बुधवार, 6 अप्रैल 2011

बीटी बीज फसलों के लिए खतरनाक भी हैं।

सरकार की जो प्रतिबद्धता किसान और खेती से जुड़े स्थानीय संसाधनों के प्रति दिखाई देनी चाहिए वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रति दिखाई दे रही है। इस मानसिकता से उपजे हालात कालांतर में देश की बहुसंख्यक आबादी की आत्मनिर्भरता को परावलंबी बना देंगे। बीते साल फरवरी में जब पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बीटी बैंगन की खेती के जमीनी प्रयोगों को बंद करते हुए भरोसा जताया था कि जब तक इनके मानव स्वास्थ्य से जुड़े सुरक्षात्मक पहलुओं की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो जाती, इनके उत्पादन को मंजूरी नहीं दी जाएगी। इसके बावजूद गोपनीय ढंग से मक्का के संकर बीजों का प्रयोग बिहार में किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जब यह पता चला तो उन्होंने सख्त आपत्ति जताते हुए केंद्रीय समिति में राज्य के प्रतिनिधि को भी शामिल करने की पैरवी की। नतीजतन पर्यावरण मंत्रालय ने बिहार में बीटी मक्का के परीक्षण पर रोक लगा दी। लेकिन यहां यह आशंका जरूर उठती है कि ये परीक्षण उन प्रदेशों में जारी होंगे, जहां कांग्रेस और संप्रग के सहयोगी दलों की सरकारें हैं।

गुपचुप जारी इन प्रयोगों से पता चलता है कि अमेरिका परस्त मनमोहन सरकार विदेशी कंपनियों के आगे इतनी दयनीय है कि उसे जनता से किए वादे से मुकरना पड़ रहा है। भारत के कृषि और डेयरी उद्योग पर नियंत्रण करना अमेरिका की पहली प्राथमिकताओं में है। इन बीजों की नाकामी साबित हो जाने के बावजूद इनके प्रयोगों का मकसद है मोंसेंटो, माहिको वालमार्ट और सिंजेटा जैसी कंपनियों के कृषि बीज और कीटनाशकों के व्यापार को भारत में जबरन स्थापित करना। बिहार में मक्का-बीजों की पृष्ठभूमि में मोंसेंटों ही थी। इसके पहले धारवाड़ में बीटी बैंगन के बीजों के प्रयोग के साथ इसकी व्यावसायिक खेती को प्रोत्साहित करने में माहिको का हाथ था। यहां तो ये प्रयोग कुछ भारतीय वैज्ञानिकों को लालच देकर कृषि विश्वविद्यालय, धारवाड़ और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर में चल रहे थे। जीएम बैगन पहली ऐसी सब्जी थी जो भारत में ही नहीं दुनिया में पहली मर्तबा प्रयोग में लाई जाती। इसके बाद एक-एक कर कुल 56 फसलें वर्ण संकर बीजों से उगाई जानी थीं। लेकिन बीटी बैंगन खेती के देश में जबरदस्त विरोध के कारण पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसके प्रयोग व खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था।

दरअसल आनुवंशिक बीजों (Genetically modified foods or GM foods) से खेती को बढ़ावा देने के लिए देश के शासन-प्रशासन को मजबूर होना पड़ रहा है। 2008 में जब परमाणु- करार का हो हल्ला संसद और संसद से बाहर चल रहा था तब अमेरिकी परस्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कृषि मंत्री शरद पवार और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की तिगड़ी ने अमेरिका से एक ऐसा समझौता गुपचुप कर लिया था, जिस पर कतई चर्चा नहीं हुई थी। इसी समझौते के मद्देनजर बीटी बैंगन को बाजार का हिस्सा बनाने के लिए शरद पवार और जयराम रमेश ने आनुवंशिक बीजों को सही ठहराने के लिए देश के कई नगरों में जन-सुनवाई के नजरिये से मुहिम भी चलाई थी। लेकिन जनता और स्वयंसेवी संगठनों की जबरदस्त मुहिम के चलते राजनेताओं को इस जिद से तत्काल पीछे हटना पड़ा था। बीटी बैंगन मसलन संकर बीज ऐसा बीज है, जिसे साधारण बीज में एक खास जीवाणु के जीन को आनुवंशिक अभियांत्रिकी तकनीक से प्रवेश कराकर बीटी बीज तैयार किए जाते हैं। भारतीय वैज्ञानिकों का दावा है कि ये बीज स्थानीय और पारपंरिक फसलों के लिए भी खतरनाक हैं। राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी रमेश भट्ट ने बीटी बैंगन के हल्ले के समय चेतावनी दी थी कि बीटी बैंगन की खेती शुरू होती है तो इसके प्रभाव से बैंगन की स्थानीय किस्म मट्टूगुल्ला प्रभावित होकर लगभग समाप्त हो जाएगी। [प्रमोद भार्गव]

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

एक अनवरत लड़ाई का नायक

उमाशंकर तमिलनाडु के किसी राजनेता से कम लोकप्रिय नहीं हैं. राजनीति और अफशरशाही के गलियारे में लोग उनका नाम सम्मान से लेते हैं. वे इन दिनों तमिलनाडु के चुनाव में व्यस्त हैं. वे चुनाव नहीं लड़ रहे, उनके जिम्मे चुनाव कराना है. इस चुनाव का परिणाम चाहे जो भी आये लेकिन इतना तय है कि उमाशंकर के जीवन में हार-जीत का खेल चलता रहेगा.
भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी लड़ाई कभी आसान नहीं होती. यह बात उमाशंकर से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. तमिलनाडु के दलित आईएएस अधिकारी सी उमाशंकर पर जैसे भ्रष्टाचार से लड़ने का एक जुनून है और इस लड़ाई की कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ती है. सत्ता के खिलाफ एक के बाद एक लड़ाई के कारण उमाशंकर का तबादला होता रहता है या निलंबन. हालांकि कुछ समय पहले ही उमाशंकर की फिर से नौकरी में वापसी हुई है लेकिन कौन जाने, किस राजनीतिक दल की निगाह कब उन पर टेढ़ी हो जाये.

सी उमाशंकर 1990 में नौकरी में आए. नौकरी को अभी पांच साल ही हुए थे, जब 1995 में डीआरडीए (डिस्ट्रीक्ट रुरल डेवलपमेन्ट एजेन्सी) के अंदर बतौर परियोजना अधिकारी पिछड़ी जाति और जनजाति के लिए इस्तेमाल होने वाले श्माशान के शेड्स के नाम पर हुए पैसे के दुरुपयोग पर उन्होंने सवाल उठाया. उमाशंकर ने ना सिर्फ सवाल उठाया बल्कि इसके खिलाफ वे लोक हित याचिका लेकर चेन्नई उच्च न्यायालय में भी गए. इस मामले की सीबीआई जांच हुई और दोषियों को सजा मिली.

1996 में डीएमके की सरकार आई. सरकार ने उमाशंकर को संयुक्त सतर्कता आयुक्त के पद पर बिठाया. उमाशंकर ने आयुक्त रहते हुए अपने कार्यकाल में दो सौ करोड़ के साउथ इंडिया शिपिंग कॉरपोरेशन शेयर विनिवेश घोटाला, एक हजार करोड़ का ग्रेनाइट खदान लीज घोटाला, भूखंडों और तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड के मकानों का फर्जी व्यक्तियों के नाम पर आवंटन का मामला, पैंतालिस हजार टीवी एंटिना और बुस्टर की खरीद, कोयम्बटूर मेडिकल कॉलेज की 20 एकड़ जमीन को पट्टे पर महिलाओं और बच्चों के विकास के नाम पर स्टार होटल और क्लब के लिए दे दिए जाने का मामला, वह भी साधारण किराए पर दिये जाने जैसे कितने ही मामले में उन्होंने भ्रष्टाचारियों को निशाना बनाया.

उमाशंकर के अनुसार उन्होंने अपने कार्यकाल में कई बड़े नामों को भ्रष्टाचार का दोषी पाया, जिसमें मुख्य सचिव स्तर के और वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर आसीन अधिकारी और कुछ पूर्व मंत्री भी शामिल थे.

बकौल उमाशंकर- “ मैं काफी निराश था. मैंने पाया कि उन लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है, जो ऊंचा रसूख रखते हैं, चाहे वे भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हों. इस स्थिति को देखकर मैंने सरकार से निवेदन किया कि वह मुझे संयुक्त सतर्कता आयुक्त के पद से मुक्त करे.”
फरवरी 1999 में उमाशंकर जिलाधिकारी के तौर पर तिरुवरुर में नियुक्त हुए. यहां वे अपने जिले में ई-गवर्नेंस लेकर आए. पूरे भारत में किसी जिले के अंदर यह पहला प्रयोग था. एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने उस वक्त खबर बनाई कि ई-गवर्नेंस के कदम के बाद तिरुवरुर जिला देश भर के अन्य जिलों से बीस साल आगे निकल चुका है. एक पत्रिका ने उसके बाद सदी का नायक बनाकर उमाशंकर को पेश किया.

