नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 11 मई 2015

सम्प्रेषण


बिन बोले भी हो जाती हैं
बहुत सारी बातें
बोलकर करना जो शायद
लगता है बहुत ही कठिन
बातें आँखों से भी
चेहरे के हाव-भाव से भी
और कंधे उचका कर भी
कह दी जाती हैं
कई सारी ऐसी बातें
जो नहीं कही जा सकती है जुबान से
चाहे वह माँ की नाराजगी हो
बच्चे का गुस्से से मुह फेर लेना
प्रेमिका का गाल फुला लेना
प्रेमी का आँखों-आँखों में मनाना
आपसी सम्प्रेषण उतना ही प्रभावी है
आँखों से, शरीर के बाकी अंगों से
उतना ही जितना कि जुबान से

                    कृष्ण धर शर्मा २०१५

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