नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 5 नवंबर 2017

स्वप्नदीप



कुटिलताओं और आशंकाओं के दौर में
सहजताओं और सरलताओं को बचाए रखना
भले ही इसमें अतिशय धैर्य की होगी आवश्यकता
मगर कुटिलों के कुचक्रों से बचने के लिए
सहनशीलता की पराकाष्ठा के भी पार
सहना होगा तुम्हें उस ताप को उस अग्नि को
जो तुम्हें तपकर अपनी आंच में बना देगी कुंदन 
फिर तुम हो जाओगे इतने खरे
कि तुम्हें खोटा साबित करने के
तमाम प्रयास होंगे असफल
बस, तब तक तुम्हें बचाकर रखने होंगे
अपने हृदय के किसी कोने में
आशाओं के कुछ सुनहरी लौ वाले स्वप्नदीप

                  (कृष्ण धर शर्मा, 22.2.2017)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें