नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 18 मार्च 2013

संता-बंता भी शोक मनाने गए हुए थे

एक बार एक बुढ़िया मर गई तो उसकी बेटी जोर-जोर से रोने लगी और बोली,
अम्मा कहाँ गई तू !
जहाँ ना धूप  ना छाँव
ना रोटी ना सब्जी
ना बिजली ना पानी
साथ में संता-बंता  भी शोक मनाने गए हुए थे. संता ने साथ ही बैठे बंता से कहा " अबे देख तो कहीं बुढ़िया गलती से हमारे घर तो नहीं चली गई !!!!

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