नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

मुहावरे (ख)

खटाई में पड़ना : काम रुक जाना, टल जाना।
दुल्हन यदि बैलगाड़ी से जाती तो कहारों का पैसा खटाई में पड़ जाता।

खड़ी पछाड़ें खाना : खड़े हो-होकर गिर पड़ना।
पति की मृत्यु का समाचार पाते ही विमला खड़ी पछाड़ें खाने लगी।

खरी-खरी सुनाना : सच्ची बात कहना चाहे किसी को भला लगे या बुरा लगे।

खाक फाँकना : इधर-उधर मारा-मारा फिरना।
वह नौकरी की तलाश में चारों तरफ खाक फाँकता था।

खाट से लगना : इतना बीमार पड़ना कि चारपाई से उठ न सके। अत्यन्त दुर्बल हो जाना।

खीस निपोरना : दीनभाव से कृपा अथवा अनुग्रह की प्रार्थना करना।

खुदा की पनाह : ईश्वर बचाए।
बीबी की जूती पैजार से खुदा की पनाह।

खून के आँसू रुलाना : बहुत अधिक सताना।
स्वर्ग का रास्ता बन्द पाकर राजा साहब अपनी रियासत को ही खून के आँसू रुलाना चाहते थे।

खून-खच्चर होना : लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट होना।
तुमने बहुत अच्छा किया जो उनके साथ न हुए, नहीं तो खून-खच्चर हो जाता।

खून लगाकर शहीद होना : थोड़ा-सा दिखावटी काम करके बड़े आदमियों में शामिल होने का प्रयत्न।

खेलने खाने के दिन : बचपन या जवानी का समय जब मनुष्य चिन्तामुक्त जीवन व्यतीत करता है।

खोद-खोदकर पूछना : तर्क, शंका में अनेक सवाल पूछना।
उसने खोद-खोद कर पूछने की चेष्टा तो बहुत की परन्तु उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा।

खोपड़ी भिनभिनाना : तंग आना।
बच्चों का शोर सुनकर मेरी खोपड़ी भिनभिना उठी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें