रविवार, 16 जून 2019

मर्जों का दुभाषिया- झुम्पा लाहिड़ी

 "इससे मैं कुछ समझ नहीं पायी। मि. पीरज़ादा और मेरे मां-बाप एक ही भाषा बोलते हैं, एक ही तरह के चुटकुलों पर हंसते हैं, कमोबेश एक ही जैसे दिखायी पड़ते थे। वे अपने खाने में आम का अचार खाते हैं, अपने हाथों से रात के भोजन में चावल खाते हैं। मेरे मां-बाप की तरह कमरे में प्रवेश से पहले मि. पीरज़ादा जूते उतारते हैं, खाना खाने के बाद हाजमे के लिए सौंफ खाते हैं, शराब नहीं पीते हैं, भोजन के अंत में मीठे व्यंजन के तौर पर बिना किसी आडम्बर के चाय के कप में बिस्कुट डुबाकर खाते थे। तिस पर भी मेरे पिता आग्रह करते थे कि मैं अंतर समझूं और वे मुझे अपने डेस्क के ऊपर लगे दुनिया के नक्शे के सामने ले जाते हैं। वे चिंतित दिखते थे कि मि. पीरज़ादा उसे भारतीय के रूप में संबोधन से नाराज हो सकते हैं, हालांकि मैं वास्तव में कल्पना नहीं कर सकती थी कि मि. पीरज़ादा किसी चीज से खीज सकते थे "मि. पीरज़ादा बंगाली हैं मगर वह एक मुसलमान हैं" 

(मर्जों का दुभाषिया- झुम्पा लाहिड़ी)



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मंगलवार, 4 जून 2019

मुद्राराक्षस संकलित कहानियां-मुद्राराक्षस

 "कितना होता होगा पांच हजार रुपया? पांच हजार! शायद एक बड़े घड़े में भरा जाए तो भी न समाए या फिर उसके लिए बहुत ही बड़े लोहे के संदूक की जरूरत होती हो। हरी ने सोचा और उस जंगली पौधे के मुलायम पत्तों का गट्ठा घास की डोरी में बांध लिया जिसे वह कुकरौंधा कहता था और जिसके बारे में उसका खयाल था कि उसके रस से चोट ठीक हो जाती है।" 

(मुद्राराक्षस संकलित कहानियां-मुद्राराक्षस)



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रविवार, 2 जून 2019

एवरेस्ट पर ट्रैफिक जाम

 29 मई 1953 को सुबह साढ़े 11 बजे जब सर एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर कदम रखा था, तो इंसान के हौसले, दृढ़ इच्छाशक्ति और अदम्य जिजीविषा की एक नई इबारत लिखी गई थी। 
जो अब तक अबूझ है, उसे जानने की लालसा लेकर इंसान समुद्र की अतल गहराइयों तक भी पहुंचा है, अंतरिक्ष की असीम ऊंचाइयों को छूने निकला और अजेय माने जाने वाली पर्वत चोटियों पर विजय की पताका लहराई।   इन साहसी-दुस्साहसी कारनामों से इंसान ने अपनी क्षमताओं को तो जान लिया, लेकिन प्रकृति के मर्म को समझ नहीं पाया। यही कारण है कि मोती और रत्न सहेजने वाले सागर में कचरा जमा हो रहा है और उसका खामियाजा जीव-जंतुओं को भुगतना पड़ रहा है। अं
तरिक्ष भी प्रदूषण की चपेट में आ रहा है और अब एवरेस्ट से भी ऐसी ही चिंता उपजाने वाली खबर आई है।  इस साल अब तक 11 पर्वतारोहियों की मौत इस 8, 848 मीटर ऊंची चोटी पर चढ़ने के दौरान हो चुकी है। इसका कारण अत्यधिक ठंड, और आक्सीजन की कमी तो है ही, नौसिखिए पर्वतारोहियों का चढ़ना भी एक बड़ी समस्या है।   एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे से बहुत से पर्वतारोहियों ने प्रेरणा तो ली, लेकिन उनसे प्रकृति की उदात्तता के आगे समर्पण वाली भावना शायद नहीं ली गई। अब सब को एवरेस्ट पर झंडे गाड़ना है, वहां पहुंचकर सेल्फी लेना है कि देखो हम दुनिया में सबसे ऊंचे हो गए हैं। वैसे एवरेस्ट पर सेल्फी के शौकीनों को यह याद रखना चाहिए कि एडमंड हिलेरी ने यह कारनामा करने के बाद बर्फ काटने वाली कुल्हाड़ी के साथ तेनजिंग नोर्गे की फोटो ली, अपनी नहीं खिंचवाई।  तेनजिंग ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हिलेरी ने अपनी फोटो खिंचवाने से मना कर दिया था। 
बहरहाल, ऊंचा होने का यह शौक ही अब जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि एवरेस्ट पर ट्रैफिक जाम जैसी स्थिति बनी हो। लेकिन अब पर्वतारोहियों की बढ़ती भीड़ के कारण चढ़ने और उतरने में अधिक वक्त लग रहा है, जिस कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं। हाल ही में एक पर्वतारोही और एडवेंचर फिल्ममेकर एलिया साइक्ले ने इंस्टाग्राम पर डाली एक पोस्ट में कहा कि- मौत, लाशें, अराजकता, रास्तों पर लाशें और कैंप में और लाशें।  जिन लोगों को मैंने वापस भेजने की कोशिश की थी, उनकी भी यहां आते-आते मौत हो गई। लोगों को घसीटा जा रहा है। 
कुछ ऐसा ही अनुभव एक अन्य पर्वतारोही अमीषा चौहान का था, जिन्हें एवरेस्ट से उतरने के दौरान भीड़ के कारण लगभग 20 मिनट इंतजार करना पड़ा।   यह सब अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है, लेकिन यही कड़वी सच्चाई है। और अब लोगों की जान के साथ-साथ पर्यावरण का नुकसान न हो इसके लिए पहल करनी होगी। हाल ही में नेपाल ने एवरेस्ट पर सफाई अभियान चलाया और दशकों से इकठ्ठा हुए लगभग 11 टन कचरे को वहां से हटाया। इस पूरे काम में एक महीने से अधिक का वक्त लगा।  अनुमान लगाया जा सकता है कि एवरेस्ट पर चढ़ने की ललक कितनी हानिकारक साबित हो रही है। वैसे एवरेस्ट नेपाल के लिए आय का एक बड़ा जरिया है। इसके आरोहण के लिए नेपाल की ओर से जारी किए जाने वाले परमिट की कीमत करीब 11 हजार डॉलर है। इससे नेपाल के पास अच्छी खासी विदेशी मुद्रा आती है। इसलिए नेपाल फिलहाल पर्वतारोहियों की संख्या सीमित रखने का कोई विचार नहीं कर रहा है। लेकिन देर-अबेर इस संकट के बारे में सोचना ही होगा।       साभार- देशबंधु