नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

हिंदी की पहली बोलती फिल्म-आलमआरा

Alam Ara poster, 1931.jpg

आलमआरा (विश्व की रौशनी) 1931 में बनी हिन्दी भाषा और भारत की पहली सवाक (बोलती) फिल्म है। इस फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी हैं। ईरानी ने सिनेमा में ध्वनि के महत्व को समझते हुये, आलमआरा को और कई समकालीन सवाक फिल्मों से पहले पूरा किया। आलम आरा का प्रथम प्रदर्शन मुंबई (तब बंबई) के मैजेस्टिक सिनेमा में 14 मार्च 1931 को हुआ था। यह पहली भारतीय सवाक इतनी लोकप्रिय हुई कि "पुलिस को भीड़ पर नियंत्रण करने के लिए सहायता बुलानी पड़ी थी"

आलमआरा एक राजकुमार और बंजारन लड़की की प्रेम कथा है। यह जोसफ डेविड द्वारा लिखित एक पारसी नाटक पर आधारित है। जोसफ डेविड ने बाद में ईरानी की फिल्म कम्पनी में लेखक का काम किया। फिल्म की कहानी एक काल्पनिक, ऐतिहासिक कुमारपुर नगर के शाही परिवार पर आधारित है। फिल्म में एक राजा और उसकी दो झगड़ालू पत्नियां दिलबहार और नवबहार है। दोनों के बीच झगड़ा तब और बढ़ जाता है जब एक फकीर भविष्यवाणी करता है कि राजा के उत्तराधिकारी को नवबहार जन्म देगी। गुस्साई दिलबहार बदला लेने के लिए राज्य के प्रमुख मंत्री आदिल से प्यार की गुहार करती है पर आदिल उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। गुस्से में आकर दिलबहार आदिल को कारागार में डलवा देती है और उसकी बेटी आलमआरा को देशनिकाला दे देती है।

आलमआरा को बंजारे पालते हैं। युवा होने पर आलमआरा महल में वापस लौटती है और राजकुमार से प्यार करने लगती है। अंत में दिलबहार को उसके किए की सजा मिलती है, राजकुमार और आलमआरा की शादी होती है और आदिल की रिहाई।  येह फिल्म अर्देशिर ने एक अंग्रेज़ी फिल्म "शो बोट" को देख कर बनाइ थी।
 फिल्म और इसका संगीत दोनों को ही व्यापक रूप से सफलता प्राप्त हुई, फिल्म का गीत "दे दे खुदा के नाम पर" जो भारतीय सिनेमा का भी पहला गीत था और इसे अभिनेता वज़ीर मोहम्मद खान ने गाया था, जिन्होने फिल्म में एक फकीर का चरित्र निभाया था, बहुत प्रसिद्ध हुआ। उस समय भारतीय फिल्मों में पार्श्व गायन शुरु नहीं हुआ था, इसलिए इस गीत को हारमोनियम और तबले के संगीत की संगत के साथ सजीव रिकॉर्ड किया गया था।  फिल्म ने भारतीय फिल्मों में फिल्मी संगीत की नींव भी रखी, फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने कहा फिल्म की चर्चा करते हुए कहा है, "यह सिर्फ एक सवाक फिल्म नहीं थी बल्कि यह बोलने और गाने वाली फिल्म थी जिसमें बोलना कम और गाना अधिक था। इस फिल्म में कई गीत थे और इसने फिल्मों में गाने के द्वारा कहानी को कहे जाने या बढा़ये जाने की परम्परा का सूत्रपात किया।"

तरन ध्वनि प्रणाली का उपयोग कर, अर्देशिर ईरानी ने ध्वनि रिकॉर्डिंग विभाग स्वंय संभाला था। फिल्म का छायांकन टनर एकल-प्रणाली कैमरे द्वारा किया गया था जो ध्वनि को सीधे फिल्म पर दर्ज करते थे। क्योंकि उस समय साउंडप्रूफ स्टूडियो उपलब्ध नहीं थे इसलिए दिन के शोरशराबे से बचने के लिए इसकी शूटिंग ज्यादातर रात में की गयी थी। शूटिंग के समय माइक्रोफ़ोन को अभिनेताओं के पास छिपा कर रखा जाता था।

मुख्य कलाकार-मास्टर विट्ठल, जुबैदा, पृथ्वीराज कपूर

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