नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 23 अगस्त 2009

शास्त्री जी की किताब

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जब प्राइमरी में थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया। घर की आर्थिक हालत पहले से ही खराब थी, अब गुजारा चलाना और मुश्किल हो गया। शास्त्री जी पढ़ने में बेहद होशियार थे। घर की हालत ठीक न होने के कारण जरूरी पुस्तकें वे नहीं खरीद पाते थे।

एक अध्यापक रोज उनसे पुस्तक लाने को कहते, पर वे बिना किताब स्कूल आ जाते। एक दिन अध्यापक ने चेतावनी दी-अगर तुम कल पुस्तक नहीं लाए तो क्लास में बैठने नही दिया जाएगा। उस दिन शास्त्री जी अपने एक मित्र के घर गए और उससे उसकी वह पुस्तक इस वादे के साथ ले ली कि कल सुबह स्कूल में लौटा देंगे। वे रात को घर के बाहर बिजली के खंभे के नीचे जा बैठे और उसकी रोशनी में पूरी रात उस पुस्तक की नकल अपनी एक कॉपी में कर ली। अब शास्त्री जी की यह कॉपी पुस्तक बन चुकी थी।

अगले दिन स्कूल पहुंचे तो अध्यापक ने पुस्तक दिखाने को कहा। शास्त्री जी ने वह कॉपी उनके सामने रख दी। अध्यापक गुस्से से लाल होकर बोले-मैं पुस्तक मांग रहा हूं और तू मुझे यह कॉपी दिखा रहा है। शास्त्री जी ने जब कॉपी खोलकर दिखाई तो अध्यापक यह देखकर दंग रह गए कि पुस्तक का एक-एक शब्द हूबहू उस कॉपी में लिखा था। शास्त्री जी बोले-मेरे पिता नहीं हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं कि पुस्तक खरीद सकूं। अध्यापक की आंखों में आंसू आ गए। अध्यापक ने शास्त्री जी के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा- मुझे उम्मीद है, एक दिन देश तुम पर गर्व करेगा। अध्यापक की बात सच सबित हुई।

आप स्टार्ट नहीं हो रहे, तो मैं धक्का दूं?

एक आदमी खड़े-खड़े चाबी से अपना कान खुजा रहा था।
चिंटू उसे गौर से देख रहा था।

थोड़ी देर बाद चिंटू बोला: भाई साहब, आप स्टार्ट नहीं हो रहे, तो मैं धक्का दूं?

रविवार, 9 अगस्त 2009

पत्नी को रेलवे स्टेशन छोड़ने गया था

संता के होंठ जले हुए थे।

बंता ने पूछा: कैसे जले?
संता: पत्नी को रेलवे स्टेशन छोड़ने गया था...

बंता: तो...?


संता: खुशी के मारे ट्रेन का इंजन चूम लिया!