नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बंद खिड़की

मैंने जब से अपने
बंद कमरे की दीवार में
एक खिड़की बनवाई है
मेरे कमरे में चांद और सूरज
आने लगे हैं
तारे भी जगमगाने लगे हैं
पहले क्यों नहीं आते थे!
यह मेरी समझ में
अब आ रहा है
कि किसी के आने के लिये
किसी रास्ते का
होना भी जरूरी है
और उससे भी जरूरी है
उस रास्ते का खुला होना
क्योंकि
कोई आना भी चाहे तो
हमनें ही बंद कर रखे है
सारे रास्ते
ऐसे में दरवाजे तक आकर
लौट जाने वालों की 
गलती कहां से मानी जाये! .(कृष्ण धर शर्मा,2008)

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