बैडमिंटन में किस देसी व विदेशी खिलाड़ी से आप ज्यादा प्रभावित हैं? मैं अपने वर्तमान कोच गोपीचंद जी से ज्यादा प्रभावित हूं। विदेशी खिलाडिय़ों में इंडोनेशिया के तौफीक हिदायत व डेनमार्क के पीटर हॉग गेडे का खेल मुझे ज्यादा पसंद हैं। वह जीत जो हमेशा याद रखना चाहेंगी? (काफी सोच विचार करने के बाद) देखिए, हर जीत मेरे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप जीतते हैं तो वह जीत एक कीर्तिमान की तरह होता है। जीतने के बाद वह चीज आपको आसान लगने लगती है। सरकार से कितनी मदद मिल रही है? फिलहाल सबकुछ ठीक है। जितनी भी मदद मिल रही है वह पर्याप्त है। सरकार स्टेडियम से लेकर खेल उपकरण तक मुहैया करा रही है। सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी? इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। आप पहले भी खिताब जीतकर भारत लौटी हैं लेकिन इस बार जिस प्रकार से एयरपोर्ट पर स्वागत हुआ, क्या ऐसा पहले हुआ ? (हंसते हुए) देखिए, इससे पहले लोग मुझे नहीं जानते थे लेकिन अब मैं धीरे-धीरे अपने प्रदर्शन से पहचान बनाने लगी हूं और अपने प्रशंसकों के दिलोदिमाग में छाने लगी हूं। अगला लक्ष्य? विश्व चैंपियनशिप में बेहतर प्रदर्शन करना व अंत तक मैच में डटकर मुकाबला करना। Interviewer : कमलेश कुमार राय Interview Date : 01,July,2009

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