नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

छूट गए लोगों की याद

पेड़, खंबे, खेत, पहाड़ और स्टेशन
छूटते जाते हैं सब यात्रा में
पर साथ चलते जाते हैं
आसमान, तारे, बादल, रेल की पटरी
और पीछे छूट गये लोगों की याद
                                  (कृष्ण धर शर्मा, २०१३)

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

डॉ॰ भीमराव रामजी आंबेडकर

डॉ॰ भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म १४ अप्रैल , १८९१ में मऊ में हुआ था तथा मृत्यु  ६ दिसंबर , १९५६ में दिल्ली में हुई थी। वे एक भारतीय विधिवेत्ता तथा बहुजन राजनीतिक नेता, और एक बौद्ध पुनरुत्थानवादी होने के साथ साथ, भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार भी थे। उन्हें बाबासाहेब के लोकप्रिय नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था। बाबासाहेब आंबेडकर ने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म की चतुवर्ण प्रणाली, और भारतीय समाज में सर्वव्यापित जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया। हिंदू धर्म में मानव समाज को चार वर्णों में वर्गीकृत किया है। उन्हें बौद्ध महाशक्तियों के दलित बौद्ध आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय भी जाता है। बाबासाहेब अम्बेडकर को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है।
कई सामाजिक और वित्तीय बाधाएं पार कर, आंबेडकर उन कुछ पहले अछूतों मे से एक बन गये जिन्होने भारत में कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की। आंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही विधि, अर्थशास्त्र व राजनीति विज्ञान में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट डिग्रियां भी अर्जित कीं। आंबेडकर वापस अपने देश एक प्रसिद्ध विद्वान के रूप में लौट आए और इसके बाद कुछ साल तक उन्होंने वकालत का अभ्यास किया। इसके बाद उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का प्रकाशन किया, जिनके द्वारा उन्होंने भारतीय अस्पृश्यों के राजनैतिक अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की। डॉ. आंबेडकर को भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने बोधिसत्व की उपाधि प्रदान की है, हालांकि उन्होने खुद को कभी भी बोधिसत्व नहीं कहा।

भीमराव आम्बेडकर
Dr.Bhimrao-Ambedkar.jpg
पूरा नाम बाबासाहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर
अन्य नाम बाबासाहेब
जन्म 14 अप्रैल, 1891
जन्म भूमि मऊ, मध्य प्रदेश
मृत्यु 6 दिसंबर, 1956
मृत्यु स्थान दिल्ली
मृत्यु कारण स्वास्थ्य ख़राब
अविभावक रामजी मालोजी सकपाल, भीमाबाई मुरबादकर
पति/पत्नी रमाबाई
नागरिकता भारतीय
पार्टी स्वतंत्र लेबर पार्टी
पद अध्यक्ष- स्वतंत्र लेबर पार्टी
विद्यालय एलिफिन्सटन कॉलेज, कोलंबिया विश्वविद्यालय, लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स
शिक्षा एम.ए. (अर्थशास्त्र), पी एच. डी., एम. एस. सी., बार-एट-लॉ
भाषा हिंदी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न
कार्यक्षेत्र बड़ौदा राज्य के मिलिटरी सेक्रेटरी, अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, प्रधानाचार्य
रचनाएँ 'डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज' (अंग्रेज़ी), बाबा साहब डॉक्टर आम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय (हिन्दी), जाति के विनाश
अन्य जानकारी आम्बेडकर विधि विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री, इतिहास विवेचक और धर्म और दर्शन के विद्वान थे।

प्रारंभिक जीवन

भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म ब्रिटिशों द्वारा केन्द्रीय प्रांत ( अब मध्य प्रदेश में ) में स्थापित नगर व सैन्य छावनी मऊ में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई मुरबादकर की १४ वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार मराठी था और वो अंबावडे नगर जो आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले मे है, से संबंधित था। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत कहे जाते थे और उनके साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे, और उनके पिता,भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुये वो सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होने अपने बच्चों को स्कूल में पढने और कड़ी मेहनत करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया।
कबीर पंथ से संबंधित इस परिवार में, रामजी सकपाल, अपने बच्चों को हिंदू ग्रंथों को पढ़ने के लिए, विशेष रूप से महाभारत और रामायण प्रोत्साहित किया करते थे। उन्होने सेना मे अपनी हैसियत का उपयोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से शिक्षा दिलाने मे किया, क्योंकि अपनी जाति के कारण उन्हें इसके लिये सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद आंबेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चों को विद्यालय मे अलग बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो ध्यान ही दिया जाता था, न ही कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने प‍र कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। लोगों के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था। १८९४ मे रामजी सकपाल सेवानिवृत्त हो जाने के बाद सपरिवार सतारा चले गए और इसके दो साल बाद, अम्बेडकर की मां की मृत्यु हो गई। बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाये। अपने भाइयों और बहनों मे केवल अम्बेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल मे जाने में सफल हुये। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।
रामजी सकपाल ने १८९८ मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई (तब बंबई )चले आये। यहाँ अम्बेडकर एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। पढा़ई में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, अम्बेडकर लगातार अपने विरुद्ध हो रहे इस अलगाव और, भेदभाव से व्यथित रहे। १९०७ में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये। उनकी इस सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी , और बाद में एक सार्वजनिक समारोह उनका सम्मान किया गया इसी समारोह में उनके एक शिक्षक कृषणजी अर्जुन केलूसकर ने उन्हें महात्मा बुद्ध की जीवनी भेंट की, श्री केलूसकर, एक मराठा जाति के विद्वान थे। अम्बेडकर की सगाई एक साल पहले हिंदू रीति के अनुसार दापोली की, एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी। १९०८ में, उन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया। १९१२ में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने अपने पहले बेटे यशवंत को इसी वर्ष जन्म दिया। अम्बेडकर अपने परिवार के साथ बड़ौदा चले आये पर जल्द ही उन्हें अपने पिता की बीमारी के चलते बंबई वापस लौटना पडा़, जिनकी मृत्यु २ फरवरी १९१३ को हो गयी।

शिक्षा

1922 में एक वकील के रूप में अम्बेडकर
गायकवाड शासक ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय मे जाकर अध्ययन के लिये अम्बेडकर का चयन किया गया साथ ही इसके लिये एक ११.५ डॉलर प्रति मास की छात्रवृत्ति भी प्रदान की। न्यूयॉर्क शहर में आने के बाद, अम्बेडकर को राजनीति विज्ञान विभाग के स्नातक अध्ययन कार्यक्रम में प्रवेश दे दिया गया। शयनशाला मे कुछ दिन रहने के बाद, वे भारतीय छात्रों द्वारा चलाये जा रहे एक आवास क्लब मे रहने चले गए और उन्होने अपने एक पारसी मित्र नवल भातेना के साथ एक कमरा ले लिया। १९१६ में, उन्हे उनके एक शोध के लिए पी. एच.डी. से सम्मानित किया गया। इस शोध को अंततः उन्होंने पुस्तक "इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया" के रूप में प्रकाशित किया। हालाँकि उनकी पहला प्रकाशित काम, एक लेख जिसका शीर्षक, भारत में जाति : उनकी प्रणाली , उत्पत्ति और विकास है। अपनी डाक्टरेट की डिग्री लेकर अम्बेडकर लंदन चले गये जहाँ उन्होने ग्रे'स इन और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में कानून का अध्ययन और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट शोध की तैयारी के लिये अपना नाम लिखवा लिया। अगले वर्ष छात्रवृत्ति की समाप्ति के चलते मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौर बीच मे ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पडा़ ये विश्व युद्ध प्रथम का काल था। बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक फिर से आये भेदभाव से अम्बेडकर उदास हो गये, और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार बंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें बंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। १९२० में कोल्हापुर के महाराजा अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। १९२३ में उन्होंने अपना शोध प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के, साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार मे बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये अम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। उन्हे औपचारिक रूप से ८ जून १९२७ को कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा पी एच.डी. प्रदान की गयी।

छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष

भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबोरोह समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर अम्बेडकर को गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, अम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका (separate electorates) और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई में, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन जल्द ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब्, अम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका अम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। अम्बेडकर ने अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली, और बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् १९२६ में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन १९२७ में डॉ. अम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने महड में अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की पानी की मुख्य टंकी से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया।
१ जनवरी १९२७ को डॉ अम्बेडकर ने द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध, की कोरेगाँव की लडा़ई के दौरान मारे गये भारतीय सैनिकों के सम्मान में कोरेगाँव विजय स्मारक मे एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये। १९२७ में, उन्होंने अपना दूसरी पत्रिका बहिष्कृत भारत शुरू की, और उसके बाद रीक्रिश्टेन्ड जनता की। उन्हें बाँबे प्रेसीडेंसी समिति मे सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग १९२८ में काम करने के लिए नियुक्त किया गया। इस आयोग के विरोध मे भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये, और जबकि इसकी रिपोर्ट को ज्यादातर भारतीयों द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया, डॉ अम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिशों लिखीं।

पूना संधि

दूसरा गोलमेज सम्मेलन
अब तक डॉ अम्बेडकर आज तक की सबसे बडी़ अछूत राजनीतिक हस्ती बन चुके थे। उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। अम्बेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास गांधी की आलोचना की, उन्होने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप मे प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। अम्बेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होने अस्पृश्य समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमे कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो। 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने मे है।
हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ ... राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने मे निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा.... उनको शिक्षित होना चाहिए .... एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने, और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है।
इस भाषण में अम्बेडकर ने कांग्रेस और गांधी द्वारा चलाये गये नमक सत्याग्रह की शुरूआत की आलोचना की। अम्बेडकर की आलोचनाओं और उनके राजनीतिक काम ने उसको रूढ़िवादी हिंदुओं के साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं मे भी बहुत अलोकप्रिय बना दिया, यह वही नेता थे जो पहले छुआछूत की निंदा करते थे और इसके उन्मूलन के लिये जिन्होने देश भर में काम किया था। इसका मुख्य कारण था कि ये "उदार" राजनेता आमतौर पर अछूतों को पूर्ण समानता देने का मुद्दा पूरी तरह नहीं उठाते थे। अम्बेडकर की अस्पृश्य समुदाय मे बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 मे लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में, भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यहाँ उनकी अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने के मुद्दे पर तीखी बहस हुई। धर्म और जाति के आधार पर पृथक निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गांधी ने आशंका जताई, कि अछूतों को दी गयी पृथक निर्वाचिका, हिंदू समाज की भावी पीढी़ को हमेशा के लिये विभाजित कर देगी।
1932 मे जब ब्रिटिशों ने अम्बेडकर के साथ सहमति व्यक्त करते हुये अछूतों को पृथक निर्वाचिका देने की घोषणा की, तब गांधी ने इसके विरोध मे पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में आमरण अनशन शुरु कर दिया। गाँधी ने रूढ़िवादी हिंदू समाज से सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता को खत्म करने तथा, हिंदुओं की राजनीतिक और सामाजिक एकता की बात की। गांधी के अनशन को देश भर की जनता से घोर समर्थन मिला और रूढ़िवादी हिंदू नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं जैसे पवलंकर बालू और मदन मोहन मालवीय ने अम्बेडकर और उनके समर्थकों के साथ यरवदा मे संयुक्त बैठकें कीं। अनशन के कारण गांधी की मृत्यु होने की स्थिति मे, होने वाले सामाजिक प्रतिशोध के कारण होने वाली अछूतों की हत्याओं के डर से और गाँधी जी के समर्थकों के भारी दवाब के चलते अंबेडकर ने अपनी पृथक निर्वाचिका की माँग वापस ले ली। इसके एवज मे अछूतों को सीटों के आरक्षण , मंदिरों में प्रवेश/पूजा के अधिकार एवं छूआ-छूत ख़तम करने की बात स्वीकार कर ली गयी । गाँधी ने इस उम्मीद पर की बाकि सभी स्वर्ण भी पूना संधि का आदर कर , सभी शर्ते मान लेंगे अपना अनशन समाप्त कर दिया।
आरक्षण प्रणाली में पहले दलित अपने लिए संभावित उमीदवारों में से चुनाव द्वारा (केवल दलित) चार संभावित उमीदवार चुनते। इन चार उम्मीदवारों में से फिर संयुक्त निर्वाचन चुनाव (सभी धर्म \ जाति) द्वारा एक नेता चुना जाता । इस आधार पर सिर्फ एक बार सन 1937 में चुनाव हुए। आंबेडकर 20-25 साल के लिये आरक्षण चाहते थे लेकिन गाँधी के अड़े रहने के कारण यह आरक्षण मात्र 5 साल के लिए ही लागू हुआ।
पृथक निर्वाचिका में दलित दो वोट देता एक सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को ओर दूसरा दलित (पृथक) उम्मीदवार को। ऐसी स्थिति में दलितों द्वारा चुना गया दलित उम्मीदवार दलितों की समस्या को अच्छी तरह से तो रख सकता था किन्तु गैर उम्मीदवार के लिए यह जरूरी नहीं था कि उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास भी करता। बाद मे अम्बेडकर ने गाँधी जी की आलोचना करते हुये उनके इस अनशन को अछूतों को उनके राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने और उन्हें उनकी माँग से पीछे हटने के लिये दवाब डालने के लिये गांधी द्वारा खेला गया एक नाटक करार दिया। उनके अनुसार असली महात्मा तो ज्योति राव फुले थे ।

