नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 16 मार्च 2014

ये सवाल अपने आप से पूछना!

एक सड़क किनारे एक सेठ मजदुर को डाट रहे थे , उसे गालियाँ और भला - भूरा कह रहे थे .
सेठ कि आँखों पे चश्मा हाथो में सोने का कड़ा उंगलियोमे अंगुठिया कीमती कपडे पुरे रोब के साथ मजदुर कि छोटी गलती कि वजह से उस पे बरस रहे थे . गरीब मजदुर फटे - पुराने कपडे पहने नजरे झुकाये सब सुन रहा था .
अचानक एक ट्रक ज़ोर से आया दोनों को कुचल दिया . दोनों खून से लथ - पथ थे . कुछ घंटो बाद दोनों को अलग - अलग चिता पर सफ़ेद कफ़न लिपटाकर जलाया जा रहा था . अब दोनों में कोई फरक नहीं था .
जब मरना सभी को है एक जैसा तो अहंकार किस बात का ?
पैसे का ?
किसी पद का ?
या किसी ऊँची जात का ?
ये सवाल अपने आप से पूछना!

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