मई 2006 में डीएमके फिर सत्ता में आई. उमाशंकर को एलकॉट (ईएलसीओटी) का कार्यकारी निदेशक बनाया गया. यह राज्य सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी थी. उस समय उमाशंकर ने ई-टेंडर लाकर कांट्रेक्ट देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की बड़ी कोशिश की. वे निविदा मूल्यांकन (टेंडर इवेल्यूशन) की नई प्रक्रिया लेकर आए, जिसमें बोली लगाने वाले ठेकेदारों की भी भूमिका थी.

उमाशंकर के अनुसार जब उन पर एलकॉट की जिम्मेवारी थी, उस दौरान मुख्यमंत्री एम के करुणानिधि की तीसरी पत्नी राजथी अम्माल ने उन्हें अलवारपेट स्थित अपने दफ्तर में बुलाया. उमाशंकर के अनुसार उन्होंने इस बुलावे के बाद मिलना उचित नहीं समझा और कायदे से उन्हें इंकार भी कर देना चाहिए लेकिन वे शिष्टाचार के नाते मिलने चले गए.

वहीं राजथी अम्माल ने उन्हें एक खास आदमी को मछुआरों के लिए खरीदे जाने वाले 45,000 वायरलेस सेट का टेंडर देने की बात कही. उमाशंकर का पक्ष स्पष्ट था कि यह टेंडर, ई-टेंडर की प्रक्रिया से ही तय होगा, जिसे वे नहीं छेड़ना चाहते.

एलकॉट, एक दूसरी निजी लिमिटेड कंपनी न्यू इरा टेक्नोलॉजिज लिमिटेड जो थिंगराजा चेटियार द्वारा नियंत्रित था, दोनों कंपनियां ने मिलकर एलनेट टेक्नालॉजी के नाम से एक साथ काम शुरु किया. जिसमें एलकॉट का हिस्सा 26 फीसदी का था और न्यू इरा टेक्नालॉजी की हिस्सेदारी 24 फीसदी थी और बाकि बचे शेयर आम जनता के लिए थे.

दो कंपनियों के संयुक्त उद्यम एलनेट ने इटीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी शुरु की, इस सोच के साथ कि चेन्नई के पालिकारानाई में एक सूचना प्रोद्योगिकी पार्क सह विशेष आर्थिक क्षेत्र शुरु करेंगे.
इसी सोच के साथ कंपनी ने 26 एकड़ जमीन खरीद ली, जिसे भारत सरकार से सूचना प्रोद्योगिकी विशेष आर्थिक क्षेत्र का दर्जा मिल गया. कंपनी ने अठारह लाख स्क्वायर फीट की एक आईटी बिल्डिंग उस जमीन पर तैयार की. इस संपति की कुल कीमत 700 करोड़ के आस पास होगी. लेकिन बाद में रहस्यमय तरीके से यह कंपनी एलनेट और एलकॉट के नियंत्रण से बाहर हो गई.

जाहिर है, यह सब राजनीति की बड़ी ताकतों और एलकॉट के पूर्व अध्यक्ष की साझेदारी से ही संभव हुआ.

उमाशंकर के अनुसार “इस पूरे आयोजन के कार्यकारी निदेशक और एलनेट के अध्यक्ष के नाते से मैं उस समय की उन परिस्थितियों की जांच करना चाहता था, जिनमें एलनेट और एलकॉट ने इटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर के ऊपर से अपना नियंत्रण खो दिया.”

इसके बाद उमाशंकर ने इस घोटाले के संबंध में ‘ सात सौ करोड़ से अधिक कीमत वाली ईटीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड कंपनी; रहस्यमयी ढंग से लापता’ नाम से एक विशेष रिपोर्ट सरकार के पास भेजी. उमाशंकर इस मामले में प्रशासनिक अधिकारी विवेक हरिनारायाणन और डा सी चन्द्रमॉली की भूमिका की जांच करना चाहते थे.

अभी यह मामला चल ही रहा था कि उमाशंकर का तबादला कर दिया गया. उन्हें एलकॉट से निकालकर टीआईआईसी (तमिलनाडु इन्डस्ट्रीयल इन्वेस्टमेन्ट कॉरपोरेशन लिमिटेड) में कार्यकारी निदेशक बनाकर भेज दिया गया. उमाशंकर के अनुसार- “ मेरे पास इस विश्वास के लिए पर्याप्त कारण हैं कि मेरा तबादला धोखाधड़ी पूर्ण था.”