राजनीतिक जीवन

13 अक्टूबर 1935, को येओला नासिक मे अम्बेडकर एक रैली को संबोधित करते हुए.
13 अक्टूबर 1935 को,अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त किया गया और इस पद पर उन्होने दो वर्ष तक कार्य किया। इसके चलते अंबेडकर बंबई में बस गये, उन्होने यहाँ एक बडे़ घर का निर्माण कराया, जिसमे उनके निजी पुस्तकालय मे 50000 से अधिक पुस्तकें थीं। इसी वर्ष उनकी पत्नी रमाबाई की एक लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। रमाबाई अपनी मृत्यु से पहले तीर्थयात्रा के लिये पंढरपुर जाना चाहती थीं पर अंबेडकर ने उन्हे इसकी इजाज़त नहीं दी। अम्बेडकर ने कहा की उस हिन्दु तीर्थ मे जहाँ उनको अछूत माना जाता है, जाने का कोई औचित्य नहीं है इसके बजाय उन्होने उनके लिये एक नया पंढरपुर बनाने की बात कही। भले ही अस्पृश्यता के खिलाफ उनकी लडा़ई को भारत भर से समर्थन हासिल हो रहा था पर उन्होने अपना रवैया और अपने विचारों को रूढ़िवादी हिंदुओं के प्रति और कठोर कर लिया। उनकी रूढ़िवादी हिंदुओं की आलोचना का उत्तर बडी़ संख्या मे हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा की गयी उनकी आलोचना से मिला। 13 अक्टूबर को नासिक के निकट येओला मे एक सम्मेलन में बोलते हुए अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की अपनी इच्छा प्रकट की। उन्होने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया।उन्होने अपनी इस बात को भारत भर मे कई सार्वजनिक सभाओं मे दोहराया भी।
1936 में, अम्बेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों मे 15 सीटें जीती। उन्होंने अपनी पुस्तक जाति के विनाश भी इसी वर्ष प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क मे लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस सफल और लोकप्रिय पुस्तक मे अम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लोगों को गाँधी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की कडी़ निंदा की। अम्बेडकर ने रक्षा सलाहकार समिति और वाइसराय की कार्यकारी परिषद के लिए श्रम मंत्री के रूप में सेवारत रहे।
1941 और 1945 के बीच में उन्होंने बड़ी संख्या में अत्यधिक विवादास्पद पुस्तकें और पर्चे प्रकाशित किये जिनमे ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ भी शामिल है, जिसमें उन्होने मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की आलोचना की। वॉट कॉंग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स (काँग्रेस और गान्धी ने अछूतों के लिये क्या किया) के साथ, अम्बेडकर ने गांधी और कांग्रेस दोनो पर अपने हमलों को तीखा कर दिया उन्होने उन पर ढोंग करने का आरोप लगाया। उन्होने अपनी पुस्तक ‘हू वर द शुद्राज़?’( शुद्र कौन थे?) के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से अछूत, शुद्रों से अलग हैं। अम्बेडकर ने अपनी राजनीतिक पार्टी को अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन मे बदलते देखा, हालांकि 1946 में आयोजित भारत के संविधान सभा के लिए हुये चुनाव में इसने खराब प्रदर्शन किया। 1948 में हू वर द शुद्राज़? की उत्तरकथा द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध) मे अम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।
हिंदू सभ्यता .... जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे... एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?

अम्बेडकर इस्लाम और दक्षिण एशिया में उसकी रीतियों के भी आलोचक थे। उन्होने भारत विभाजन का तो पक्ष लिया पर मुस्लिम समाज मे व्याप्त बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की। उन्होंने कहा,
बहुविवाह और रखैल रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। हालाँकि कुरान में वर्णित ग़ुलामों के साथ उचित और मानवीय व्यवहार के बारे में पैगंबर के विचार प्रशंसायोग्य हैं लेकिन, इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।
उन्होंने लिखा कि मुस्लिम समाज मे तो हिंदू समाज से भी अधिक सामाजिक बुराइयाँ हैं और मुसलमान उन्हें " भाईचारे " जैसे नरम शब्दों के प्रयोग से छुपाते हैं। उन्होंने मुसलमानो द्वारा अर्ज़ल वर्गों के खिलाफ भेदभाव जिन्हें " निचले दर्जे का " माना जाता था के साथ ही मुस्लिम समाज में महिलाओं के उत्पीड़न की दमनकारी पर्दा प्रथा की भी आलोचना की। उन्होंने कहा हालाँकि पर्दा हिंदुओं मे भी होता है पर उसे धर्मिक मान्यता केवल मुसलमानों ने दी है। उन्होंने इस्लाम मे कट्टरता की आलोचना की जिसके कारण इस्लाम की नातियों का अक्षरक्ष अनुपालन की बद्धता के कारण समाज बहुत कट्टर हो गया है और उसे को बदलना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने आगे लिखा कि भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में विफल रहे हैं जबकि इसके विपरीत तुर्की जैसे देशों ने अपने आपको बहुत बदल लिया है।
"सांप्रदायिकता" से पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों दोनों समूहों ने सामाजिक न्याय की माँग की उपेक्षा की है।
हालांकि वे मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक रणनीति के घोर आलोचक थे पर उन्होने तर्क दिया कि हिंदुओं और मुसलमानों को पृथक कर देना चाहिए और पाकिस्तान का गठन हो जाना चाहिये क्योकि एक ही देश का नेतृत्व करने के लिए, जातीय राष्ट्रवाद के चलते देश के भीतर और अधिक हिंसा पनपेगी। उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के सांप्रदायिक विभाजन के बारे में अपने विचार के पक्ष मे ऑटोमोन साम्राज्य और चेकोस्लोवाकिया के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया।
उन्होंने पूछा कि क्या पाकिस्तान की स्थापना के लिये पर्याप्त कारण मौजूद थे? और सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच के मतभेद एक कम कठोर कदम से भी मिटाना संभव हो सकता था। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान को अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना चाहिये। कनाडा जैसे देशों मे भी सांप्रदायिक मुद्दे हमेशा से रहे हैं पर आज भी अंग्रेज और फ्रांसीसी एक साथ रहते हैं, तो क्या हिंदु और मुसलमान भी साथ नहीं रह सकते। उन्होंने चेताया कि दो देश बनाने के समाधान का वास्तविक क्रियान्वयन अत्यंत कठिनाई भरा होगा। विशाल जनसंख्या के स्थानान्तरण के साथ सीमा विवाद की समस्या भी रहेगी। भारत की स्वतंत्रता के बाद होने वाली हिंसा को ध्यान मे रख कर यह भविष्यवाणी कितनी सही थी||

संविधान निर्माण

अपने विवादास्पद विचारों और गांधी व कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अम्बेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व मे आई तो उसने अम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को, अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम मे अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की। इस कार्य में अम्बेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया।
संघ रीति मे मतपत्र द्वारा मतदान, बहस के नियम, पूर्ववर्तिता और कार्यसूची के प्रयोग, समितियाँ और काम करने के लिए प्रस्ताव लाना शामिल है। संघ रीतियाँ स्वयं प्राचीन गणराज्यों जैसे शाक्य और लिच्छवि की शासन प्रणाली के निदर्श (मॉडल) पर आधारित थीं। अम्बेडकर ने हालांकि उनके संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल इस्तेमाल किया है पर उसकी भावना भारतीय है।
अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान पाठ मे संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। अम्बेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों मे आरक्षण प्रणाली शुरू के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया, भारत के विधि निर्माताओं ने इस सकारात्मक कार्यवाही के द्वारा दलित वर्गों के लिए सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के उन्मूलन और उन्हे हर क्षेत्र मे अवसर प्रदान कराने की चेष्टा की जबकि मूल कल्पना मे पहले इस कदम को अस्थायी रूप से और आवश्यकता के आधार पर शामिल करने की बात कही गयी थी. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद, बोलते हुए, अम्बेडकर ने कहा :
मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।
1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया इस मसौदे मे उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके खिलाफ़ थी। अम्बेडकर ने 1952 में लोक सभा का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लड़ा पर हार गये। मार्च 1952 मे उन्हें संसद के ऊपरी सदन यानि राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और इसके बाद उनकी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।

बौद्ध धर्म मे परिवर्तन

दीक्षा भूमि ,नागपुर; जहां अम्बेडकर अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म मे परिवर्तित हुए।
सन् 1950 के दशक में अम्बेडकर बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध भिक्षुओं व विद्वानों के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका(तब सीलोन) गये। पुणे के पास एक नया बौद्ध विहार को समर्पित करते हुए, अम्बेडकर ने घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक लिख रहे हैं, और जैसे ही यह समाप्त होगी वो औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लेंगे। 1954 में अम्बेडकर ने बर्मा का दो बार दौरा किया; दूसरी बार वो रंगून मे तीसरे विश्व बौद्ध फैलोशिप के सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये। 1955 में उन्होने भारतीय बुद्ध महासभा या बौद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना की। उन्होंने अपने अंतिम लेख, द बुद्ध एंड हिज़ धम्म को 1956 में पूरा किया। यह उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुआ। 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अम्बेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. अम्बेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इसके बाद उन्होने एक अनुमान के अनुसार लगभग 500000 समर्थको को बौद्ध धर्म मे परिवर्तित किया। नवयान लेकर अम्बेडकर और उनके समर्थकों ने हिंदू धर्म और हिंदू दर्शन की स्पष्ट निंदा की और उसे त्याग दिया। इसके बाद वे नेपाल में चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन मे भाग लेने के लिए काठमांडू गये। उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध या कार्ल मार्क्स को 2 दिसंबर 1956 को पूरा किया।

डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,14 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था.उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं. ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं.इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म,जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है.

