रविवार, 13 सितंबर 2009

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का बड़प्पन

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद उन दिनों देश के राष्ट्रपति थे। वह अपने साथ काम करने वाले कर्मचारियों का पूरा-पूरा ख्याल रखते थे। छोटे से छोटे पद पर काम करने वाला कर्मचारी भी उनके स्नेह का पात्र था। उनका एक चपरासी था तुलसी। वह उनकी खूब सेवा करता था। राजेन्द्र बाबू को उससे विशेष लगाव था। लेकिन उनके लाड़-प्यार की वजह से तुलसी थोड़ा लापरवाह हो गया।

राजेन्द्र बाबू के पास उपहार में मिला एक पेन था, जो उन्हें बेहद पसंद था। वह हमेशा उसी से लिखते थे। एक दिन सफाई करते हुए तुलसी से यह पेन टूट गया। राजेन्द्र बाबू को जब पता चला तो उन्हें पहली बार क्रोध आ गया और उन्होंने तुलसी का तबादला अपने दफ्तर में किसी और जगह करने का आदेश दे दिया। तुलसी चला गया। पर उस दिन राजेन्द्र बाबू का मन किसी काम में नहीं लगा। वह लगातार तुलसी के बारे में सोच रहे थे।

उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे कि बेचारा हमेशा सेवा में लगा रहता था। थोड़ा लापरवाह है तो क्या हुआ, ईमानदार और निष्ठावान तो है ही। आखिरकार उन्होंने तुलसी को अपने पास आने का संदेश भिजवा दिया। तुलसी डरते-डरते हाजिर हुआ और सिर झुकाकर खड़ा हो गया। राजेन्द्र बाबू थोड़ी देर उसे देखते रहे फिर हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले- तुलसी, मुझे माफ कर दो, मुझसे गलती हो गई है। बेचारा तुलसी शर्म से गड़ा जा रहा था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। राजेन्द्र बाबू ने दोबारा माफी मांगी। तुलसी बोला- कसूर तो मैंने किया है और माफी आप मांग रहे हैं। वह फिर से उनकी सेवा में जुट गया।

नौटंकी दुनिया भर की…

एक बालक जिद पर अड़ गया… बोला की छिपकली खाऊंगा. घरवालों ने बहुत समझाया पर नहीं माना !! हार कर उसके गुरु जी को बुलाया गया। वे जिद तुड़वाने में महारथी थे.. गुरु के आदेश पर एक छिपकली पकड़वाई गई. उसे प्लेट में परोस बालक के सामने रख गुरु बोले, ले खा… बालक मचल गया.. बोला, तली हुई खाऊंगा.. गुरु ने छिपकली तलवाई और दहाड़े, ले अब चुपचाप खा. बालक फिर गुलाटी मार गया और बोला, आधी खाऊंगा.. छिपकली के दो टुकड़े किये गये.. बालक गुरु से बोला, पहले आप खाओ. गुरु ने आंख नाक भींच कर किसी तरह आधी छिपकली निगली… गुरु के छिपकली निगलते ही बालक दहाड़ मार कर रोने लगा की आप तो वो टुकड़ा खा गये जो मैंने खाना था.. गुरु ने धोती सम्भाली और वहां से भाग निकले की अब जरा भी यहां रुका तो ये दुष्ट दूसरा टुकड़ा भी खिला कर मानेगा… करना-धरना कुछ नहीं, नौटंकी दुनिया भर की…