मंगलवार, 25 मार्च 2014

टमाटर के गुण


टमाटर खाइए सेहत बनाइए। जी हां टमाटर कोई साधारण सब्जी नहीं बल्कि हेल्थ का डॉक्टर है। टमाटर में प्रोटीन, विटामिन, वसा आदि तत्व विद्यमान होते हैं। यह सेवफल व संतरा दोनों के गुणों से युक्त होता है। कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है इसके अलावा भी टमाटर खाने से कई लाभ होते हैं। पौष्टिक तत्वों से भरपूर टमाटर यूं तो हर मौसम में फायदेमंद है, लेकिन इसमें मौजूद विटामिन ए और सी गर्मियों में इसकी उपयोगिता को और महत्वपूर्ण बना देते हैं। आप चाहे इसे सब्जी में डालें या सलाद के रूप में या किसी और रूप में, यह आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। आइए, जानें टमाटर के फायदे

 टमाटर के गूदे में दूध व नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे पर चमक आती है। टमाटर जवां दिखेंगे यह झुर्रियों को कम करता है और रोम छिद्रों को बड़ा करता है। इसके लिए टमाटर और शहद के मिश्रण वाला फेस पैक इस्तेमाल करें। टमाटर के छिलके और बीज को निकाल दें। टमाटर सिर्फ  एक सब्जी नहीं बल्कि ये अपने आप में एक संपूर्ण औषधी है आइए जाने कैसे? इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। टमाटर से पाचन शक्ति बढ़ती है।

भोजन करने से पहले दो या तीन पके टमाटरों को काटकर उसमें पिसी हुई कालीमिर्च, सेंधा नमक एवं हरा धनिया मिलाकर खाएं। इससे चेहरे पर लाली आती है व पौरूष शक्ति बढ़ती है। पेट में कीड़े होने पर सुबह खाली पेट टमाटर में पिसी हुई कालीमिर्च लगाकर खाने से लाभ होता है।डाइबिटीज व दिल के रोगों में भी टमाटर बहुत उपयोगी होता है। प्रात: बिना कुल्ला किए पका टमाटर खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है। टमाटर खाने वालों को कैन्सर रोग नहीं होता। टमाटर के नियमित सेवन से पेट साफ  रहता है।

स्टडीज बताती हैं कि वजन घटाने में मदद करने के साथ ही टमाटर कई तरह के कैंसर को भी रोकने की क्षमता रखता है। हाल में हुई एक रिसर्च से साबित हुआ है कि अगर आप एक हफ्ते में 10 बार टमाटर खाते हैं, तो कैंसर होने का खतरा 45 पर्सेन्ट कम हो जाता है। इतना ही नहीं, टमाटर को सलाद में लेने से पेट के कैंसर होने का रिस्क 60 पर्सेन्ट तक घट जाता है। दरअसल, रिसर्च बताती है कि टमाटर में लाइकोपीन खासी अमाउंट में पाया जाता है और यह कई तरह के कैंसर रोकने में फायदेमंद है।

बताते चलें कि डाइट एक्सपर्ट्स हरे टमाटर की तुलना में लाल टमाटर को ज्यादा फायदे देने वाला बताते हैं, क्योंकि फ्राई करने पर वह लाइकोपीन को अच्छे से आब्जर्व कर लेता है। रिसर्च से यह भी पता लगा है कि टमाटर को तेल में फ्राई करने के बावजूद उसके न्यूट्रिएंट्स खत्म नहीं होते। लाइकोपीन के अलावा, टमाटर में पोटाशियम, नियासिन, विटामिन बी6 और फॉलेट होते हैं, जो दिल की सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं। इतना ही नहीं, टमाटर में दो एंटी एंजिंग कंपाउंड्स, आईकोपीन और बीटा कैरोटिन भी होते हैं।