मृत्यु / महापरिनिर्वाण

अन्नाल अम्बेडकर मनिमंडपम, चेन्नई
पुणे संग्रहालय में अम्बेडकर की प्रतिमा।
1948 से, अम्बेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया और 1955 के दौरान किये गये लगातार काम ने उन्हें तोड़ कर रख दिया। अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर की मृत्यु नींद में दिल्ली में उनके घर मे हो गई। 7 दिसंबर को चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली मे अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया।
मृत्युपरांत अम्बेडकर के परिवार मे उनकी दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर रह गयी थीं जो, जन्म से ब्राह्मण थीं पर उनके साथ ही वो भी धर्म परिवर्तित कर बौद्ध बन गयी थीं। विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। सविता अम्बेडकर की एक बौद्ध के रूप में सन 2002 में मृत्यु हो गई, अम्बेडकर के पौत्र, प्रकाश यश्वंत अम्बेडकर, भारिपा बहुजन महासंघ का नेतृत्व करते है और भारतीय संसद के दोनों सदनों मे के सदस्य रह चुके है।
कई अधूरे टंकलिपित और हस्तलिखित मसौदे अम्बेडकर के नोट और पत्रों में पाए गए हैं। इनमें वैटिंग फ़ोर ए वीसा जो संभवतः 1935-36 के बीच का आत्मकथानात्मक काम है, और अनटचेबल, ऑर द चिल्ड्रन ऑफ इंडियाज़ घेट्टो जो 1951 की जनगणना से संबंधित है।
एक स्मारक अम्बेडकर के दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित किया गया है। अम्बेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर , डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था। अम्बेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।
मुंबई मे उनके स्मारक हर साल लगभग पाँच लाख लोग उनकी वर्षगांठ (14 अप्रैल) पुण्यतिथि (6 दिसम्बर) और धम्म चक्र परिवर्तन् दिन 14 अक्टूबर नागपुर में, उन्हे अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इकट्ठे होते हैं। सैकड़ों पुस्तकालय स्थापित हो गये हैं, और लाखों रुपए की पुस्तकें बेची जाती हैं। अपने अनुयायियों को उनका संदेश था !' शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।

ग्रामीण जीवन पर अम्बेडकर बनाम गांधी

अम्बेडकर, महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्र आलोचक थे. उनके समकालीनों और आधुनिक विद्वानों ने उनके महात्मा गांधी (जो कि पहले भारतीय नेता थे जिन्होने अस्पृश्यता और भेदभाव करने का मुद्दा सबसे पहले उठाया था) के विरोध की आलोचना है।
गांधी का दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक, लेकिन रूमानी था, और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था उन्होने उन्हें हरिजन कह कर पुकारा। अम्बेडकर ने इस विशेषण को सिरे से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।

आलोचना और विरासत

अम्बेडकर की सामाजिक और राजनैतिक सुधारक की विरासत का आधुनिक भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा है। स्वतंत्रता के बाद के भारत मे उनकी सामाजिक और राजनीतिक सोच को सारे राजनीतिक हलके का सम्मान हासिल हुआ। उनकी इस पहल ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे आज के भारत की सोच को प्रभावित किया। उनकी यह् सोच आज की सामाजिक, आर्थिक नीतियों, शिक्षा, कानून और सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से प्रदर्शित होती है। एक विद्वान के रूप में उनकी ख्याति उनकी नियुक्ति स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में कराने मे सहायक सिद्ध हुयी। उन्हें व्यक्ति की स्वतंत्रता में अटूट विश्वास था और उन्होने समान रूप से रूढ़िवादी और जातिवादी हिंदू समाज और इस्लाम की संकीर्ण और कट्टर नीतियों की आलोचना की है। उसकी हिंदू और इस्लाम की निंदा ने उसको विवादास्पद और अलोकप्रिय बनाया है, हालांकि उनके बौद्ध धर्म मे परिवर्तित होने के बाद भारत में बौद्ध दर्शन में लोगों की रुचि बढ़ी है।
अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन के कारण बड़ी संख्या में दलित राजनीतिक दल, प्रकाशन और कार्यकर्ता संघ अस्तित्व मे आये है जो पूरे भारत में सक्रिय रहते हैं, विशेष रूप से महाराष्ट्र में। उनके दलित बौद्ध आंदोलन को बढ़ावा देने से बौद्ध दर्शन भारत के कई भागों में पुनर्जागरित हुआ है। दलित कार्यकर्ता समय समय पर सामूहिक धर्म परिवर्तन के समारोह आयोजित उसी तरह करते रहते हैं जिस तरह अम्बेडकर ने 1956 मे नागपुर मे आयोजित किया था।
कुछ विद्वानों, जिनमें से कुछ प्रभावित जातियों से है का विचार है कि अंग्रेज अधिकतर जातियों को एक नज़र से देखते थे और अगर उनका राज जारी रहता तो समाज से काफी बुराईयों को समाप्त किया जा सकता था। यह राय ज्योतिबा फुले समेत कई थी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने रखी है।
नारायण राव काजरोलकर ने अम्बेडकर की आलोचना की है क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वे खर्च बजाय सब लोगों के बीच, सिर्फ अपनी ही जाति यानि महार पर खर्च करने मे करते थे। सीताराम नारायण शिवतारकर भी इससे सहमत है।
आधुनिक भारत में कुछ लोग, अम्बेडकर के द्वारा शुरू किए गए आरक्षण को अप्रासांगिक और प्रतिभा विरोधी मानते हैं।

अम्बेडकर के बाद

पिछले वर्षों में लगातार बौद्ध समूहों और रूढ़िवादी हिंदुओं के बीच हिंसक संघर्ष हुये है. 1994 में मुंबई में जब किसी ने अम्बेडकर की प्रतिमा के गले में जूते की माला लटका कर उनका अपमान किया था तो चारों ओर एक सांप्रदायिक हिंसा फैल गयी थी, और हड़ताल के कारण शहर एक सप्ताह से अधिक तक बुरी तरह प्रभावित हुआ था। जब अगले वर्ष इसी तरह की गड़बड़ी हुई तो एक अम्बेडकर प्रतिमा को तोड़ा गया। तमिलनाडु में ऊंची जाति के समूह भी बौद्धों के खिलाफ हिंसा में लगे हुए हैं। इसके अलावा, कुछ परिवर्तित बौद्धों ने हिंदुओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया (2006, महाराष्ट्र में दलितों द्वारा विरोध) और हिंदू मंदिरों मे गन्दगी फैला दी, और देवताओं के स्थान पर अम्बेडकर के चित्र लगा दिये। एक कट्टरपंथी अम्बेडकरवादी संस्था बौद्ध पैंथर्स मूवमेंट ने तो अम्बेडकर के बौद्ध धर्म के आलोचकों की हत्या तक करने का प्रयास किया है।

फिल्म

जब्बार पटेल ने सन 2000 मे डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर नामक हिन्दी फिल्म बनाई थी। इसमे अम्बेडकर की भूमिका माम्मूटी मे निभाई थी. भारत के राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम और सामाजिक न्याय मंत्रालय के द्वारा प्रायोजित, यह फिल्म प्रदर्शन से पहले एक लंबी अवधि तक विवादो मे फँसी रही।
यू. सी. एल. ए. मे मानव शास्त्र के प्रोफेसर और ऐतिहासिक नृवंश विवरणकार, डॉ. डेविड ब्लुंडेल फिल्मों की एक श्रृंखला बनाने की दीर्घकालिक परियोजना बनाई है जो उन घटनाओं पर आधारित है जो भारत में समाज कल्याण की स्थिति के बारे में ज्ञान और इच्छा को प्रभावित करती है। ए राएज़िग लाइट डॉ. बी आर अम्बेडकर के जीवन और भारत में सामाजिक कल्याण की स्थिति पर आधारित है।

साभार-विकिपीडिया

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

आन्ध्र प्रदेश


आन्ध्र प्रदेश
ఆంధ్ర ప్రదేశ్
آندھرا پردیش
उपनाम: भारत का चावल का कटोरा
आन्ध्र प्रदेश की भारत के मानचित्र पर स्थिति
आन्ध्र प्रदेश का मानचित्र
निर्देशांक (हैदराबाद): 17.366, 78.476निर्देशांक: 17.366, 78.476
देश भारत
स्थापना 1 नवम्बर 1956 (57 वर्ष पहले)
राजधानी हैदराबाद
सबसे बड़ा राज्य हैदराबाद
जिले 23
शासन
 • सभा भारत सरकार, आन्ध्र प्रदेश सरकार
 • राज्यपाल ई. एस. एल. नरसिम्हन
 • विधान मंडल द्विसदनीय (294 + 90 सीटें)
 • भारतीय उच्च न्यायलय आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायलय
क्षेत्र
 • कुल 2,75,045
क्षेत्र दर्जा चौथा
आबादी (2011)[1]
 • कुल 84
 • दर्जा पांचवा
 • घनत्व <
समय मण्डल IST (यूटीसी +05:30)
UN/LOCODE AP
ISO 3166 code IN-AP
वाहन पंजीकरण AP
माविसू Green Arrow Up Darker.svg 0.473 (निम्न)
माविसू क्रम 15वां (2011)
साक्षरता 67.77% (2011)
आधिकारिक राज्य भाषाएं तेलुगु, उर्दू
जालस्थल ap.gov.in
आंध्र प्रदेश तेलुगु: ఆంధ్ర ప్రదేశ్ संक्षिप्त आं.प्र. , भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित राज्य है। क्षेत्र के अनुसार यह भारत का चौथा सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से पाँचवा सबसे बड़ा राज्य है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर हैदराबाद है। भारत के सभी राज्यों में सबसे लंबा समुद्र तट गुजरात में (1600 कि॰मी॰) होते हुए, दूसरे स्थान पर इस राज्य का समुद्र तट (972 कि॰मी॰) है।[2]
आंध्र प्रदेश 12°41' तथा 22°उ॰ अक्षांश और 77° तथा 84°40'पू॰ देशांतर रेखांश के बीच है, और उत्तर में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में तमिल नाडु और पश्चिम में कर्नाटक से घिरा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से आंध्र प्रदेश को "भारत का धान का कटोरा" कहा जाता है। यहाँ की फसल का 77% से ज़्यादा हिस्सा चावल है।[3] इस राज्य में दो प्रमुख नदियाँ, गोदावरी और कृष्णा बहती हैं। पुदु्चेरी (पांडीचेरी) राज्य के यानम जिले का छोटा अंतःक्षेत्र (12 वर्ग मील (30 वर्ग कि॰मी॰)) इस राज्य के उत्तरी-पूर्व में स्थित गोदावरी डेल्टा में है।
ऐतिहासिक दृष्टि से राज्य में शामिल क्षेत्र आंध्रपथ, आंध्रदेस, आंध्रवाणी और आंध्र विषय के रूप में जाना जाता था।[4] आंध्र राज्य से आंध्र प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 को किया गया।
फरवरी 2014 को भारतीय संसद ने अलग तेलंगाना राज्य को मंजूरी दे दी। तेलंगाना राज्य में दस जिले तथा शेष आन्ध्र प्रदेश (सीमांन्ध्र) में 13 जिले होंगे। दस साल तक हैदराबाद दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी होगी। नया राज्य सीमांन्ध्र दो-तीन महीने में अस्तित्व में आ जायेगा।[5] इसी माह आन्ध्र प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लागू हो गया जो कि राज्य के बटवारे तक लागू रहेगा।[6]
आंध्र प्रदेश राज्य चिन्ह
राज्य भाषा तेलुगू (తెలుగు)
राज्य प्रतीक पूर्ण कुंभ (పూర్ణకుంభం)
राज्य गीत मा तेलेगु तल्ली की (మా తెలుగు తల్లికి మల్లె పూదండ) शंकराम्बदी सुंदराचारी द्वारा
राज्य पशु चिंकारा, (కృష్ణ జింక)
राज्य पक्षी नीलकंठ, (పాల పిట్ట)
राज्य का पेड़ नीम (వేప)
राज्य खेल कबड्डी (చెడుగుడు)
राज्य नृत्य कुचिपूड़ी (కూచిపూడి)
राज्य फूल कुमुद (కలువ పువ్వు)

इतिहास

ऐतरेय ब्राह्मण (ई.पू.800) और महाभारत जैसे संस्कृत महाकाव्यों में आंध्र शासन का उल्लेख किया गया था. [7]भरत के नाट्यशास्त्र (ई.पू. पहली सदी) में भी "आंध्र" जाति का उल्लेख किया गया है. [8]भट्टीप्रोलु में पाए गए शिलालेखों में तेलुगू भाषा की जड़ें खोजी गई हैं. [9]
चंद्रगुप्त मौर्य (ई.पू. 322-297) के न्यायालय का दौरा करने वाले मेगस्थनीस ने उल्लेख किया है कि आंध्र देश में 3 गढ़ वाले नगर और 100,000 पैदल सेना, 200 घुड़सवार फ़ौज और 1000 हाथियों की सेना थी. बौद्ध पुस्तकों से प्रकट होता है कि उस समय आंध्रवासियों ने गोदावरी क्षेत्र में अपने राज्यों की स्थापना की थी. अपने 13वें शिलालेख में अशोक ने हवाला दिया है कि आंध्रवासी उसके अधीनस्थ थे. [10]
शिलालेखीय प्रमाण दर्शाते हैं कि तटवर्ती आंध्र में कुबेरका द्वारा शासित एक प्रारंभिक राज्य था,[11] जिसकी राजधानी प्रतिपालपुरा (भट्टीप्रोलु) थी. यह शायद भारत का सबसे पुराना राज्य है. [12]लगता है इसी समय धान्यकटकम/धरणीकोटा (वर्तमान अमरावती) महत्वपूर्ण स्थान रहे हैं, जिसका गौतम बुद्ध ने भी दौरा किया था.प्राचीन तिब्बती विद्वान तारानाथ के अनुसार: "अपने ज्ञानोदय के अगले वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा को बुद्ध ने धान्यकटक के महान स्तूप के पास 'महान नक्षत्र' (कालचक्र) मंडलों का सूत्रपात किया." [13][14]
वारंगल में काकतीय मूर्तिकला
मौर्यों ने ई.पू. चौथी शताब्दी में अपने शासन को आंध्र तक फैलाया. मौर्य वंश के पतन के बाद ई.पू. तीसरी शताब्दी में आंध्र शातवाहन स्वतंत्र हुए. 220 ई.सदी में शातवाहन के ह्रास के बाद, ईक्ष्वाकु राजवंश, पल्लव, आनंद गोत्रिका, विष्णुकुंडीना, पूर्वी चालुक्य और चोला ने तेलुगू भूमि पर शासन किया. तेलुगू भाषा का शिलालेख प्रमाण, 5वीं ईस्वी सदी में रेनाटी चोला(कडपा क्षेत्र) के शासन काल के दौरान मिला.[15] इस अवधि में तेलुगू, प्राकृत और संस्कृत के आधिपत्य को कम करते हुए एक लोकप्रिय माध्यम के रूप में उभरी. [16]अपनी राजधानी विनुकोंडा से शासन करने वाले विष्णुकुंडीन राजाओं ने तेलुगू को राजभाषा बनाया.विष्णुकुंडीनों के पतन के बाद पूर्वी चालुक्यों ने अपनी राजधानी वेंगी से लंबे समय तक शासन किया. पहली ईस्वी सदी में ही चालुक्यों के बारे में उल्लेख किया गया कि वे शातवाहन और बाद में ईक्ष्वाकुओं के अधीन जागीरदार और मुखिया के रूप में काम करते थे.1022 ई. के आस-पास चालुक्य शासक राजराज नरेंद्र ने राजमंड्री पर शासन किया.
पल्नाडु की लड़ाई के परिणामस्वरूप पूर्वी चालुक्यों की शक्ति क्षीण हो गई और 12वीं और 13वीं सदी में काकतीय राजवंश का उदय हुआ. काकतीय, वारंगल के छोटे प्रदेश पर शासन करने वाले राष्ट्रकूटों के प्रथम सामंत थे. सभी तेलुगू भूमि को काकतीयों ने एकजुट किया. 1323 ई. में दिल्ली के सुल्तान ग़ियास-उद-दिन तुग़लक़ ने उलघ ख़ान के तहत तेलुगू देश को जीतने और वारंगल को क़ब्जे में करने के लिए बड़ी सेना भेजी. राजा प्रतापरुद्र बंदी बनाए गए. 1326 ई. में मुसुनूरी नायकों ने दिल्ली सल्तनत से वारंगल को छुड़ा कर उस पर पुनः क़ब्जा किया और पचास वर्षों तक शासन किया. उनकी सफलता से प्रेरित होकर, वारंगल के काकतीयों के पास राजकोष अधिकारियों के तौर पर काम करने वाले हरिहर और बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की, जो कि आंध्र प्रदेश और भारत के इतिहास में सबसे बड़ा साम्राज्य है.[17]1347 ई. में दिल्ली सल्तनत के ख़िलाफ़ विद्रोह करते हुए अला-उद-दीन हसन गंगू द्वारा दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र, बहमनी राज्य की स्थापना की गई. 16वीं सदी के प्रारंभ से 17वीं सदी के अंत तक लगभग दो सौ वर्षों के लिए कुतुबशाही राजवंश ने आंध्र देश पर आधिपत्य जमाया.
हैदराबाद में चारमीनार
मक्का मस्जिद
औपनिवेशिक भारत में, उत्तरी सरकार ब्रिटिश मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा बन गए. अंततः यह क्षेत्र तटीय आंध्र प्रदेश के रूप में उभरा. बाद में निज़ाम ने ब्रिटिश को पांच क्षेत्र सौंपे, जो अंततः रायलसीमा क्षेत्र के रूप में उभरा. निज़ाम ने स्थानीय स्वायत्तता के बदले में ब्रिटिश शासन को स्वीकार करते हुए विशाल राज्य हैदराबाद के रूप में आंतरिक प्रांतों पर नियंत्रण बनाए रखा. इस बीच फ़्रांसीसियों ने गोदावरी डेल्टा में यानम (यानौं) पर क़ब्जा किया, और (ब्रिटिश नियंत्रण की अवधि को छोड़ कर) 1954 तक उसे अपने अधीन रखा.
1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से भारत स्वतंत्र हुआ. हैदराबाद के मुसलमान निज़ाम ने भारत से अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखना चाहा, लेकिन इस क्षेत्र के लोगों ने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए आंदोलन शुरू किया. 5 दिनों तक चलने वाले ऑपरेशन पोलो के बाद, जिसको हैदराबाद राज्य की जनता का पूरा समर्थन प्राप्त था, 1948 में हैदराबाद राज्य को भारत गणराज्य का हिस्सा बनने के लिए मजबूर किया गया.
एक स्वतंत्र राज्य प्राप्त करने के प्रयास में, और मद्रास राज्य के तेलुगू लोगों के हितों की रक्षा के लिए, अमरजीवी पोट्टी श्रीरामुलु ने आमरण उपवास किया. उनकी मौत के बाद सार्वजनिक दुहाई और नागरिक अशांति ने सरकार को मजबूर किया कि तेलुगू भाषी लोगों के लिए एक नए राज्य के गठन की घोषणा करें.1 अक्टूबर 1953 को आंध्र ने कर्नूल को अपनी राजधानी के साथ राज्य का दर्जा पाया.
1 नवम्बर 1956 को आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण के लिए आंध्र राज्य का विलय हैदराबाद राज्य के तेलंगाना प्रांत से किया गया. हैदराबाद राज्य की विगत राजधानी हैदराबाद को नए राज्य आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया गया. 1954 में फ़्रांसीसियों ने यानम पर अधिकार त्याग दिया, लेकिन संधि की एक शर्त यह थी कि जिले की अलग और स्पष्ट पहचान को कायम रखें, जो कि वर्तमान पुदुचेरी राज्य का गठन करने वाले अन्य दक्षिण भारतीय परिक्षेत्रों के लिए भी लागू था.

भूगोल और जलवायु

आम तौर पर आंध्र प्रदेश की जलवायु गर्म और नम है. राज्य की जलवायु का निर्धारण करने में दक्षिण पश्चिम मानसून की प्रमुख भूमिका है. लेकिन आंध्र प्रदेश में सर्दियां सुखद होती हैं. यह वह समय है जब राज्य कई पर्यटकों को आकर्षित करता है.
आंध्र प्रदेश में ग्रीष्मकाल मार्च से जून तक चलता है. इन महीनों में तापमान काफ़ी ऊंचा रहता है. तटीय मैदानों में गर्मियों का तापमान आम तौर पर राज्य के बाकी जगहों की तुलना में अधिक होता है. गर्मियों में, आम तौर पर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस और 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. गर्मी के दिनों में कुछ स्थानों पर तापमान उच्चतम 45 डिग्री तक भी पहुंचता है.
आंध्र प्रदेश में जुलाई से सितंबर उष्णकटिबंधीय बारिश का मौसम होता है. इन महीनों के दौरान राज्य में भारी वर्षा होती है. आंध्र प्रदेश में कुल वर्षा का लगभग एक तिहाई अंश पूर्वोत्तर मानसून की वजह से होता है. अक्टूबर महीने के आस-पास राज्य में सर्दी का मौसम आता है.आंध्र प्रदेश में अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी सर्दी के महीने हैं. राज्य का तटीय इलाका काफी लंबा होने की वजह से सर्दियों में मौसम बहुत ठंडा नहीं होता है. सर्दियों में तापमान का विस्तार आम तौर पर 13 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है.
गर्मी के महीनों के दौरान राज्य का दौरा करने के लिए आपको गर्मी के कपड़ों की अच्छी तैयारी करने की ज़रूरत पड़ेगी. मौसम का अच्छी तरह सामना करने के लिए सूती कपड़े उपयुक्त हैं.
चूंकि वर्ष के अधिकांश भाग के दौरान आंध्रप्रदेश की जलवायु अनुकूल नहीं है, राज्य का दौरा करने के लिए अक्टूबर से फ़रवरी के बीच का समय अच्छा है.

