नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 12 जनवरी 2014

उत्प्लावन बल (आर्कीमिडीज का सिद्धान्त)

किसी तरल (द्रव या गैस) में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी किसी वस्तु पर उपर की ओर लगने वाला बल उत्प्लावन बल कहलाता है।
उत्प्लावन बल नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्य के लिये जिम्मेदार है।

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सबसे पहले आर्कीमिडीज ने किया जो इटली के सिरैकस का निवासी था। यह सिद्धान्त इस प्रकार है:
यदि कोई वस्तु किसी तरल में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी है तो उसके भार में कमी होती है। भार में यह कमी, उस वस्तु द्वारा हटाये गये तरल के भार के बराबर होती है।
सूत्र रूप में ,
F_\mathrm{buoyancy} = - \rho V g \,
जहाँ V वस्तु का वह आयतन है जो तरल में डूबा है, या तरल के अन्दर है।
रो = तरल का घनत्व तथा
जी = गुरुत्व जनित त्वरण
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें