नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

अविरलता बिना नहीं आएगी निर्मलता

देश के मुख्य न्यायाधीश प्रयाग संगम पर पूजा अर्चना करने गये तो पंडित ने दक्षिणा में गंगा की निर्मलता और अविरलता मांगी। मांग बिल्कुल सही है चूंकि गंगा को निर्मल बनाने के लिये उसका अविरल बहना अनिवार्य है। गंगा के पानी में कुछ विशेष सुकीटाणु होते हैं जो जहरीले कीटाणुओं को खा जाते हैं। इन्हें कालीफाज कहा जाता है। ये कालीफाज गंगा के पहाड़ी हिस्से में पैदा होते हैं। गंगा में प्रवेश करने वाले सीवेज में विद्यमान हानिप्रद कीटाणुओं को खाकर ये पानी को निर्मल बना देते हैं। ये लाभप्रद कीटाणु गंगा की मिट्टी में चिपक कर रहते हैं। गंगा की मिट्टी के साथ बहकर ये नीचे प्लेन में पहुंचते हैं। गंगा पर बने हाइड्रोपावर के बांधों के पीछे यह मिट्टी जमा हो जाती है और सिंचाई के बराजों से निकाल ली जाती है और नीचे नहीं पहुंचती है। फलस्वरूप मैदानी गंगा में इन लाभप्रद कीटाणुओं की मात्रा कम हो जाती है, गंगा में गिर रही गंदगी साफ नहीं होती है तथा गंगा की निर्मलता नष्ट हो जाती है। गंगा को निर्मल बनाने में मछलियों की अहं भूमिका है। ये जल की गंदगी को खाकर उसकी सफाई करती हैं। जीवित रहने के लिये इन्हें पानी में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन की जरूरत होती है। बहता पानी हवा से आक्सीजन सोखता है और मछलियों को जीवित रखता है। नदी का पानी बांधों के पीछे रुक जाने से पानी द्वारा अक्सीजन कम सोखी जाती है। उल्टे बांध की तलहटी में सडऩे वाले पत्ते इत्यादि पानी में उपलब्ध आक्सीजन को सोख लेते हैं और मछलियों को आक्सीजन नहीं मिलती है। फलस्वरूप पानी को निर्मल बनाने वाली मछलियों की संख्या भी कम होती जा रही है। अतएव निर्मल बनाने के लिये जरूरी है कि गंगा का पानी अविरल बहे जिससे कालीफाज तलहटी में पहुंचे और मछलियों को पर्याप्त आक्सीजन मिले। गंगा में सीवेज न डाला जाये तो भी पानी साफ नहीं होगा चूंकि नदी में प्राकृतिक कूड़ा तो पहुंचता ही है जैसे पशुओं के शव तथा टहनियां एवं पत्तियां। इनके सडऩे से पानी में आक्सीजन समाप्त हो जाती है। नेशनल इनवायरमेंट इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर द्वारा किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि टिहरी बांध में सूक्ष्म मात्रा में मीथेन गैस निकल रही है। इसका अर्थ है कि पानी सड़ रहा है। पानी में आक्सीजन उपलब्ध हो तो झील की तलहटी में सडऩे वाली पत्तियां सड़ कर कार्बन डाई आक्साइड गैस बनाती हैं। पानी में आक्सीजन उपलब्ध न हो तो वही कार्बन डाई आक्साइड मीथेन गैस में परिवर्तित हो जाती है। टिहरी में मीथेन गैस का निकलना इसका प्रमाण है कि झील के नीचे के पानी में आक्सीजन समाप्त हो गई है और पानी सड़ रहा है। टिहरी क्षेत्र में गंगा में सीवेज कम ही डाला जाता है फिर भी पानी सड़ रहा है। केवल सीवेज रोक देने से गंगा निर्मल नहीं होगी इसके साथ-साथ अविरल प्रवाह को स्थापित करना अनिवार्य है। सीवेज को रोकना भी कठिन चुनौती है। सरकार के द्वारा गंगा के किनारे बसे शहरों की नगरपालिकाओं को सीवेज को साफ करने के लिये ट्रीटमेंट प्लांट लगाने को आर्थिक मदद दी जा रही है। लेकिन इन्हें चलाने में नगरपालिका को भारी मात्रा में बिजली खर्च करना पड़ता है। नगरपालिका के सामने च्वायस होती है कि उपलब्ध बिजली को सड़कों पर बिजली जलाने के लिये उपयोग किया जाये अथवा सीवेज ट्रीटमेंट के लिये। जनता को सड़क की लाइट से सीधे सरोकार होता है जबकि सीवेज का प्रभाव अप्रत्यक्ष है। इसलिये सीवेज प्लांट कम ही चलाये जाते हैं। इस समस्या का उपाय है कि सरकार के द्वारा साफ पानी को खरीदा जाये। निजी उद्यमियों द्वारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाये जायें और इनके द्वारा उत्पादित पानी को सरकार खरीदकर किसानों को सिंचाई के लिये उपलब्ध करा दे। तब सरकार को उतना ही खर्च करना होगा जितना पानी साफ किया जायेगा। मुम्बई तथा नागपुर में उद्योगों द्वारा नगरपालिका से सीवेज खरीदकर साफ करके काम में लिया जा रहा है। उद्याोगों के लिये सस्ता पड़ता है कि सीवेज को खरीदकर साफ करके पानी को काम में लें। इसी प्रकार उद्यमियों द्वारा सीवेज को साफ करके सिंचाई विभाग को सप्लाई किया जा सकता है। अर्थशास्त्र में कहावत है कि कुछ भी मुफ्त नहीं होता है। गंगा की अविरलता और निर्मलता का भी मूल्य अदा करना होगा। समस्या है कि जनता को नदी की निर्मलता के आर्थिक लाभ न तो बताये जाते हैं न ही समझ आते हैं। आज तमाम घरों में पीने के साफ पानी के लिये आ.रो. लगाये जाते हैं। यात्रा में लोग 20 रुपये की बोतल पानी खरीदते हैं। यह खर्च करना पड़ता है चूंकि नदी का पानी प्रदूषित है। फलस्वरूप जल निगम द्वारा सप्लाई किया गया पानी प्रदूषित होता है। यदि हम नदी के पानी को साफ कर दें तो हमें इस खर्च से मुक्ति मिल जायेगी। प्रदूषित पानी का स्वास्थ पर भी भयंकर दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रदूषित पानी से उपजाये गये अन्न तथा सब्जी से हानिकारक तत्व हमारे शरीर में पहुंचते हैं और बीमारी को जन्म देते हैं। इनके उपचार के लिये हमें डाक्टर एवं दवा को खर्च करना पड़ता है। नदी के साफ पानी का सीधे आर्थिक लाभ भी है। सर्वे में पाया गया कि गंगा में डुबकी लगाने वालों को तमाम आर्थिक लाभ हुये। जैसे किसी को नौकरी मिली, कोई परीक्षा में पास हुआ और किसी का कारोबार चल निकला इत्यादि। यह आर्थिक लाभ भी सफाई से ही मिलती है। दूसरी तरफ गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाने में खर्च आता है। गंगा की अविरलता बनाये रखते हुये हाइड्रोपावर बनाने के लिये बांध के स्थान पर ठोकर बनाकर पानी निकालना होगा। इसमें खर्च आयेगा। सीवेज से उत्पादित साफ पानी को खरीदने का भी खर्च आयेगा। समस्या है कि हाइड्रोपावर और सीवेज साफ करने के खर्च सीधे दिखते हैं जबकि स्वास्थ्य आदि के लाभ नहीं दिखते हैं। सरकार को चाहिये कि साफ होने से होने वाले आर्थिक लाभों का आकलन कराकर जनता को अवगत कराये जिससे जनता गंगा को साफ करने को खर्च करने का अनुमोदन करे। डॉ. भरत झुनझुनवाला (साभार देशबंधु)

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