शनिवार, 27 जुलाई 2024

यूँ ही कोई मुस्कुराना नहीं छोड़ता

 चोट गहरी लगी होगी उसको जरुर यूँ ही कोई उदास नहीं होता

बात कुछ तो हुई होगी जरुर यूँ ही कोई मुस्कुराना नहीं छोड़ता

                                      कृष्णधर शर्मा 26.07.24

शनिवार, 20 जुलाई 2024

चंद्रलोक की यात्रा- विष्णु प्रभाकर

 अभी कुछ देर पहले जब उपेन्द्र बाहर जाने की तैयारी कर रहा था, तब विभा उससे कहा था, 

"मुझे रुपए चाहिए। त्योहार नजदीक है। लड़की के घर कुछ भेजना होगा। मनोज के लिए दवाई भी चाहिए।" 

उपेन्द्र ने सुन लिया था और देखकर कहा था.

 "कोशिश करूंगा कि एक टकसाल खोल लूं।" 

विभा उस मजाक का अर्थ समझती है। पैसा उसके पास नहीं है। न हो, उससे क्या? उसे तो चाहिए। इस बात को वह भी जानता हैं, लेकिन शायद समस्या का सामना करने का साहस उसमें नहीं है। इसलिए वह ऐसी अर्थहीन बात कहता है। विभा ने उसी लहजे में उत्तर दिया था, 

"तो खोल डालिए न, हमारी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी।" 

परिहास भी पलायन का एक रूप हैं। असल में वे दोनों ही एक-दूसरे से बचने के प्रयत्न में रहते थे। वे जानते हैं कि असम्भव है, लेकिन जो असम्भव को साधना चाहता है, उसी को मनीषियों ने मनुष्य कहा है। उपेन्द्र विभा की बात सुनकर मुसकरा आया था। कहा था, 

"चिन्ता क्यों करती हो, समस्याएं आती ही इसलिए हैं कि वे हल हों। हमारी समस्याओं का हल भी निकल आएगा। आज पैसा नहीं है तो क्या हल भी नहीं होगा? उसे होना होगा।"

 उत्तर देने के लिए विभा के पास भी बहुत कुछ था, लेकिन वह जानती धी कि यह सब झूठ है और झूठ के सहारे आदमी कब तक जी सकता है? झूठ के सहारे आदमी जी नहीं सकता। सच का वह सामना करना नहीं चाहता। तब आखिर जीने की राह कौन-सी है? और अगर वह जीता है तो कैसे जीता है? उपेन्द्र लेखक है। कहने योग्य काफी यश उसने अर्जित किया है, लेकिन यश क्षुधा का हविष्य नहीं हो सकता। हविष्य हो सकते हैं पैसे, और मुसीबत यह है कि लेखक उपेन्द्र मान बैठा कि वह पैसों के लिए नहीं लिखता। वह लेखन को व्यवसाय नहीं बना सकता। वह टूट जाएगा, लेकिन अपनी चरित्र-निष्ठा को समझौते की कसौटी पर नहीं कसेगा। सहसा विभा सुनती है, कोई उसे पुकार रहा है। वह उसके बेटे की आवाज है। वह आवाज उसे कंपा देती है, क्योंकि उसके पास भी एक समस्या है। उसे कल ढाई सौ रुपए चाहिए। हर महीने चाहिए। वह इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता है। आज उसने अपने पिता से कहा था,

 "पिताजी, मैं परसों जा रहा हूं। कल मुझे रुपए मिल जाने चाहिए।" 

बिना माथे पर कोई शिकन डाले, उपेन्द्र ने धीरे से उत्तर दिया था, "इस बारे में कल बात करना।" बेटा बोला था, "बात क्या करनी है, मुझे रुपए चाहिए।" 

"हां, हां, सो तो ठीक है।"

 "तो फिर हो जाएंगे न?"