प्रभाग

आंध्र प्रदेश के जिलों का नक्शा
आंध्र प्रदेश को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है, यथा तटीय आंध्र, रायलसीमा और तेलंगाना. [18]
आंध्र प्रदेश में 23 जिला हैं: आदिलाबाद, अनंतपुर, चित्तूर, कडपा, पूर्व गोदावरी, गुंटूर, हैदराबाद, करीमनगर, खम्मम, कृष्णा, कर्नूल, महबूबनगर, मेदक, नलगोंडा, श्री पोट्टी श्रीरामुलु नेल्लूर, निज़ामाबाद, प्रकाशम, रंगारेड्डी, श्रीकाकुलम, विशाखापट्नम, विज़ियनगरम, वारंगल और पश्चिम गोदावरी.
प्रत्येक जिला कई मंडलों में विभाजित है और प्रत्येक मंडल कुछ गांवों का समूह है.
हैदराबाद राजधानी है और, निकटवर्ती जुड़वा शहर सिकंदराबाद के साथ राज्य का सबसे बड़ा शहर है. आंध्र प्रदेश का मुख्य बंदरगाह विशाखापट्नम, राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और भारतीय नौसेना के पूर्वी नौसेना कमान का घर है. विजयवाड़ा, अपनी अवस्थिति और प्रमुख रेल और सड़क मार्गों से निकटता के कारण एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र और राज्य का तीसरा सबसे बड़ा शहर है. अन्य महत्वपूर्ण शहर और कस्बें हैं: काकीनाडा, वारंगल, गुंटूर, तिरुपति, राजमंड्री, नेल्लूर, ओंगोल, कर्नूल, अनंतपुर, करीमनगर, निज़ामाबाद और एलूरु.

जनसांख्यिकी


तेलुगू अन्य भाषा कुल
हिन्दू 82% 2% 84%
मुसलमान 1% 8% (मुख्यतः उर्दू) 9%
ईसाई 4% 1% 5%
अन्य धर्म 0.5% 0.5% 1%
कुल 88.5% 11.5% 100%

जनगणना जनसंख्या
 %±
१९६१ 3,59,83,000
१९७१ 4,35,03,000
20.9%
१९८१ 5,35,50,000
23.1%
१९९१ 6,65,08,000
24.2%
२००१ 7,57,27,000
13.9%
Source:Census of India[19]
तेलुगू राज्य की राजभाषा है, जो 88.5% जनसंख्या द्वारा बोली जाती है. भारत की अत्यधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तेलुगू का तीसरा स्थान है. [20]राज्य में प्रमुख भाषाई अल्पसंख्यक समूहों में उर्दू 8.63%) और हिन्दी (0.63%) तथा तमिल (1.01%) बोलने वाले शामिल हैं. [21]भारत सरकार ने 1 नवंबर, 2008 को एक शास्त्रीय और प्राचीन भाषा के रूप में तेलुगू को नामित किया. [22]
आंध्र प्रदेश में 1% से कम बोली जाने वाली अन्य भाषाओं में कन्नड़ (0.94%), मराठी (0.84%), उड़िया (0.42%), गोंडी (0.21%) और मलयालम (0.1%) हैं. राज्य निवासियों द्वारा 0.1% से कम बोली जाने वाली भाषाओं में गुजराती (0.09%), सावरा (0.09%), कोया (0.08%), जटपु (0.04%), पंजाबी (0.04%), कोलमी (0.03%), कोंडा ( 0.03%), गडबा (0.02%), सिंधी (0.02%), गोरखाली/नेपाली (0.01%) और खोंड /कोंध (0.01%) शामिल हैं.
आंध्र प्रदेश का मुख्य जातीय समूह तेलुगू लोग हैं, जो मुख्यतः आर्य और द्रविड की मिश्रित जाति से संबंधित हैं.

अर्थ-व्यवस्था

राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए आय का मुख्य स्रोत कृषि रही है. भारत की चार महत्वपूर्ण नदियां, यथा गोदावरी, कृष्णा, पेन्ना और तुंगभद्रा राज्य में सिंचाई प्रदान करते हुए प्रवहित होती हैं. चावल, गन्ना, कपास, मिर्ची (काली मिर्च), आम और तम्बाकू स्थानीय फसल हैं. हाल ही में, वनस्पति तेल के उत्पादन के लिए प्रयुक्त फसल, जैसे कि सूरजमुखी और मूंगफली ने समर्थन पाया है. गोदावरी नदी घाटी सिंचाई परियोजना और दुनिया में सर्वोच्च, पत्थरों से बने नागार्जुन सागर बांध सहित, कई बहु राज्य सिंचाई परियोजनाएं विकासाधीन हैं.[23] [24]
राज्य ने सूचना प्रौद्योगिकी और जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है. 2004-2005 में आंध्र प्रदेश भारत के सर्वोच्च IT निर्यातकों की सूची में पांचवे स्थान पर रहा था.2004-2005 के दौरान राज्य से 2004-2005 निर्यात रु.82,700 मिलियन ($ 1,800 मिलियन) रहा था. [25]प्रति वर्ष 52.3% की दर से IT क्षेत्र का विस्तार हो रहा है. राष्ट्र के कुल IT निर्यात में 14 प्रतिशत के योगदान द्वारा, 2006-2007 में IT निर्यात रु.190,000 मिलियन ($4.5 बिलियन) तक पहुंचा, और भारत में चौथे स्थान पर रहा. [26]पहले से ही सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में राज्य के सेवा क्षेत्र का योगदान 43% है और 20% कार्य बल नियोजित है. [24]इस राज्य की राजधानी हैदराबाद को देश के थोक दवा की राजधानी माना जाता है. फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के शीर्षस्थ 10 कंपनियों का 50% इस राज्य से हैं. इस राज्य की कई कंपनियों द्वारा पहले से मोर्चा संभालने की वजह से, बुनियादी सुविधाओं के मामले में भी राज्य ने बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है.
आंध्र प्रदेश एक खनिज समृद्ध राज्य है, जो खनिज संपदा के मामले में भारत में दूसरे स्थान पर है. 30 अरब टन के अनुमान सहित, भारत के चूना पत्थर भंडार का एक तिहाई इस राज्य में है.कृष्णा गोदावरी घाटी में प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम के विशाल भंडार हैं. राज्य, कोयले के भंडार की बड़ी राशि से भी समृद्ध है. [24]
राष्ट्रीय बाज़ार में 11% की हिस्सेदारी के साथ, देश भर में जल विद्युत उत्पादन के मामले में राज्य पहले स्थान पर है.
2005 के लिए आंध्र प्रदेश का GSDP, मौजूदा क़ीमतों के अनुसार अनुमानतः $62 बिलियन आंका गया था. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा भारतीय रुपयों के मिलियन में आंकड़ों के साथ अनुमानित बाज़ार की कीमतों के लिए आंध्र प्रदेश के GSDP की प्रवृत्ति सूचक तालिका है. तदनुसार, भारत के प्रमुख राज्यों के बीच राज्य का दर्जा, समग्र GSDP के संदर्भ में चौथे[27] और प्रति व्यक्ति भी चौथे स्थान पर है. एक अन्य माप-सिद्धांत के अनुसार, भारतीय संघ के सभी राज्यों में सकल उत्पाद के मामले में राज्य तीसरे स्थान पर है. [28]
वर्ष राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (रु. MM)
1980 81,910
1985 152,660
1990 333,360
1995 798,540
2000 1,401,190
2007 2,294,610

कृषि

खाद्यान्न उत्पादन में संलग्न आंध्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था का प्राथमिक क्षेत्र कृषि है। आंध्र प्रदेश देश के प्रमुख धान उत्पादन राज्यों में से एक है और भारत में वर्जीनिया तंबाकू का लगभग 4/5 भाग का उत्पादन भी यहीं होता है। राज्य की नदियाँ, विशेषकर गोदावरी और कृष्णा कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। लंबे समय तक इनके लाभ आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों तक सीमित थे, जिन्हें सर्वोत्तम सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध थीं। स्वतंत्रता के बाद शुष्क आंतरिक क्षेत्रों के लिए इन दो नदियों के अलावा अन्य दो नदियों के पानी को एकत्र करने के प्रयास किए गए हैं। नहरों द्वारा सिंचाई करने से तेलंगाना और रायलसीमा क्षेत्रों में तटीय आंध्र प्रदेश की कृषि-औद्योगिक इकाइयों से होड़ लेती इकाइयों की संख्या बढ़ गई है।
आंध्र प्रदेश में नागरिकों का मुख्य व्यवसाय खेती है, इसके लगभग 62 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है। आंध्र प्रदेश की मुख्य फ़सल चावल है और यहाँ के लोगों का मुख्य आहार भी चावल ही है। राज्य के कुल अनाज के उत्पादन का 77 प्रतिशत भाग चावल ही है। यहाँ की अन्य प्रमुख फ़सलें - ज्वार, तंबाकू, कपास और गन्ना हैं। आंध्र प्रदेश भारत का सबसे अधिक मूँगफली पैदा करने वाला राज्य है। राज्य के क्षेत्रफल के 23 प्रतिशत हिस्से में सघन घने वन हैं। वन उत्पादों में सागवान, यूकेलिप्टस, काजू, कैस्यूरीना और इमारती लकड़ी मुख्य रूप से हैं।

सरकार और राजनीति

आंध्र प्रदेश में 294 सीटों की विधान सभा है. भारत के संसद में राज्य के 60 सदस्य हैं; उच्च सदन, राज्य सभा में 18, और निचले सदन, लोक सभा में 42. [29] [30]
1982 तक आंध्र प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) पार्टी के नेतृत्व की सरकारों का सिलसिला था. कासू ब्रह्मानंद रेड्डी ने लंबे समय तक सेवारत मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड बनाए रखा था, जिसे 1983 में एन.टी. रामाराव ने तोड़ा.पी.वी.नरसिंह राव ने भी राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर सेवा की, जो 1991 में भारत के प्रधानमंत्री बने. राज्य के प्रमुख मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं आंध्र राज्य के मुख्यमंत्री (CM) टंगुटूरी प्रकाशम, (वर्तमान आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी थे), अन्य हैं कासू ब्रह्मानंद रेड्डी, मर्री चेन्ना रेड्डी, जलगम वेंगल राव, नेडुरुमल्ली जनार्दन रेड्डी, नंदेंड्ल भास्कर राव, कोट्ला विजय भास्कर रेड्डी, एन.टी. रामाराव, नारा चंद्रबाबू नायडू और वै.एस. राजशेखर रेड्डी.
हैदराबाद उच्च न्यायालय, राज्य का प्रमुख न्यायिक निकाय
1983 में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) ने राज्य चुनावों में विजय हासिल की और एन.टी.रामाराव (NTR) ने राज्य का मुख्य मंत्री बन कर पहली बार आंध्र प्रदेश की राजनीति में दूसरे दुर्जेय राजनीतिक दल को प्रवर्तित किया और इस तरह आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक पार्टी के एकाधिकार को तोड़ा. कुछ महीनों के बाद, जब NTR दूर संयुक्त राज्य अमेरिका में इलाज के लिए गए थे, नंदेंड्ला भास्कर राव ने अन्यायपूर्वक सत्ता छीन ली. वापस आने के बाद, NTR ने राज्य के राज्यपाल को सफलतापूर्वक विधानसभा भंग करने और दुबारा चुनाव के लिए मनाया. TDP ने भारी बहुमत से चुनाव जीता.
डॉ. मर्री चेन्ना द्वारा मामलों की पतवार संभालते हुए INC पार्टी की सत्ता में वापसी के साथ ही 1989 में सामूहिक चुनावों ने NTR के 7-वर्षीय शासन को समाप्त किया. उन्हें एन. जनार्धन रेड्डी ने प्रतिस्थापित किया, जब कि बाद में कोट्ला विजय भास्कर रेड्डी ने उनकी जगह ली.
1994 में आंध्र प्रदेश ने दुबारा TDP को जनादेश दिया और फिर से NTR मुख्यमंत्री बने. NTR के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने राजनीतिक तिकड़म भिड़ा कर, पीठ पीछे वार करते हुए उनसे सत्ता छीन ली. इस विश्वासघात को पचा पाने में असमर्थ NTR की बाद में दिल के दौरे से मृत्यु हो गई.TDP ने 1999 में चुनाव जीता, पर मई 2004 के चुनावों में वै.एस. राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व वाली INC प्रधान गठबंधन से उसकी हार हुई.
2008 में फ़िल्म अभिनेता चिरंजीवी द्वारा प्रजा राज्यम पार्टी (PRP) का गठन किया गया और 2009 चुनावों में त्रिकोणीय संघर्ष सामने आया. विशाल मीडिया प्रचार और अपेक्षाओं के बावजूद, वह परिवर्तक खेल नहीं खेल पाया और केवल 18 सीटें जीतने में सफल रहा. आशा की किरण यह है कि वह कांग्रेस के 36 प्रतिशत और तेलुगू देशम के 25 प्रतिशत की तुलना में कुल मतों का 17 प्रतिशत जीतने में कामयाब रहा.
प्रजा राज्यम पार्टी और TDP, TRS, CPI और CPM के वृहत् गठबंधन को परे रखते हुए वै.एस. राजशेखर रेड्ड़ी दुबारा मुख्यमंत्री बने. YSR रेड्डी, आं.प्र. के इतिहास में एक सत्र में बतौर CM संपूर्ण 5 वर्ष पूरे करने वाले प्रथम मुख्यमंत्री बने.

