बुधवार, 20 जुलाई 2022

मी अमोर- नाज़िया खान, शालिनी पाण्डेय

 "निभाना पड़ता है इसको, मोहब्बत एक वा'दा है" "मी अमोर (My Love) अफ़साने इश्क़ के" पढ़ना शुरू करते ही आप के कदम एक रूहानी दुनिया की तरफ बेसाख्ता ही बढ़ते चले जाते हैं जहाँ से पीछे मुड़कर देखना ख़ुद पर ज़ुल्म करने जैसा लगता है। दुनिया-जहान की तमाम मुश्किलों और जद्दोजहद से अलग एक दूसरी ही दुनिया में पहुँच जाते हैं जहाँ पर सिर्फ "इश्क़ ही इश्क़" महसूस होता है।

  नाज़िया मैम और शालिनी जी की इस रूहानी क़िताब के कुछ हिस्से आपके सामने हैं, मगर बिना पूरी क़िताब पढ़े आपको भी चैन न आएगा। "किसी के इश्क़ में गिरफ्तार होना, या उसे 'आई लव यू' कह देना कुछ यूँ है कि सामने वाले के हाथों में लोडेड बंदूक देते हुए नाल को अपने दिल के नज़दीक सटा कर दुआ करना कि बस ट्रिगर दबाए नहीं। इश्क़ सबका अलहदा होता है, सबका एक सा हो तो वह इश्क़ के अलावा कुछ भी हो सकता है। इश्क़ मुक़म्मल हो ज़रूरी नहीं पर रास्ता ख़ुशनुमा होना ज़रूरी होता है। रास्ते में तकलीफ़ें अगर चुभें तो इश्क़ नहीं हो सकता।" "ये किस जाहिल ने कहा कि इश्क़ में होने पर यह सब करना होता “अच्छा तुझे बड़ा पता है, फिर खुद ही बता दे, इश्क़ क्या होता है?" 

 “इश्क़ सिर्फ़ औरत और मर्द के बीच नहीं होता। सूफ़ियों ने कहा है, अगर इश्क़ न होता, इन्तज़ाम आलमे सूरत न पकड़ता। इश्क़ के बगैर जिन्दगी वबाल है। इश्क़ को दिल दे देना कमाल है। इश्क़ बनाता है, इश्क़ जलाता है। दुनिया में जो कुछ है, इश्क़ का जलवा है। आग इश्क़ की गर्मी है, हवा इश्क़ की बेचैनी है, पानी इश्क़ की रफ़्तार है, ख़ाक इश्क़ का क्रियाम है। मौत इश्क़ की बेहोशी है, ज़िन्दगी इश्क़ की होशियारी है, रात इश्क़ की नींद है, दिन इश्क़ का जागना है। नेकी इश्क़ की क़ुरबत है, गुनाह इश्क़ से दूरी है, जन्नत इश्क़ का शौक़ है, जहन्नुम इश्क़ का ज़ौक़ है।” 

"प्यार एक नई दुनिया बना लेता है जो सबके बीच रहकर भी सबसे अलग होती है।" 

"भरोसा है उस पर?"

 “उस पर है, उसके मिल जाने का नहीं है।”

 "फिर क्या है ये सब, क्यों है?"

 “यह बिल्कुल सच है न, उम्मीद जानलेवा होती है, कुछ भी करा सकती है। प्रेम आत्मसम्मान की कड़ी परीक्षा लेता है। फिर एक फेज़ पर आते आते सम्मान/आत्मसम्मान / ईगो का भेद ख़त्म सा हो जाता है। वहाँ से शुरू होती है खुद की हस्ती मिटाने की शुरुआत। अपनी चाहतें, अपनी ज़रूरतें, अपनी इमोशनल नीड्स सब सेकंडरी हो जाती हैं। वह आपकी सुने, इससे ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है, जब उसे कुछ सुनाना हो और यू आर ऑल इयर्स।" "हज़ार शिक़वे और नाराज़गी एक स्माइल वाले लुक पर निसार हो और उसकी ओट में छिप जाएं वह सारी बेचैनियाँ और फ़िक्रमन्दी। शर्मिंदगी होने लगे अपनी एक्स्ट्रा भावुकता पर इतना भी क्या सेंसिटिव होना यार। कहाँ गयी वह सारी समझदारी, वह मैच्युरिटी? कोई बच्चा थोड़े ही था, जो हाथ छुड़ाकर भाग गया था आगे-आगे। पर मन का क्या करें, फिर दौड़ा जाता है पीछे-पीछे। मन भूल जाता है न, प्रेम हक़ जमाकर, अपनी मोहर लगाकर बेफ़िक्र हो जाने वाली शय है। पलटकर तभी देखेगा, जब अंदर का शोर बेक़रार कर देगा।"

