शुक्रवार, 19 मार्च 2021

मंगल ग्रह का पानी उड़ा नहीं, वहीं 4 अरब साल से सतह की नीचे छुपा है

 Martian waters मंगल ग्रह को धरती से मिलता-जुलता ग्रह माना जाता है, साथ ही वैज्ञानिकों यह भी उम्मीद है कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना हो सकती है। 

मंगल ग्रह को लेकर किए गए अभी तक सभी शोधों व वैज्ञानिक परीक्षणों में यह खुलासा हुआ है कि अरबों साल पहले मंगल ग्रह पर बड़ी तादाद में सागर और झीलें हुआ करती थी, लेकिन फिलहाल ये ग्रह पूरी तरह से सूख गया है और एक चट्टानी ग्रह बन गया है। साथ ही वैज्ञानिक यह भी मानते आए हैं कि मंगल ग्रह से पानी अब अंतरिक्ष में उड़ गया है। 

लेकिन अब NASA द्वारा वित्तपोषित एक अध्ययन के मुताबिक मंगल ग्रह से पानी कहीं नहीं गया, बल्कि ग्रह की ऊपरी सतह में खनिजों के बीच ही फंसा हुआ है. मंगल ग्रह की ऊपरी सतह पर ही मौजूद है पानी 'साइंस' पत्रिका में नए शोधपत्र की मुख्य लेखिका ईवा स्केलर ने कहा कि मंगल ग्रह की परी सतह पानी भरे खनिजों से बनी है, ऐसे खनिज, जिनके क्रिस्टल स्ट्रक्चर में ही पानी है। 



स्केलर के मॉडल से संकेत मिलता है कि मंगल ग्रह पर करीब 30 से 99 फीसदी पानी इन्हीं खनिजों में फंसा हुआ है। शोध के मुताबिक मंगल ग्रह पर इतना पानी था कि वह लगभग 100 से 1,500 मीटर (330 से 4,920 फुट) समुद्र से ही समूचे ग्रह को कवर कर सकता था। मंगल ग्रह ने अपना अपना मैग्नैटिक फील्ड खो दिया था इस कारण से मंगल ग्रह का पर्यावरण धीरे-धीरे समाप्त हो गया।

 पूरा पानी अंतरिक्ष में नहीं उड़ा शोधकर्ताओं का दावा है कि मंगल ग्रह का पूरा पानी अंतरिक्ष में नहीं उड़ा है। नए अध्ययन के लेखकों के अनुसार कुछ पानी जरूर खत्म हुआ होगा, या गायब हो गया होगा, लेकिन अधिकतर पानी ग्रह पर ही है। 

मार्स रोवरों द्वारा किए गए ऑब्जर्वेशनों और ग्रह के उल्कापिंडों का इस्तेमाल कर टीम ने पानी के अहम हिस्से हाइड्रोजन पर फोकस किया है। हाइड्रोजन के अलग-अलग तरह के अणु होते हैं। अधिकतर के न्यूक्लियस में सिर्फ एक प्रोटॉन होता है, लेकिन बहुत कम (लगभग 0.02 प्रतिशत) के भीतर एक पेरोटॉन के साथ एक न्यूट्रॉन भी होता है, जिसकी वजह से उनका वजन बढ़ जाता है। इन्हें ड्यूटेरियम या 'भारी' हाइड्रोजन के नाम से जाना जाता है। हल्के अणु ग्रह के वातावरण को तेज गति से छोड़ जाते हैं, अधिकतर पानी अंतरिक्ष में चले जाने की वजह से कुछ भारी ड्यूटेरियम पीछे छूट गए।

साभार-नई दुनिया 

समाज की बात samaj ki baat कृष्णधर शर्मा  KD Sharma

स्मॉग टॉवर : क्या यही है राइट च्वाइस ?

 सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। 

बीते महीने के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण पर सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्मॉग टॉवर न लगने पर कड़ी नाराजगी जताई थी। शीर्ष अदालत ने पूछा था कि उसके आदेश के बावजूद अभी तक टॉवर क्यों नहीं लगे। शीर्ष अदालत की फटकार पर सरकार की तरफ से अदालत को सही तकनीकी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई बल्कि मीडिया में जो खबरें आईं उससे यही प्रतीत होता है कि सरकार वायु प्रदूषण की समस्या की असल जड़ से अदालत और जनता का ध्यान हटाना कर स्मॉग टॉवर में उलझाना चाहती है। 

सरल शब्दों में समझें तो स्मॉग टॉवर एक तरह से बहुत बड़ा एयर प्योरीफायर होता है, जो वैक्यूम क्लीनर की तरह धूल कणों को हवा से खींच लेता है। आमतौर पर स्मॉग टॉवर में एयर फिल्टर की कई परतें फिट होती हैं, जो प्रदूषित हवा, जो उनके माध्यम से गुजरती है, को साफ करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक स्मॉग टॉवर 50 मीटर की परिधि की वायु को साफ कर सकता है। 

स्मॉग टॉवर का आईडिया मूलतः चीन से आया है। वर्षों से वायु प्रदूषण से जूझ रहे चीन के पास अपनी राजधानी बीजिंग में और उत्तरी शहर शीआन में दो स्मॉग टॉवर हैं। पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने इस वर्ष 3 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी के लाजपत नगर में एक प्रोटोटाइप एयर प्यूरीफायर का उद्घाटन किया। उन्होंने ट्वीट किया, “मेरा नाम गौतम गंभीर है। मैं बात करने में विश्वास नहीं करता, मैं जीवन को बदलने में विश्वास करता हूँ! सतत समर्थन के लिए माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी को धन्यवाद।” 

अब इन स्मॉग टॉवर को लेकर विवाद उठ रहे हैं। इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली में स्मॉग टॉवर स्थापित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि इससे चीनी कंपनियों को पैसा मिलेगा और यह साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि स्मॉग टॉवर प्रदूषण को नियंत्रित कर सकता है। इसके इतर काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर (CEEW) के अनुसार राजधानी दिल्ली की हवा को साफ करने के लिए कम से कम लगभग पौने दो करोड़ रूपये की लागत वाले पच्चीस लाख स्मॉग टावरों की जरूरत होगी।

 दरअसल सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। असल बात यह है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बंद नहीं किए जाएंगे, तब तक स्मॉग टॉवर जैसे टोटके सिर्फ जन-धन की हानि करते रहेंगे। वायु प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोत कल कारखाने और थर्मल पॉवर प्लांट हैं। प्रदूषण उत्पन्न करने वाले इन असल स्रोतों पर कोई आंच नहीं आए इसी लिए कभी पराली जलाने को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जा ता ह और कभी कोई और तर्क दे दिए जाते हैं।   

पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2015 में बिजली संयंत्रों के लिए नए उत्सर्जन नियमों की पुष्टि की थी। उन्हें लागू करने की मूल समय सीमा पहले दिसंबर 2017 थी, लेकिन फिर दिसंबर 2019 तक आगे धकेल दी गई और बाद में इसे दिसंबर 2022 तक कंपित कार्यान्वयन में बदल दिया गया। इधर इस वर्ष के शुरू में आई एक खबर पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से मीडिया में रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई थीं कि भारत के आधे से अधिक कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों और 94% कोयला-संचालित इकाइयों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण का आदेश दिया गया था। लेकिन नई दिल्ली के आसपास कोयले से चलने वाले उद्योग भारतीय अधिकारियों की इस चेतावनी कि अगर उन्होंने साल के अंत तक सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उपकरण नहीं लगाए तो इन उद्योगों को बंद कर दिया जाएगा, के बावजूद ये संयंत्र बिना उपकरणों के चल रहे थे। 

एक तरफ तो दिल्ली में स्मॉग टॉवर लगाकर वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के टोटके किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार कोयला क्षेत्र को निजी खनन के लिए खोलकर देश की हवा को और अधिक जहरीला बनाने के इंतजाम कर रही है। जरूरत इस बात की थी कि जो भी याचिकाकर्ता सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील देने गए थे कि स्मॉग टॉवर से चीन की इकॉनॉमी को पायदा होगा, वह शीर्ष अदालत के सामने सही तर्क प्रस्तुत करते कि स्मॉग टॉवर समस्या का समाधान नहीं है और यह सिर्फ जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई की बर्बादी है, इसलिए इससे बहुत कम खर्च पर कोयला-संचालित इकाइयों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए रेट्रोफिट उपकरण लगाने पर सख्ती की जाए। 

(अमलेन्दु उपाध्याय  साभार-देशबंधु )

समाज की बात samaj ki baat कृष्णधर शर्मा KDSharma