संस्कृति

सांस्कृतिक संस्थाएं

आंध्र प्रदेश में कई संग्रहालय हैं, जिनमें शामिल है- गुंटूर शहर के पास अमरावती में स्थित पुरातत्व संग्रहालय, जिसमें आस-पास के प्राचीन स्थलों के अवशेष सुरक्षित हैं, हैदराबाद का सालारजंग संग्रहालय, जिसमें स्थापत्य, चित्रकला और धार्मिक वस्तुओं का विविध संग्रह है, विशाखापट्नम में स्थित विशाखा संग्रहालय है, जहां डच पुनर्वास बंगले में स्वतंत्रता पूर्व मद्रास प्रेसिडेंसी का इतिहास प्रदर्शित है. [31]विजयवाडा में स्थित विक्टोरिया जुबिली संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, चित्र, देवमूर्तियां, हथियार, चाकू-छुरियां, चम्मच आदि और शिलालेखों का अच्छा संग्रह है. [32]

पाक शैली

अन्य भारतीय व्यंजनों के साथ परोसी गई हैदराबादी बिरयानी
आंध्र प्रदेश के व्यंजन, सभी भारतीय व्यंजनों में सबसे ज़्यादा मसालेदार के रूप में विख्यात हैं.[कृपया उद्धरण जोड़ें] भौगोलिक क्षेत्र, जाति, परंपराओं के आधार पर आंध्र व्यंजन में कई भिन्नताएं हैं. अचार और चटनी, जिसे तेलुगू में पच्चडी कहा जाता है, आंध्र प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है और कई क़िस्म के अचार और चटनी इस राज्य की ख़ासियत है. टमाटर, बैंगन और अंबाडा (गोंगूरा ) सहित व्यावहारिक तौर पर प्रत्येक सब्ज़ी से चटनी बनाई जाती है.आम के अचारों में संभवतः आवकाय आंध्र के अचारों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है.
चावल प्रधान भोजन है और इसका प्रयोग विविध तरीकों से किया जाता है. आम तौर पर, चावल को या तो उबाला जाता है और सब्जी के साथ खाया जाता है, या फिर लपसी बना ली जाती है, जो पतली परत जैसा पकवान अट्टु (पेसरट्टु - जो चावल और मूंग दाल के मिश्रण से बनता है) या डोसा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है.
मांस, तरकारियां और साग से विभिन्न मसालों के साथ विविध ख़ुशबूदार स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जाते हैं.
हैदराबादी पाक-शैली मुसलमानों से प्रभावित है, जो 14वीं सदी में तेलंगाना में आए थे. ज़्यादातर व्यंजन मांस के इर्द-गिर्द घूमते हैं. मोहक मसालों और घी के ज़्यादा इस्तेमाल से बने ये व्यंजन स्वादिष्ट और खुशबूदार होते हैं. मांसाहारी व्यंजन में मेमने, मुर्गी और मछली का मांस सबसे ज़्यादा व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है. हैदराबादी व्यंजनों में सबसे विशिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन शायद बिरयानी है.

नृत्य

कुचिपुड़ी नृत्य भंगिम
जयपा सेनानी (जयपु नायडू) पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने आंध्र प्रदेश में प्रचलित नृत्यों के बारे में लिखा है. [33]नृत्य के दोनों, देसी और मार्गी रूपों को संस्कृत पुस्तक 'नृत्य रत्नावली' में शामिल किया गया है. इसमें आठ अध्याय हैं. लोक-नृत्य के रूप यथा पेरनी, प्रेरंखना, शुद्ध नर्तन, सरकारी, रासका, दंड रासका, शिव प्रिया, कंदुक नर्तन, भंडिका नृत्यम्, चरण नृत्यम्, चिंदु, गोंडली और कोलाटम का वर्णन किया गया है. पहले अध्याय में लेखक ने मार्ग और देसी, तांडव और लास्य, नाट्य और नृत्य के बीच मतभेद की चर्चा की है. दूसरे और तीसरे अध्याय में आंगिक-अभिनय, चारिस, स्थानक और मंडलों की चर्चा की है.चौथे अध्याय में करण, अंगहार और रेचक वर्णित हैं. बाद के अध्यायों में उन्होंने स्थानीय नृत्य रूपों अर्थात् देसी नृत्य का वर्णन किया है. अंतिम अध्याय में उन्होंने कला और नृत्य के अभ्यास का वर्णन किया है.
आंध्र में शास्त्रीय नृत्य, पुरुष और महिलाओं, दोनों द्वारा किया जा सकता है; लेकिन अधिकांशतः महिलाएं ही इसे सीखती हैं. कुचिपूड़ी राज्य का सर्वाधिक प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य रूप है. राज्य के इतिहास में विद्यमान विभिन्न नृत्य रूप हैं चेंचु भागोतम, कुचिपूड़ी, भामाकलापम, बुर्रकथा, वीरनाट्यम, बुट्ट बोम्मलु, डप्पु, तप्पेट गुल्लु, लंबाडी, बोनालु, धीम्सा, कोलाट्टम और चिंदु.

त्यौहार

साहित्य

नन्नय्या, तिकन्ना, और येर्रप्रगडा वह त्रिमूर्ति हैं, जिन्होंने महान संस्कृत महाकाव्य महाभारत का तेलुगू में अनुवाद किया. एक और कवि हैं बोम्मेरा पोतना, जिन्होंने वेद व्यास द्वारा संस्कृत में लिखे गए श्रीमद्भागवतम् का तेलुगू में अनुवाद करते हुए श्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद् आंध्र महाभागवतमु की रचना की. नन्नय्या को आदिकवि कहा जाता है, जिन्हें राजमहेंद्रवरम (राजमंड्री) पर शासन करने वाले राजा राजराजनरेंद्र द्वारा ने संरक्षण दिया.विजयनगर के सम्राट कृष्णदेव राय ने आमुक्तमाल्यदा की रचना की. कडपा निवासी तेलुगू कवि वेमना भी दार्शनिक कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं. कंदुकूरी वीरेशलिंगम के बाद के तेलुगू साहित्य को आधुनिक साहित्य कहा जाता है, गद्य तिकन्ना कहे जाने वाले वीरेशलिंगम, तेलुगू-भाषा के सामाजिक उपन्यास सत्यवती चरितम के लेखक हैं.अन्य आधुनिक लेखकों में शामिल हैं ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता श्री विश्वनाथ सत्य नारायण और डॉ. सी. नारायण रेड्डी. आंध्र प्रदेश के मूल निवासी और क्रांतिकारी कवि श्री श्री ने तेलुगू साहित्य में अभिव्यक्ति के नए रूप प्रविष्ट किए.
श्री पुट्टपर्ती नारायणाचार्युलु भी तेलुगू साहित्य के विद्वान कवियों में से एक हैं. वे श्री विश्वनाथ सत्यनारायण के समकालीन थे. श्री पुट्टपर्ती नारायणाचार्युलु ने द्विपदकाव्य[तथ्य वांछित] शिवतांडवम और पांडुरंग महात्यम जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं.
आंध्र प्रदेश से अन्य उल्लेखनीय लेखकों में श्रीरंगम श्रीनिवास राव, गुर्रम जाशुवा, चिन्नय्या सूरी, विश्वनाथ सत्यनारायण और वड्डेरा चंडीदास शामिल हैं.

फ़िल्में

आंध्र प्रदेश भारत के सबसे अधिक सिनेमा हॉल वाला राज्य है, जहां लगभग 2700 सिनेमा-घर हैं. राज्य द्वारा एक वर्ष में लगभग 200 फिल्मों का निर्माण किया जाता है. भारत के डोलबी डिजिटल थियेटरों में लगभग 40% (930 में 330) यहां स्थित हैं. [34]अब यहां एक बड़े 3D स्क्रीन के साथ IMax थियेटर और 3-5 मल्टीप्लेक्स भी हैं. टॉलीवुड, भारत में सबसे अधिक संख्या में फिल्मों का निर्माण करता है. टॉलीवुड का अपूर्व सितारा है एन.टी.आर.उन्होंने अपनी पार्टी के गठन के 9 महीनों में मुख्यमंत्री बन कर इतिहास रचा, जो कि एक विश्व रिकार्ड भी है और इसे और कोई हासिल नहीं कर पाया है.

संगीत

राज्य के पास संगीत की बहुमूल्य विरासत है. कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्ति त्यागराज, अन्नमाचार्य, क्षेत्रय्या सहित भद्राचल रामदास जैसी कर्नाटक संगीत की कई महान विभूतियां तेलुगू वंशस्थ थीं. महान मैंडोलिन वादक, मैंडोलिन श्रीनिवास भी आंध्र प्रदेश से हैं. राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोक गीत भी लोकप्रिय हैं. महान कर्नाटक गायक, श्री मंगलमपल्ली बालमुरलीकृष्ण भी तेलुगू वंश से हैं, जिन्होंने कर्नाटक संगीत के कुछ और रागों का आविष्कार किया.

धर्म

आंध्र प्रदेश सभी जातियों के हिंदू संतों का घर है. एक महत्वपूर्ण पिछड़ी जाति की हस्ती, संत योगी श्री पोतुलूरी वीर ब्रह्मेंद्र स्वामी विश्वब्राह्मण (सुनार) जाति में पैदा हुए थे, जिनके शिष्यों में ब्राह्मण, हरिजन और मुस्लिम शामिल थे.[35] मछुआरे रघु भी शूद्र थे. [36]संत काकय्या छुरा(मोची) हरिजन संत थे.
कई महत्वपूर्ण आधुनिक हिंदू संत आंध्र प्रदेश से हैं. इनमें शामिल हैं निंबार्क, जिन्होंने द्वैताद्वैत की स्थापना की, अरविंद मिशन की मां मीरा जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता का समर्थन किया, श्री सत्य साई बाबा जो पूजा में धार्मिक एकता का समर्थन करते हैं, स्वामी सुंदर चैतन्यानंदजी.

तीर्थ-स्थान और धार्मिक स्थल

तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर, तिरुपति में स्थित अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल.
संपूर्ण भारत में तिरुपति या तिरुमला हिंदुओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ-स्थान है. यह शहर दुनिया में सबसे संपन्न (किसी भी धार्मिक आस्था का) तीर्थ-स्थान है. इसका मुख्य मंदिर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है. तिरुपति चित्तूर जिले में स्थित है. पूर्वी गोदावरी जिले के अन्नवरम में सत्यनारायण स्वामी का मंदिर प्रसिद्ध है. राष्ट्रीय महत्व का एक और अत्यंत लोकप्रिय तीर्थ-स्थल है सिंहाचलम. पौराणिक कथाओं में सिंहाचलम को निंदक-पिता हिरण्यकश्यप से प्रह्लाद को बचाने वाले उद्धारक भगवान नरसिंह का निवास माना गया है.विजयवाडा शहर में स्थित कनक दुर्गा मंदिर आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में एक है. श्री कालहस्ती एक महत्वपूर्ण प्राचीन शिव मंदिर है, और वह चित्तूर जिले के स्वर्णमुखी नदी के किनारे पर स्थित है.
सिंहाचलम एक पहाड़ी मंदिर है, जो विशाखापट्नम से 16 कि.मी. की दूरी पर शहर की उत्तरी दिशा में पहाड़ के दूसरी ओर स्थित है. आंध्र प्रदेश के अति उत्कृष्ट तराशे गए मंदिरों में से एक, यह घने जगंलों से घिरे पहाड़ियों के बीच स्थित है.सुंदर रूप से गढ़े गए 16-खंभों वाला नाट्य मंडप और 96-खंभों वाला कल्याण मंडप, मंदिर के कुशल वास्तु-शिल्प की गवाही देते हैं. इष्टदेव श्री लक्ष्मीनरसिंह स्वामी भगवान की छवि को चंदन की मोटी परत से ढका जाता है. विष्णु के एक अवतार, भगवान नरसिंह को समर्पित यह मंदिर भारत का सबसे पुराना मंदिर है, जिसे 11वीं सदी में एक चोला राजा कोल्लुतुंगा ने निर्मित किया था. एक विजय स्तंभ का निर्माण, उड़ीसा के गजपति राजाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद श्री कृष्ण देव राय द्वारा किया गया. इस मंदिर में प्राचीन तेलुगू शिलालेख मिलेंगे. यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. इसकी वास्तुकला द्रविड (दक्षिण भारतीय) है. एक आम धारणा है कि भगवान बाढ़, चक्रवात, भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक विपदाओं से वैज़ाग की रक्षा कर रहे हैं. आज तक प्राकृतिक विपदाओं से एक भी मौत नहीं हुई है. एक अनुष्ठान के रूप में शादी से पहले वर-वधू की जोड़ियां इस मंदिर में जाती हैं. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के सबसे भीड़ वाले मंदिरों में से एक है.
हुसैन सागर झील पर बुद्ध की मूर्ति.
श्रीशैलम आंध्र प्रदेश में स्थित एक और राष्ट्रीय महत्व का प्रमुख मंदिर है. यह भगवान शिव को समर्पित है. विभिन्न ज्योतिर्लिंगों में से एक यहां अवस्थित है.स्कंदपुराण में एक अध्याय "श्रीशैल कांडम्" इसे समर्पित है, जो इसकी प्राचीनता की ओर संकेत करता है. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि पिछली सहस्राब्दियों के तमिल संतों ने भी इस मंदिर का गुणगान करते हुए भजन गाए हैं.कहा जाता है कि आदि शंकर ने भी इस मंदिर का दौरा किया और उसी समय "शिवानंद लहरी" की रचना की. मान्यता है कि शिव के पवित्र बैल वृषभ ने भी महाकाली के मंदिर में उस समय तक तपस्या की, जब तक कि शिव और पार्वती उनके समक्ष मल्लिकार्जुन और भ्रमरांबा बन कर प्रकट नहीं हुए. मंदिर 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग में से एक है; भगवान राम ने स्वयं सहस्रलिंग की स्थापना की, जबकि पांडवों ने मंदिर के आंगन में पंचपांडव लिंगों की स्थापना की.श्रीशैलम कर्नूल जिले में स्थित है.
भद्राचलम श्री राम मंदिर और गोदावरी नदी के लिए जाना जाता है. यह वही जगह है जहां प्रसिद्ध भक्त रामदास (मूल नाम - कंचेर्ल गोपन्ना) ने भगवान राम को समर्पित अपने भक्तिपरक गीतों की रचना की.माना जाता है कि त्रेतायुग में भगवान राम ने कुछ वर्ष यहां गोदावरी नदी के किनारे बिताए. किंवदंती है कि भद्रा(पहाड़) ने गंभीर तपस्या के बाद राम से यहां स्थाई निवास बनाने की मांग की थी. कहते हैं भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ भद्रगिरि में बस गए. भद्राचलम खम्मम जिले में स्थित है. गोपन्ना ने 17वीं सदी में तानीशा के शासन काल में लोगों से धन जुटा कर, राम मंदिर का निर्माण किया. उन्होंने भगवान राम और सीता की शादी का जश्न मनाना शुरू कर दिया. तब से प्रति वर्ष श्री राम नवमी मनाया जाता है. आंध्र प्रदेश सरकार इस समारोह के लिए हर साल भद्राचलम को मोती भेजती है.
बसर - सरस्वती मंदिर, विद्या की देवी सरस्वती का एक और प्रसिद्ध मंदिर है. बसरा आदिलाबाद जिले में स्थित है. यागंटी गुफाएं भी आंध्र प्रदेश के महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्रों में एक है. महानंदी के अलावा, हरा-भरा कर्नूल जिला एक और तीर्थ केंद्र है. प्रसिद्घ हिंदू बिरला मंदिर और रामप्पा मंदिर, मुस्लिम मक्का मस्जिद और चारमीनार, साथ ही हुसैन सागर झील पर बुद्ध की प्रतिमा आंध्र प्रदेश के अद्भुत धार्मिक स्मारकों में शामिल हैं.
रामप्पा मंदिर
भारत के आंध्र प्रदेश में कनकदुर्गा मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है. यह कृष्णा नदी के तट पर विजयवाड़ा शहर के इंद्रकीलाद्रि पहाड़ी पर स्थित है. एक कथा के अनुसार, वर्तमान हरा-भरा विजयवाड़ा किसी ज़माने में चट्टानी क्षेत्र था, जहां कृष्णा नदी के प्रवाह को रोकते हुए पहाड बिखरे थे. इस प्रकार भूमि, निवास के लिए या खेती के योग्य नहीं थी. भगवान शिव से प्रार्थना किए जाने पर उन्होंने पहाड़ियों को कृष्णा नदी के लिए रास्ता बनाने का निर्देश दिया. और चमत्कार! नदी भगवान शिव द्वारा पहाड़ियों में किए गए छेद "बेज्जम" या सुरंगों के माध्यम से बिना रोक-टोक के पूरे जोश में बहने लगी.इस तरह स्थान का नाम बेज़वाडा पड़ा.
इस स्थान से जुड़ी हुई पौराणिक कथाओं में एक यह है कि अर्जुन ने भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए इंद्रकीला पहाड़ी की चोटी पर प्रार्थना की और उनकी विजय के बाद इस शहर का नाम "विजयवाड़ा" पड़ा. एक और लोकप्रिय दंतकथा राक्षस राजा महिषासुर पर देवी कनकदुर्गा की विजय से जुड़ी है.कहा जाता है कि एक समय इस क्षेत्र के लोगों के लिए राक्षसों के बढ़ते अत्याचार असहनीय हो गए. साधु इंद्रकीला ने घोर तपस्या की और जब देवी प्रकट हुईं, तो साधु ने उनसे अपने सिर पर निवास करने और दुष्ट राक्षसों पर निगरानी रखने का आग्रह किया.उनकी इच्छा के अनुसार, राक्षसों का संहार करने के बाद, देवी दुर्गा ने इंद्रकीला को अपना स्थाई निवास बनाया. बाद में उन्होंने राक्षसों के चंगुल से विजयवाडा के निवासियों को मुक्त करते हुए राक्षस राजा महिषासुर का वध किया. दशहरा कहलाने वाले नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है.सबसे महत्वपूर्ण हैं सरस्वती पूजा और तेप्पोत्सवम. यहां प्रति वर्ष देवी दुर्गा के लिए दशहरा मनाया जाता है. बड़ी संख्या में भक्तगण इस रंगारंग समारोह में भाग लेते हैं और कृष्णा नदी में पवित्र स्नान करते हैं.

अन्य सांस्कृतिक तत्व

बापू की चित्रकारी, नंडूरी सुब्बाराव के येंकी पाटलू (येंकी नामक धोबन पर/द्वारा गीत), शरारती बुडुगु (मुल्लपूडी द्वारा रचित एक किरदार), अन्नमय्या के गीत, आवकाय (आम के अचार का एक प्रकार, जिसमें गुठली को निकाला नहीं जाता), गोंगूरा (अंबाडा पौधे की चटनी) अट्लतद्दी (एक मौसमी त्योहार, मुख्यतः किशोर युवतियों के लिए), गोदावरी नदी का तट, डूडू बसवन्ना (नई फसल के त्योहार संक्रांति के दौरान समारोहिक बैल को सजा कर घर-घर प्रदर्शन के लिए ले जाना) तेलुगू संस्कृति में वर्णित है.दुर्गी ग्राम जाना जाता है प्रस्तर-शिल्प, नरम पत्थरों में मूर्तियां तराशने के लिए, जिन्हें अपक्षय के ख़तरे से बचाने के लिए छाया में प्रदर्शित करना ज़रूरी है.'कलंकारी' एक प्राचीन कला रूप है, जिसका संबंध हड़प्पा की सभ्यता से है. आंध्र, गुड़िया बनाने के लिए भी मशहूर है. गुड़ियों को लकड़ी, मिट्टी, सूखी घास और हल्के वज़न वाली मिश्र धातुओं से बनाया जाता है. तिरुपति लाल लकड़ी की नक्काशियों के लिए मशहूर है. कोंडपल्ली गहरे रंगों वाले मिट्टी के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है. वैज़ाग में स्थित ईटिकोप्पक्का खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है.निर्मल चित्र बहुत ही अर्थपूर्ण हैं और आम तौर पर इन्हें काले रंग की पृष्ठभूमि में चित्रित किया जाता है. कहानी सुनाना भी आंध्र का एक कला रूप है. 'यक्ष गानम', 'बुर्र कथा' (आम तौर पर तीन लोगों द्वारा, विभिन्न संगीत वाद्य-यंत्रों का प्रयोग करते हुए कथा सुनाना), 'जंगम कथलु', 'हरि कथलु', 'चेक्क भजन', 'उरुमल नाट्यम' (आम तौर पर त्योहारों पर किया जाता है, जहां ऊंचे संगीत की लय पर गोलाकार समूहों में लोग नृत्य करते हैं), 'घट नाट्यम' (सिर पर मिट्टी के बर्तन रख कर प्रदर्शन) सभी विशाखा में आंध्रप्रदेश पलुमांब त्यौहार से जुड़ा अद्वितीय लोक-नृत्य है.

शिक्षा

आंध्र प्रदेश में उच्च शिक्षा के 20 से अधिक संस्थान हैं.सभी प्रमुख कला, मानविकी, विज्ञान, इंजीनियरिंग, कानून, चिकित्सा, व्यापार और पशु चिकित्सा विज्ञान संबंधी विषय उपलब्ध हैं, जिसमें स्नातक से स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई हो सकती है.सभी प्रमुख क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान संचालित किया जा रहा है.
आंध्र प्रदेश में 1330 कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय; 1000 MBA और MCA कॉलेज; 500 इंजीनियरिंग कॉलेज और 53 मेडिकल कॉलेज हैं. उच्च शिक्षा में छात्र व शिक्षकों का अनुपात 19:1 है. 2001 की जनगणना के अनुसार, आंध्र प्रदेश में समग्र साक्षरता दर 60.5% है. जहां पुरुष साक्षरता दर 70.3% है, महिला साक्षरता दर केवल 50.4% होते हुए चिंताजनक स्तर पर है.
राज्य में कई संस्थानों की स्थापना द्वारा हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. आंध्र प्रदेश में प्रतिष्ठित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी एंड साइंस, (BITS पिलानी हैदराबाद कैम्पस) और IIT हैदराबाद हैं. अन्तर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद (IIIT-H), हैदराबाद विश्वविद्यालय (हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय) और इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस (ISB) अपने मानकों के लिए राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नॉलजी और द इंस्टीट्यूट ऑफ़ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग टेक्नॉलजी एंड एप्लाइड न्यूट्रिशन (NIFT) भी हैदराबाद में स्थित हैं. प्रतिष्ठित उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद में स्थित है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने कई समितियों की सिफारिशों को पूरा करते हुए प्रथम स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना का गौरव हासिल किया है.इस प्रकार आंध्र प्रदेश विधानसभा के अधिनियम सं.6 द्वारा "आंध्र प्रदेश स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय" स्थापित किया गया था और 9-4-1986 को आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री एन.टी.रामाराव द्वारा इसका उद्घाटन किया गया था.इस स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय ने 01-11-1986 से विजयवाड़ा में कार्य करना शुरू कर दिया. इसके संस्थापक श्री एन.टी.रामाराव की मृत्यु के बाद उनके नाम पर 1998 के अधिनियम सं.4 के ज़रिए 2.2.९८ से विश्वविद्यालय का नाम बदल कर NTR स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय रखा गया.

समाचार पत्र

आंध्र प्रदेश में कई तेलुगू भाषा के समाचार पत्र हैं. ईनाडु , आंध्र ज्योति , साक्षी , प्रजाशक्ति , वार्ता , आंध्र भूमि , विशालांध्रा , सूर्या और आंध्र प्रभा राज्य के प्रमुख तेलुगू-भाषा के समाचार पत्र हैं.
आंध्र प्रदेश के उर्दू भाषा के समाचार पत्रों में शामिल हैं सियासत डेली , मुन्सिफ़ डेली , रहनुमा-ए-दक्खन , इतिमद उर्दू डेली , अवाम और द मिलाप डेली .
आंध्र प्रदेश में डेक्कन क्रॉनिकल , द हिंदू , द टाइम्स ऑफ इंडिया , द न्यू इंडियन एक्सप्रेस , द इकोनॉमिक टाइम्स , द बिजनेस लाइन सहित कई अंग्रेज़ी भाषा के समाचार पत्र हैं.
आंध्र प्रदेश कई हिन्दी भाषा के समाचार पत्रों का भी घर है. इनमें हैं स्वतंत्र वार्ता , विशाखपट्नम निज़ामाबाद, और हिन्दी मिलाप , जो कि हैदराबाद से प्रकाशित सबसे पुराना हिन्दी समाचार पत्र है.

पर्यटन

बेलम गुफाएं
पर्यटन विभाग द्वारा आंध्र प्रदेश का प्रचार "भारत का कोहिनूर " के रूप में किया जा रहा है.
आंध्र प्रदेश कई धार्मिक तीर्थ केंद्रों का घर है. तिरुपति, भगवान वेंकटेश्वर का निवास, दुनिया में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला (किसी भी धर्म का) धार्मिक केंद्र है.[कृपया उद्धरण जोड़ें] नल्लमला पहाड़ियों में बसा श्रीशैलम, श्री मल्लिकार्जुन का निवास है और भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है. अमरावती का शिव मंदिर पंचाराममों में एक है, वैसे ही यादगिरीगुट्टा में विष्णु के अवतार श्री लक्ष्मी नरसिंह का वास है. मंदिर की नक्काशियों के लिए वरंगल में स्थित रामप्पा मंदिर और हज़ार स्तंभों का मंदिर प्रसिद्ध है. राज्य में अमरावती, नागार्जुन कोंडा, भट्टीप्रोलु, घंटशाला, नेलकोंडपल्ली, धूलिकट्टा, बाविकोंडा, तोट्लकोंडा, शालिगुंडेम, पावुरालकोंडा, शंकरम, फणिगिरि और कोलनपाका में कई बौद्ध केंद्र हैं.
6वीं शताब्दी में बादामी चालुक्यों ने (बादामी कर्नाटक में है) आलमपुर के ब्रह्मा मंदिर का निर्माण किया, [37] जो चालुक्य कला और शिल्प-कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. विजयनगर साम्राज्य ने असंख्य स्मारक, श्रीशैलम मंदिर और लेपाक्षी मंदिरों का निर्माण किया.
विशाखापट्नम में गोल्डन बीच, बोर्रा में एक लाख वर्ष पुराने चूना-पत्थर की गुफाएं, सुरम्य अरकु घाटी, हार्सली पहाड़ियों के हिल-रिसॉर्ट, पापी कोंडलु के संकरे रास्ते से गोदावरी नदी में नौका-दौड़, इट्टिपोतला, कुंतला के झरने और तालकोना में समृद्ध जैव-विविधता, इस राज्य के कुछ प्राकृतिक आकर्षणों में शामिल हैं. कैलाशगिरि विशाखापट्नम में समुद्र के पास है. कैलाशगिरि पहाड़ी की चोटी पर एक बग़ीचा है. विशाखापत्तनम, INS करासुरा पनडुब्बी संग्रहालय (भारत में अपनी तरह का अकेला), भारत का सबसे लंबा समुद्र-तटीय सड़क, यारडा समुद्र-तट, अरकु घाटी, VUDA पार्क, और इंदिरा गांधी चिड़ियाघर जैसे कई पर्यटक आकर्षणों का घर है.
बोर्रा गुफाएं
बोर्रा गुफाएं भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में विशाखापट्नम के समीप पूर्वी घाट के अनंतगिरि पहाड़ियों में स्थित है.ये मध्यम समुद्री तल से लगभग 800 से 1300 मीटर की ऊंचाई पर हैं, और लाखों बरस पहले के आरोही और अवरोही निक्षेप के लिए प्रसिद्ध हैं. वर्ष 1807 में ब्रिटिश भूविज्ञानी विलियम किंग जॉर्ज द्वारा इनकी खोज की गई. गुफा का नाम गुफा के अंदर के एक गठन से पड़ा है, जो देखने में मानव मस्तिष्क जैसा लगता है, जिसे स्थानीय भाषा तेलुगू में बुर्रा कहा जाता है.इसी तरह, बेलम गुफाओं का गठन करोड़ों साल पहले चित्रावती नदी द्वारा चूना-पत्थर संग्रहों के कटाव द्वारा हुआ.इन चूना-पत्थर की गुफाओं का गठन कार्बानिक एसिड - या चूना-पत्थर और पानी के बीच प्रतिक्रिया की वजह से हल्के अम्लीय भूमिगत जल की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है.
बेलम गुफाएं भारतीय उप महाद्वीप में दूसरी सबसे बड़ी गुफा-प्रणाली है. बेलम गुफाओं का नाम, गुफा के लिए संस्कृत में प्रयुक्त शब्द बैलम से व्युत्पन्न है. तेलुगू में ये गुफाएं बेलम गुहलु नाम से जानी जाती हैं. बेलम गुफाओं की लंबाई 3229 मीटर होते हुए, उसे भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफा बनाती है. बेलम गुफाओं में लंबे गलियारे, विशाल कोठरियां, मीठे पानी के सुरंग और नालियां हैं. गुफा का गहरा बिंदु120-फुट (37 मी.) प्रवेश द्वार से है और यह पातालगंगा के रूप में जाना जाता है.
हार्सली पहा़ड़ी की ऊंचाई 1265 मीटर है, और यह आंध्र प्रदेश का प्रसिद्ध गर्मियों का पहाड़ी सैरगाह है, जो बेंगलूर से लगभग 160 कि.मी. दूर और तिरुपति से 144 कि.मी. की दूरी पर है. इसके पास मदनपल्ली शहर बसा है. प्रमुख पर्यटकों के लिए आकर्षणों में मल्लम्मा मंदिर और ऋषि वैली स्कूल शामिल हैं. 87 कि.मी. की दूरी पर हार्सली पहाड़ी कौंडिन्या वन्यजीव अभयारण्य के लिए प्रस्थान बिंदु है.
चारमीनार, गोलकोंडा किला, चंद्रगिरि किला, चौमुहल्ला पैलेस और फलकनुमा पैलेस राज्य के कुछ स्मारक हैं.
कृष्णा जिला के विजयवाडा में कनकदुर्गा मंदिर, द्वारकातिरुमला में वेंकटेश्वर मंदिर, पश्चिम गोदावरी जिला (इसे चिन्न तिरुपति भी कहा जाता है), श्रीकाकुलम जिले के अरसवेल्ली में सूर्य मंदिर भी आंध्र प्रदेश में देखने लायक स्थान हैं. अन्नवरम सत्यनारायण स्वामी का मंदिर पूर्वी गोदावरी जिले में है

परिवहन

आंध्र प्रदेश के प्रमुख सड़क संपर्क
विशाखापट्नम बंदरगाह
सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन, दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्यालय
राज्य द्वारा कुल 1,46,944 कि.मी. लंबी सड़कों का अनुरक्षण किया जाता है, जिसमें राज्य राजमार्ग 42,511 कि.मी., राष्ट्रीय राजमार्ग 2949 कि.मी. और जिला सड़कें 1,01,484 कि.मी. शामिल हैं.आंध्र प्रदेश में वाहन के विकास की दर 16% होते हुए देश में सबसे अधिक है. [38]
आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (APSRTC) आंध्र प्रदेश सरकार के स्वामित्व वाली प्रमुख सार्वजनिक परिवहन निगम है, जो सभी शहरों और गांवों को जोड़ती है. सबसे बड़ा वाहनों का बेड़ा रखने और प्रतिदिन सबसे अधिक क्षेत्र आवृत करने/ आवाजाही के लिए APSRTC को गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड का भी गौरव हासिल है. इनके अलावा, राज्य के प्रमुख शहरों और कस्बों को जोड़ते हुए कई निजी ऑपरेटर हजारों बसें चलाते हैं. कार, मोटरयुक्त स्कूटर और साइकिल की तरह निजी वाहनों ने भी शहर और आसपास के गांवों में स्थानीय परिवहन के एक बड़े हिस्से को घेर रखा है.
राज्य में पांच हवाई अड्डे हैं: हैदराबाद (राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय)(राज्य में सबसे बड़ा), विशाखापट्नम, विजयवाड़ा, राजमंड्री और तिरुपति. सरकार द्वारा अन्य छह शहरों में हवाई अड्डे शुरू करने की योजना है: नेल्लूर, वारंगल, कडपा, ताडेपल्लीगुडेम, रामगुंडेम और ओंगोल.
आंध्र प्रदेश के पास विशाखापट्नम और काकीनाडा में भारत के दो प्रमुख बंदरगाह हैं और मछलीपट्नम, निज़ामपट्नम(गुंटूर) और कृष्णपट्नम में तीन छोटे बंदरगाह हैं. विशाखपट्नम के निकट गंगावरम में एक और निजी बंदरगाह विकसित किया जा रहा है. यह गहरा समुद्र पत्तन, बड़े समुद्री जहाजों को भारतीय तट में प्रवेश अनुमत करते हुए, 200,000-250,000 DWT तक के समुद्री जहाजों को जगह दे सकता है.
साभार- विकिपीडिया