 "धानी अब यह सोच कर मुस्कुरा रही थी कि ये सारे पुरुष सिंदूर, चूड़ी, बिंदी पर ही क्यों अटक जाते हैं? औरत है या ज़मीन का टुकड़ा, जिस पर अधिकार की मुहर लगाकर इनका अहम संतुष्ट हो जाता है। पुरुष प्रेमी हो या पति, अपने अधिकार की मुहर लगाने की चाह उसमें कभी नहीं मरती।" (मी अमोर- नाज़िया खान, शालिनी पाण्डेय)



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सोमवार, 18 जुलाई 2022

कथा सागर, विनोदिनी के पाँच उपन्यास- विनोदिनी

 ग्यारहवाँ दिन आज के दिन भी पत्रो नदी के घाट जाकर पिन्डदान तर्पण हुआ। फिर घर से थोड़ी दूर ही देवालय में अन्य श्राद्धकर्म, पूजन दोपहर तक चलता रहा, वहीं दरिद्र भोजन की व्यवस्था थी, सबों को खाना खिलाते-खिलाते करीब तीन बज गए । महेन्द्र बाबू भूख-प्यास से निढाल हो रहे थे, गंगा भी उनके साथ था उसने घर से प्रबन्ध कर नींबू का शर्बत ला सबों को पिलाया । उनकी तब कुछ जान में जान आई। आज आखिरी श्राद्ध था, कल तो पहले हवन फिर ब्राह्मण भोजन उसके बाद शहर के सभी जात बिरादरी को खाने का न्योता दिया गया है। 

जब वे थके हारे लौटे तब वहाँ पंडाल बाँधा जा रहा था, पिछवाड़े हलवाई बैठे मिठाइयाँ बना रहे थे। देखकर उनका तन-मन जल गया, उनके मना करते करते भी सब तरह के आडम्बर पुराने रीति-रिवाज सब पूरे किए जा रहे थे। उन्होंने चाचा और भाई कमला से कितना कहा था कि यह कोई ब्याह का मौका तो है नहीं, मरनी की बात है सब काम काज बहुत ही सादगीपूर्ण होना चाहिए। केवल ब्राह्मण-भोज तथा परिवार के सदस्य का ही खाना, पीना होगा और इतने हलवाई महराज बैठाने की क्या आवश्यकता है, केवल पूरी तरकारी घर में बनना चाहिए, बाकी मिठाई बाजार से आ जाएगी। परन्तु उनकी सुनता ही कौन था, चाचा की तो बस एक ही बात-वही बेटा-जैसा देश वैसा भेस-यदि यहाँ के रीति-रिवाज के अनुसार काम नहीं हुआ तो जात बिरादरी में थू-थू हो जाएगी। इतने सारे सगे-सम्बन्धी आ रहे हैं, वे क्या कहेंगे ? आगे हमारे बाल-बच्चों की ब्याह शादी होनी मुश्किल हो जाएगी। परिवार की बदनामी हो जाएगी!. (कथा सागर, विनोदिनी के पाँच उपन्यास- विनोदिनी)



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मंगलवार, 5 जुलाई 2022

पत्थर में भी खिल जायेंगे

 

हमें क्या ढूंढते हो हम तो कहीं भी मिल जायेंगे

हम वो फूल हैं जो पत्थर में भी खिल जायेंगे

                      कृष्णधर शर्मा 04.07.22