अब आप जब भी टमाटर खरीदने जाएं, तो लाल टमाटर ही चुनें। इनमें बीटा कैरोटिन व आईकोपीन की मात्रा बहुत अधिक होती है। वैसे, अगर आप अपना वजन कम करने के बारे में सोच रहे हैं, तो भी टमाटर आपके लिए फायदेमंद रहेंगे। इसमें फाइबर ज्यादा व कैलरीज कम होती हैं, जो वेट घटाने में मदद करती हैं। इसमें मौजूद बीटा कैरोटिन भी बॉडी के लिए बेहद फायदेमंद है। दरअसल, यह बॉडी में विटामिन ए में बदल जाता है और यह तो सभी जानते हैं कि विटामिन ए त्वचा, बालों, हड्डियों व दांतों को हेल्दी रखने के लिए जरूरी है।  

टमाटर के गुण
टमाटर स्वादिष्ट होने के साथ पाचक भी होता है। पेट के रोगों में इसका प्रयोग औषधि की तरह किया जा सकता है। जी मिचलाना, डकारें आना, पेट फूलना, मुँह के छाले, मसूढ़ों के दर्द में टमाटर का सूप अदरक और काला नमक डालकर लिया जाए तो तुरंत फायदा होता है।

टमाटर के सूप से शरीर में स्फूर्ति आती है। पेट भी हल्का रहता है। सर्दियों में गर्मागर्म सूप जुकाम इत्यादि से बचाता है। अतिसार, अपेंडिसाइटिस और शरीर की स्थूलता में टमाटर का सेवन लाभदायक है। रक्ताल्पता में इनका ‍निरंतर प्रयोग फायदा देता है।

टमाटर की खूबी है कि इसके विटामिन गर्म करने से भी नष्ट नहीं होते। बेरी-बेरी, गठिया तथा एक्जिमा में इसका सेवन आराम देता है। ज्वर के बाद की कमजोरी दूर करने में इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं। मधुमेह के रोग में यह सर्वश्रेष्ठ पथ्य है।


क्या आपको चक्कर आता है?

अगर आपको कभी भी चक्कर आने लगते हैं, सिर घूमने लगता है, या किसी किसी काम में मन नहीं लगता, कमजोरी महसूस होती है और नींद भी नहीं आती तो जरा सावधान हो जाइए। वर्तमान समय में बढ़ते मानसिक तनाव और भागदौड़ से लोगों में हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होना आम हो गया है। थोड़ी सी टेंशन या जम्मेदारियों को पूरा न कर पाने का दबाव इस बीमारी को लगातार बढ़ावा दे रहा है। आयुर्वेद के कुछ घरेलू नुस्खों को अपनाकर आप काफी हद तक इस बीमारी से बच सकते हैं।

-प्याज का रस और शुद्ध शहद बराबर मात्रा में मिलाकर रोज करीब दस ग्राम की मात्रा में लें।

- तरबूज के बीज की गिरि और खसखस दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें रोज सुबह-शाम एक चम्मच खाली पेट पानी के साथ लें। यह प्रयोग करीब एक महीने तक नियमित करें।

- मेथीदाने के चूर्ण को रोज एक चम्मच सुबह खाली पेट लेने से हाई ब्लडप्रेशर से बचा जा सकता है।

- खाना खाने के बाद दो कच्चे लहसुन की कलियां लेकर मुनक्का के साथ चबाएं, ऐसा करने से हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत नहीं होती।

- 21 तुलसी के पत्ते तथा सिलबट्टे पर पीसकर एक गिलास दही में मिलाकर सेवन करने से हाई ब्लडप्रेशर में लाभ होता है।

