नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

बुधवार, 10 अगस्त 2011

हीरो टाइप

गर्मी की छुट्टियाँ  चल रही थीं इसलिये ट्रेन में भीड़ होना स्वाभाविक ही था, किसी तरह मुझे  बैठने के लिये जगह मिल गयी. मेरे सामने की सीट पर तीन 'हीरो टाइप' लड़के बैठे हुये थे जिन्होने 4-5 लोगों की जगह घेर रखी थी, मेरे पीछे ही दो बुजुर्ग महिला-पुरूष भी ट्रेन में चढ़े और उन लड़कों के बीच जगह खाली देखकर उन्होंने अनुरोध किया कि 'बेटा हमको भी बैठने के लिये थोड़ी सी जगह दे दो, लड़के हंसकर बोले 'अंकल आप जैसे लोग सफर में बहुत मिलते हैं आप को बैठाकर हमें खड़े होने का शौक नहीं चढा़ है. यह सुनकर आसपास बैठे कुछ बेशर्म लोग हंसने लगे तो बुजुर्ग थोड़ा झेंपकर आगे जगह ढूढ़ने निकल गये. अगले स्टेशन पर एक युवती अपनी मां के साथ ट्रेन में चढी़ और लड़कों के पास कुछ जगह देखकर बोली 'प्लीज मेंरी मां के लिये थोड़ी सी जगह दे दीजिये'. लड़कों में से एक हीरो टाइप उठा और बोला जरूर मैडम, पहले आप यहां मेरी सीट पर बैठिये मैं आपकी मां को भी बैठाता हूं' यह कहते हुये उसने लड़की को अपनी जगह बैठा दिया और सामने की सीट पर बैठे हुए लड़के को हाथ पकड़कर उठाते हुये बोला 'अबे शरम नहीं आती तेरी मां जैसी औरत खड़ी है और तू आराम से सीट पर बैठा है'. लड़का चाहकर भी विरोध नहीं कर पाया और उठ गया. युवती की मां को बैठाकर 'हीरो टाइप' युवती के पास आया और बोला 'यदि आपको कष्ट ना हो तो मैं भी बैठ जाऊं और 'हीरो टाइप' युवती के बगल में बैठ गया. अब तीनों लड़कों ने मिलकर युवती से बैठने की जगह देने की कीमत वसूलने का अभियान शुरू कर दिया और उनके बीच में बैठी युवती कसमसाने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रही थी..(कृष्ण धर शर्मा,2005)

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