नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 22 नवंबर 2009

अब हिसाब बराबर!

संता और बंता एक बैंक में नौकरी करते थे।
एक दिन उस बैंक में डकैत घुस गए।

उन्होंने पूरा बैंक लूट लिया और फिर सभी कर्मचारियों को दीवार के साथ खड़े होने को कहा।
फिर उनसे उनका पर्स, घड़ी और कीमती चीजें छीनने लगे।
संता-बंता भी उसी लाइन में खड़े थे। 

तभी संता ने बंता के हाथों में कुछ पकड़ाया, तो बंता ने उससे पूछा: यह क्या है?
संता ने जवाब दिया: हजार रुपए... जो पिछले महीने मैंने तुझसे उधार लिए थे। अब हिसाब बराबर!
 

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