अंगूर के गुण

अंगूर एक ऐसा फल है जो विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में दिखायी पड़ता है और बहुत से लोग इसे अत्याधिक पसन्द करते हैं। अंगूर बेल में फलता है। तथा मांसल और पौष्टिता से भरा होता है। इस का ७९ प्रतिशत भाग पानी होता है तथा इसमें विभिन्न प्रकार की शर्करा, लवण और लाभदायक तत्व होते हैं।
अंगूर एक सुगंधित लता वाला फल है। अंगूर की पांच जातियां - तीन हरे और दो काले रंग की होती हैं। अंगूर में भस्म, अम्ल, शर्करा, गौंद, ग्लूकोज, कषाय द्रव्य, साइट्रिक, हाइट्रिक, रैसेमिक और मौलिक एसिड, सोडियम और पोटेशियम और क्लोराइड मेग्नीशियम आदि होता है।

अंगूर फल भी है और आहार भी और हलवे की भांति मीठा और स्वादिष्ट है। अंगूर को केवल एक लाभदायक फल नहीं बल्कि इसे एक सम्मपूर्ण आहार की संज्ञा दी है। वर्तमान काल में भी आहार विशेषज्ञ, अंगूर खजूर बल्कि किशमिश को एक सम्मपूर्ण आहार बताते हैं जिससे शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति होती है इस आधार पर मनुष्य थोड़े से अंगूर या किशमिश खाकर, शारीरिक व वैचारिक गतिविधियों के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा जुटा सकता है।
अंगूर फल एक ऐसा फल है जिससे कई बीमारियों को दूर किया जा सकता है, फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। अंगूर बलवर्धक और सौन्दर्यवर्धक फल है। अंगूर ऐसा फल है जो रोगी को उस वक्त दिया जा सकता है जब रोगी को कोई भी खाद्य पदार्थ खाने की मनाही है। अंगूर को खाने के कई लाभ हैं। आइए जानें अंगूर से सेहत कैसे बनाई जा सकती है।
1 - अंगूर में पानी की मात्रा अधिक होती है और इसके साथ ही इसमें शर्करा, सोडियम, पोटेशियम, साइट्रिक एसिड, फलोराइड, पोटेशियम सल्फेट, मैगनेशियम और लौह तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। जो कि व्यक्ति को स्वस्थ रखने में लाभकारी हैं। अंगूर के सेवन मात्र से बहुत से रोगों से निजात पाई जा सकती है।
2 - अंगूर आंखों के लिए भी बहुत लाभकारी है और यह रक्त की कमी को भी दूर करता है।
3 - शोधों में भी साबित हो चुका है कि अंगूर हृदय के लिए अत्यधिक लाभदायक होता है। गौरतलब है कि अंगूर में एक ऐसा रसायन पाया जाता है, जो हृदय को वृद्धावस्था के प्रभावों से बचाता है।
4 - अंगूर एक कम कैलोरी वाला आहार है जो व्याक्ति को लंबी आयु देता है और व्यक्ति वृद्धावस्था में भी जल्द कदम नहीं रखता। यानी व्यक्ति एकदम फिट रहता है।
5 - अंगूर में ए, बी, सी जैसे विटामिन और पोटैशियम, मैगनेशियम , आयरन और फास्फोरस जैसे तत्व पाए जाते हैं। जो कि शरीर को स्वस्थ रखने में लाभकारी है।
6 - चोट लगने या खून बहने की स्थिति में यदि शहद के साथ अंगूर का जूस मिलाकर दिया जाए तो रक्त की कमी को दूर किया जा सकता है।

लहसुन के गुण


लहसुन की कलियों को पीसकर ,सरसों के तेल में ,उबाला जाए और घावों पर लेप किया जाए, घाव तुरंत ठीक होना शुरू हो जाते है।
घुटनों के छिल जाने, हल्के फ़ुल्की चोट या रक्त प्रवाह होने पर लहसुन की कच्ची कलियों को पीसकर घाव पर लेप करें, घाव पकेंगे नहीं और इन पर किसी तरह का इंफ़ेक्शन भी नही होगा। लहसुन के एण्टीबैक्टिरियल गुणों को आधुनिक विज्ञान भी मानता है, लहसुन का सेवन बैक्टिरिया जनित रोगों, दस्त, घावों, सर्दी-खाँसी और बुखार आदि में बहुत फायदा करता है।




लहसुन गुणों से भरपूर भारतीय सब्जियों का स्वाद बढ़ाने वाला ऐसा पदार्थ है जो प्रायः हर घर में इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर लोग इसे सिर्फ मसाले के साथ भोजन में ही इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह औषधि के रूप में भी उतना ही फायदेमंद है।

भोजन में लहसुन का प्रयोग मनुष्य प्राचीन समय से ही करता आ रहा है। इसकी गंध बहुत ही तेज और स्वाद तीखा होता है। कहा जाता है कि प्राचीन रोम के लोग अपने सिपाहियों को इसलिए लहसुन खिलाते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इसे खाने से शक्ति में वृद्धि होती है। मध्ययुग में प्लेग जैसे भयानक रोग के आक्रमण से बचने के लिए भी लहसुन का इस्तेमाल किया जाता था।

औषधि के रूप में लहसुन के महत्व का पता मनुष्य को कुछ वर्ष पहले ही लगा है। लहसुन में एलियम नामक एंटीबायोटिक होता है जो बहुत से रोगों के बचाव में लाभप्रद है। नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर कम या ज्यादा होने की बीमारी नहीं होती। गैस्टिक ट्रबल और एसिडिटी की शिकायत में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक होता है।

यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।

जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है। जिन बच्चों को सर्दी ज्यादा होती है उन्हें लहसुन की कली की माला बनाकर पहनाना चाहिए।




लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है। लहसुन का पौधा यूरोप और एशिया का मूल पौधा है। यह इटली तथा दक्षिण फ्रांस के जंगलों में बहुत अधिक संख्या में पैदा होता है। अब इसे संसार के सभी देशों में पैदा किया जाता है। यह लिली परिवार में आता है। यह जमीन के अंदर पैदा होता है। आजकल बाजार में लहसुन के कैप्सूल भी मिलते हैं।

रविवार, 23 मार्च 2014

सेम के गुण

सेम एक लता है। इसमें फलियां लगती हैं। फलियों की सब्जी खाई जाती है। इसकी पत्तियां चारे के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं।
- ललौसी नामक त्वचा रोग सेम की पत्ती को संक्रमित स्थान पर रगड़ने मात्र से ठीक हो जाता है।
- वैद्यक में सेम मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक, दाहजनक, दीपन तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली कही गई हैं।
- वात कारक होने से इसे अजवाइन , हिंग , अदरक , मेथी पावडर और गरम मसाले के साथ फिल्टर्ड या कच्ची घानी के तेल में बनाए. सब्जी में गाजर मिलाने से भी वात नहीं बनता.
- इसमें लौह तत्व , केल्शियम ,मेग्नेशियम , फोस्फोरस विटामिन ए आदि होते है.
- इसके बीज भी शाक के रूप में खाए जाते हैं। इसकी दाल भी होती है। बीज में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त रहती है। उसी कारण इसमें पौष्टिकता आ जाती है।
- सेम और इसकी पत्तियों का साग कब्ज़ दूर करता है.
- सेम रक्तशोधक है, फुर्ती लाती है, शरीर मोटा करती है।
- नाक के मस्सों पर सेम फली रगड़ कर फली को पानी में रखे. जैसे जैसे फली पानी में गलेगी , मस्से भी कम होते जाएंगे.
- चेहरे के काले धब्बों पर सेम की पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है.
- सेम की सब्जी खून साफ़ करती है और इससे होने वाले त्वचा के रोग ठीक करती है.
- बिच्छु के डंक पर सेम की पत्ती का रस लगाने से ज़हर फैलता नहीं.
- सेम के पत्तों का रस तलवों पर लगाने से बच्चों का बुखार उतरता है.

रविवार, 16 मार्च 2014

परोपकार की ईंटे

बहुत समय पहले की बात है एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे . उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।
वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी ,
” आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं। “
आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।
ऋषिवर बोले , “ प्रिय शिष्यों , आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है . मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें .
यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा .”
तो क्या आप सब तैयार हैं ?”
” हाँ , हम तैयार हैं ”, शिष्य एक स्वर में बोले .
दौड़ शुरू हुई .
सभी तेजी से भागने लगे . वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे . वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमे जगह – जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था .
सभी असमंजस में पड़ गए , जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीँ अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे ; खैर , सभी ने ऐसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।
“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया , भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।
यह सुनकर एक शिष्य बोला , “ गुरु जी , हम सभी लगभग साथ –साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी …कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभल -संभल कर आगे बढ़ रहा था …और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा -उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े…. इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की .”
“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ “, ऋषिवर ने आदेश दिया .
आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे . पर ये क्या जिन्हे वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे . सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे .
“ मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों के देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं .” ऋषिवर बोले।
“ दरअसल इन्हे मैंने ही उस सुरंग में डाला था , और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।
पुत्रों यह दौड़ जीवन की भागम -भाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है . पर अंत में वही सबसे समृद्ध होता है जो इस भागम -भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है .
अतः यहाँ से जाते -जाते इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन में सफलता की जो इमारत खड़ी करें उसमे परोपकार की ईंटे लगाना कभी ना भूलें , अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी ।

ये सवाल अपने आप से पूछना!

एक सड़क किनारे एक सेठ मजदुर को डाट रहे थे , उसे गालियाँ और भला - भूरा कह रहे थे .
सेठ कि आँखों पे चश्मा हाथो में सोने का कड़ा उंगलियोमे अंगुठिया कीमती कपडे पुरे रोब के साथ मजदुर कि छोटी गलती कि वजह से उस पे बरस रहे थे . गरीब मजदुर फटे - पुराने कपडे पहने नजरे झुकाये सब सुन रहा था .
अचानक एक ट्रक ज़ोर से आया दोनों को कुचल दिया . दोनों खून से लथ - पथ थे . कुछ घंटो बाद दोनों को अलग - अलग चिता पर सफ़ेद कफ़न लिपटाकर जलाया जा रहा था . अब दोनों में कोई फरक नहीं था .
जब मरना सभी को है एक जैसा तो अहंकार किस बात का ?
पैसे का ?
किसी पद का ?
या किसी ऊँची जात का ?
ये सवाल अपने आप से पूछना!

रविवार, 9 मार्च 2014

एसिडिटी का कारण?

कई बीमारियां ऐसी होती हैं। जिसे हम खुद ही बुलावा देते हैं। कहने का मतलब यह है कि हमारी गलत जीवनशैली ही ऐसे रोगों को बढ़ावा देती है। एसिडिटी ऐसे ही रोगों में से एक है। एसिडिटी को चिकित्सकीय भाषा में गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफलक्स डिजीज (GERD) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे अम्ल पित्त कहते हैं। आज इससे हर दूसरा व्यक्ति या महिला पीडि़त है। एसिडिटी होने पर शरीर की पाचन प्रक्रिया ठीक नहीं रहती।

सिडिटी का कारण?
आधुनिक विज्ञान के अनुसार आमाशय में पाचन क्रिया के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पेप्सिन का स्रवण होता है। सामान्य तौर पर यह अम्ल तथा पेप्सिन आमाशय में ही रहता है तथा भोजन नली के सम्पर्क में नही आता है। आमाशय तथा भोजन नली के जोड पर विशेष प्रकार की मांसपेशियां होती है जो अपनी संकुचनशीलता से आमाशय एवं आहार नली का रास्ता बंद रखती है तथा कुछ खाते-पीते ही खुलती है। जब इनमें कोई विकृति आ जाती है तो कई बार अपने आप खुल जाती है और एसिड तथा पेप्सिन भोजन नली में आ जाता है। जब ऐसा बार-बार होता है तो आहार नली में सूजन तथा घाव हो जाते हैं।इसकी वजह गलत खान-पान, आरामदायक जीवनशैली, प्रदूषण, चाय, कॉफी, धूम्रपान, अल्कोहल और कैफीनयुक्त पदार्थों का ज्यादा इस्तेमाल करना है।

एसिडिटी के लक्षण?
एसिडिटी के लक्षणों में हैं सीने और छाती में जलन। खाने के बाद या प्राय: सीने में दर्द रहता है, मुंह में खट्टा पानी आता है। इसके अलावा गले में जलन और अपचन भी इसके लक्षणों में शामिल होता है। जहां अपचन की वजह से घबराहट होती है, खट्टी डकारें आती हैं। वहीं खट्टी डकारों के साथ गले में जलन-सी महसूस होती है।
कुछ घरेलू उपचार-
1:हर तीन टाइम भोजन के बाद गुड जरुर खाएं। इसको मुंह में रखें और चबा चबा कर खा जाएं।
2:एक कप पानी उबालिये और उसमें एक चम्मच सौंफ मिलाइये। इसको रातभर के लिए ढंक कर रख दीजिये और सुबह उठ कर पानी छान लीजिये। अब इसमें 1 चम्मच शहद मिलाइये और तीन टाइम भोजन के बाद इसको लीजिये।
3:एक गिलास गर्म पानी में एक चुटकी कालीमिर्च चूर्ण तथा आधा नींबू निचोड़कर नियमित रूप से सुबह सेवन करें। इसके साथ ही सदाल के रूप मे मूली को जरुर शामिल करें। उस पर काला नमक छिडक कर खाएं।
4:एक लौंग और एक इलायची ले कर पाउडर बना लें। इसको हर मील के बाद माउथफ्रेशनर के रूप में खाएं। इसको खाने से एसिडिटी भी सही होगी और मुंह से बदबू भी नहीं आएगी।

ऐसे करें बचाव-
1.समय पर भोजन करें और भोजन करने के बाद कुछ देर टहलें ।
2.अपने खाने में ताजे फल, सलाद, सब्जियों का सूप, उबली हुई सब्जी को शामिल करें। हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित अनाज खूब खाएं। ये विटामिन बी और ई का बेहतरीन स्रोत होते हैं जो शरीर से एसिडिटी को बाहर निकाल देते हैं।
3.खाना हमेशा चबा कर और जरूरत से थोड़ा कम ही खाएं। सदैव मिर्च-मसाले और ज्यादा तेल वाले भोजन से बचें।
4.अपने रोजमर्रा के आहार में मट्ठा और दही शामिल करें।
5.शराब और मांसाहारी भोजन से परहेज करें।
6.पानी खूब पिएं। याद रखें इससे न सिर्फ पाचन में मदद मिलती है, बल्कि शरीर से टॉक्सिन भी बाहर निकल जाते हैं।
7.खाने के बाद तुरंत पानी का सेवन न करें। इसका सेवन कम से कम आधे घंटे के बाद ही करें।
8.धूम्रपान, शराब से बचें।
9.पाइनेपल के जूस का सेवन करें, यह एन्जाइम्स से भरा होता है। खाने के बाद अगर पेट अधिक भरा व भारी महसूस हो रहा है, तो आधा गिलास ताजे पाइनेपल का जूस पीएं। सारी बेचैनी और एसिडिटी खत्म हो जाए
10.आंवले का सेवन करें हालांकि यह खट्टा होता है, लेकिन एसिडिटी के घरेलू उपचार के रूप में यह बहुत काम की चीज है।
11.गैस से फौरन राहत के लिए 2 चम्मच ऑंवला जूस या सूखा हुआ ऑंवला पाउडर और दो चम्मच पिसी हुई मिश्री ले लें और दोनों को पानी में मिलाकर पी जाएं।

ऐलुमिनियम के पात्र वर्जित हैं

क्या आप जानते है ऐलुमिनियम के पात्रो में कुछ पकाकर खाना सबसे खतरनाक है और आधुनिक विज्ञान इसको मानता हैं।
यहाँ तक कि आयुर्वेद में भी ऐलुमिनियम के पात्र वर्जित हैं।

जिस पात्र में खाना पकाया जाता है, उसके तत्व खाने के साथ शरीर मे चले जाते है और क्योकि ऐलुमिनियम भारी धातू हैं इसलिये शरीर का ऐसक्रिटा सिस्टम इसको बाहर नहीं निकल पाता। ये अंदर ही इकट्ठा होता रहता हैं और बाद में टीबी और किडनी फ़ेल होने का कारण बनता हैं। आंकड़ों से पता चलता है जब से अंग्रेजों ने एल्युमिनियम के बर्तन भारत में भेजे हैं पेट के रोगों में बढ़ोत्तरी हुई है।

अंग्रेजों ने भगत सिंह, उधम सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे जितने भी क्रांतिकारियों को अंग्रेजो ने जेल में डाला। उन सबको जानबुझ कर ऐलुमिनियम के पात्रो में खाना दिया जाता था, ताकि वे जल्दी मर जायें।

बड़े दुख की बात है आजादी के 64 साल बाद भी बाक़ी क़ानूनों की तरह ये कानून भी नहीं बदला नहीं गया हैं। आज भी देश की जेलो मे कैदियो को ऐलुमिनियम के पात्रो मे खाना दिया जाता है।

लेकिन आज हमने अपनी इच्छा से अपने शौक से इस प्रैशर कुकर को घर लाकर अपने मरने का इंतजाम खुद कर लिया हैं।

हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है?

किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने को ही था . उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घांस के पास एक जगह देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा. अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी, लगभग उसी समय आसमान मे काले काले बादल छा गए और घनघोर बिजली कड़कने लगी जिससे जंगल मे आग भड़क उठी . वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं और देखा लेकिन ये क्या वहां एक बहेलिया उसकी और तीर का निशाना लगाये हुए था, उसकी बाईं और भी एक शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी और बढ़ रहा था अब वो हिरणी क्या करे ?, वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है , अब क्या होगा?,
क्या वो सुरक्षित रह सकेगी?, क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ?, क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा?,
या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा?, अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से बच पायेगी ? या क्या वो उस खूंखार शेर के पंजों की मार से दर्दनाक मौत मारी जाएगी? जो उसकी और बढ़ रहा है,
उसके एक और जंगल की आग, दूसरी और तेज धार वाली बहती नदी, और सामने उत्पन्न सभी संकट,
अब वो क्या करे? लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नव आगंतुक को जन्म देने की और केन्द्रित कर दिया .फिर जो हुआ वो आश्चर्य जनक था . कडकडाती बिजली की चमक से शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, और उसके हाथो से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर को जा लगा . बादलो से तेज वर्षा होने लगी और
जंगल की आग धीरे धीरे बुझ गयी. इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म दिया . ऐसा हमारी जिन्दगी मे भी होता है, जब हम चारो और से समस्याओं से घिर जाते है, नकारात्मक विचार हमारे दिमाग को जकड लेते है, कोई संभावना दिखाई नहीं देती , हमें कोई एक उपाय करना होता है., उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है, जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझनेलायक नहीं छोड़ते . ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की हमें अपनी प्राथमिकता की और देखना चाहिए, जिस प्रकार हिरणी ने
सभी नकारात्मक परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर भी अपनी प्राथमिकता "प्रसव "पर ध्यान
केन्द्रित किया, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी.बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ मे था ही नहीं, और उसकी कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ बच्चे की जान ले सकती थी उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की और ही ध्यान देना चाहिए . हम अपने आप से सवाल करें, हमारा उद्देश्य क्या है, हमारा फोकस क्या है ?, हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है, ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद करना चाहिए , उस पर विश्वास करना चाहिए जो की हमारे ह्रदय मे ही बसा हुआ है . जो हमारा सच्चा रखवाला और साथी है....