टीआईआईसी में काम करने के दौरान मारन बंधुओं के बीच सन टीवी ग्रुप ऑफ टेलीविजन नेटवर्क पर अधिकार को लेकर कलह चल रहा था. मारन बंधु की ताकत को पूरा देश जानता है, वे देश के गिने चुने धनी लोगों में से एक हैं. इसी बीच एक दिन मुख्यमंत्री डॉ. कलियंगनार करुणानिधि ने उमाशंकर को मिलने के लिए बुलाया और आरसू केबल टीवी नेटवर्क का कार्यकारी निदेशक बनाकर काम करने का आदेश जारी किया.

उमाशंकर ने वहां अपनी परेशानी बताई कि यहां उनके अधिकारी डा चन्द्रमॉली होंगे, जिनके खिलाफ उमाशंकर ने ईटीएल इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के मामले में रिपोर्ट दाखिल की हुई थी. उसके बाद चन्द्रमॉली का इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजी सेक्रेटरी सह अध्यक्ष आरसू केबल टीवी कॉरपोरेशन लिमिटेड के पद से तबादला कर दिया गया. उनकी जगह पीडब्ल्यूसी देवीदार आ गए. उमाशंकर को आरसू केबल में बतौर एमडी नियुक्ति मिली.

उमाशंकर ने यहां पाया कि सुमंगली केबल टीवी जो मारन बंधुओं द्वारा नियंत्रित था, वह बड़े पैमाने पर आरसू केबल के ऑप्टिक फाइबर केबल को नुक्सान पहुंचाने में लिप्त था. सुमंगली केबल विजन अपना मोनोपॉली बाजार में बनाए रखना चाहता था. उस समय उमाशंकर ने सुमंगली केबल विजन के इस आपराधिक गतिविधि की तरफ सरकार का ध्यान दिलाया और साथ में यह भी सरकार को बताया कि सरकार की एक कंपनी को नुक्सान पहुंचाने की गतिविधि में सरकार के एक मंत्री भी शामिल हैं. उमाशंकर ने इस संबंध में कई रिपोर्ट सरकार को भेजी और यह सुझाव भी दिया कि कानून सम्मत तरिके से मारन बंधुओं की गिरफ्तारी के प्रयास होने चाहिए.

इधर तमिलनाडु की राजनीति के इतिहास में मारन बंधुओं और करुणानिधि परिवार के बीच के विवाद में समझौते की कहानी लिखी जा रही थी. भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के नाते उस वक्त उमाशंकर चाहते थे कि मारन बंधुओं को उनके अपराध की सजा भारतीय दंड संहिता के मुताबिक मिले.

इस घटना के बाद उमाशंकर आरसू केबल टीवी कॉरपोरेशन से भी बाहर हो चुके थे. अब उनका स्थानान्तरण कमिश्नर ऑफ स्मॉल सेविंग के तौर हो गया था और आरसू केबल टीवी कॉरपोरेशन लिमिटेड नाम का सरकारी प्रकल्प अपनी समाप्ति की घोषणा पर था.

उमाशंकर के अनुसार “इस समय मारन बंधु और माननीय मुख्यमंत्री बदला लेने की मुद्रा में आ चुके थे. वे मुझे परेशान करना चाहते थे.” 21 जुलाई 2010 को उमाशंकर को निलंबित कर दिया गया. सरकार ने उमाशंकर द्वारा दिया गया दलित समुदाय के प्रमाण पत्र की सच्चाई पर सवाल उठाया था.

उमाशंकर के अनुसार उन्होंने अपना समुदाय प्रमाणपत्र संघ लोक सेवा आयोग के पास जमा करा दिया था- “जब संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ऑल इंडिया सर्विसेज इक्जामिनेशन का परिणाम जारी किया गया था. उस वक्त मेरा परिणाम रोका गया था, समुदाय प्रमाणपत्र की सत्यता की जांच के लिए. बाद में उसकी जांच हुई और उसके बाद ही मेरा परिणाम प्रकाशित हुआ.”

उमाशंकर खिन्न होकर कहते हैं, “सरकार कभी भी भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कदम नहीं उठाती. सरकार के कदम मेरे खिलाफ उठे हैं क्योंकि मैंने हमेशा ईमानदारी के साथ काम किया है.”

राजनीतिक गलियारे में रहने वाले लोगों का मानना है कि सी उमाशंकर की वापसी इसलिये हो पाई है क्योंकि सरकार दलित वोटों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन जब उमाशंकर सरकार को परेशान करेंगे तो जाहिर है, उमाशंकर का एक बार फिर तबादला कर दिया जायेगा और औद्योगिक-राजनीतिक गठजोड़ तो कोई भी आरोप लगा कर उन्हें निलंबित करवाने की ताकत रखता ही है. [साभार-रविवार.कॉम]