नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 16 मार्च 2015

आत्मसम्मान


बस स्टैंड में अपने दो बच्चों को लेकर बैठी हुई माँ से आखिर नहीं रहा गया तो बचाकर रखे हुए बीस रूपये लेकर वह दुकान पहुंची. जहाँ से कोल्ड्रिंक की दो बाटल लेकर आई और अपने दोनों बच्चों के हाथों में पकड़ा कर उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उसने जग जीत लिया हो.

पिछले एक घंटे वह गाँव जाने के लिए बस का इन्तजार करती हुई बस स्टैंड में अपने बच्चों के साथ बैठी हुई थी.
भीषण गर्मी से सबका हाल बेहाल था.
हालाँकि बड़ी बखरी से मांग कर लाये हुए मट्ठे को वह खुद और बच्चों को पिलाकर घर से निकली थी मगर बस स्टैंड में कुछ नवधनाढ्यों के बच्चों को कभी चिप्स तो कभी कोल्ड्रिंक खाते-पीते देखकर उसके बच्चे मना करने पर भी नहीं मान रहे थे और कोल्ड्रिंक पीने की जिद पर अड़े थे.
बच्चों के लिए कोल्ड्रिंक खरीद लेने पर उसका बजट किस बुरी तरह से प्रभावित होने वाला था यह सिर्फ उसे ही पता था.
आखिर में उसका सब्र तब जवाब दे गे जब नवधनाढ्यों की टोली उसके बच्चों की तरफ देखकर हिकारत भरी हंसी हंस रहे थे.
वह अचानक कुछ सोचकर उठी और अपनी चोटी को झटका देते हुये दुकान की तरफ बढ़ी और संभालकर रखे हुए पचास रुपयों में से बीस रूपये की दो कोल्ड्रिंक की बाटल खरीदकर आपने बच्चों के हाथ में दे दी............कृष्ण धर शर्मा 3.2015

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