 "हां, हां, उन्हें होना होगा। तुम चिन्ता मत करो।" 

विभा की तरह विभा का बेटा भी जानता है कि उसके पिता के पास रुपयों का प्रबन्ध नहीं है। इसलिए वह चेतावनी देता है कि प्रबन्ध होना चाहिए, लेकिन उपेन्द्र है कि पूर्ण निश्चित । विभा जानती है कि यह निश्चितता एक धोखा है। ऊपर से वह जितना शान्त है, अन्दर से उतना ही संकट से आक्रान्त...। बेटा फिर पुकारता है, 

"मां, तुम अन्दर हो क्या?" 

विभा उत्तर देती है, 

"हां बेटा, यह रही गुसलखाने में।" 

पास आकर वह मुसकराता है, 

"तो तुम्हारा धोबी-घाट फिर खुल गया। कितने कपड़े धोती है, धोबी को क्यों नहीं देती?" 

"धोबी कपड़े फाड़ डालता है।" दो

नों जानते हैं कि यह उत्तर झूठ है, लेकिन विभा इसे सही प्रमाणित करने के लिए तर्क का मुखौटा लगा लेती है। बेटा यकायक निरस्त्र कहता है,

 "अच्छा मां, तुम्हारी ही बात ठीक है, लेकिन मेरे पैसों का क्या होगा? अगले महीने मुझे कपड़े भी बनवाने हैं।"

 "हां, कपड़े तो सभी को बनवाने हैं।" 

फिर वही पलायनवादी उत्तर। आदमी जानबूझकर क्यों अपने को छलना चाहता है? लेकिन इस बार बेटे का धीरज छूट जाता है। आवेश में आकर कहता है, 

"पिताजी यह सबकुछ समझते क्यों नहीं? क्यों वह पैसा पैदा करना नहीं चाहते? क्यों उन्होंने बार-बार नौकरी छोड़ी? क्यों वे आज डेढ़-दो हजार रुपए महीना नहीं कमा रहे होते? तब हम लोग भी इन्सान की तरह जी सकते थे। और कई ऐसे लेखक भी तो हैं, जो हजारों रुपए महीना कमाते हैं।" 

विभा धीरे से उत्तर देती है, "बेटे, तुम्हारे पिता पैसे को नहीं, आदर्श को प्यार करते हैं।" 

बेटा यकायक चीख-सा उठता है, "आदर्श, आदर्श, आदर्शों का युग कभी का बीत गया। यदि उन्हें यह भ्रम पालना ही था तो उन्होंने गृहस्थी क्यों जमाई? आदर्श के लिए स्वयं कष्ट उठा सकते हैं, दूसरों को कष्ट उठाने के लिए विवश करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं।" 

विभा अपने बेटे को जड़वत् देखती रह जाती है। वह उसका ही तो बेटा है। वह उसके पिता को, जो उसका अपना पिता है, किस तरह लांछित करने पर तुल आया है, लेकिन अपने अन्तरतम में वह भी अनुभव करती है कि वह बहुत गलत नहीं है। शायद वह शब्दों का ठीक-ठीक प्रयोग नहीं कर पाता। कुछ दूसरे ओढ़े हुए शब्दों में वह भी तो यही कहना चाहती रही है। यह दूसरी बात है कि अपने को छिपाने के लिए उसके पास कई मुखौटे हैं और बेटा साफगोई है। साफगोई क्या सच्चाई नहीं है? सच्चाई जिन्दगी का वह ऊबड़-खाबड़ रास्ता है, जिसे छिपाया नहीं जा सकता, लेकिन आज की सबसे बड़ी कला है, छिपाना। किसी तरह अपने-आपको शान्त करते हुए वह बेटे से कहती है,

 "तुम्हारे पिता ने जब कहा है कि पैसे मिल जाएंगे, तो फिर तुम क्यों ऐसी बातें कहते हो, जिनसे हमें दुःख पहुंचता है?" 

(चंद्रलोक की यात्रा- विष्णु प्रभाकर)




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शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

मेरे स्पिक मैके दिन- अशोक जमनानी

 मैंने बहुत आश्चर्य के साथ पूछा कि जब वे होशंगाबाद आईं थीं तब उन्हें अपनी बीमारी के बारे में पता था? रघुनाथ जी ने कहा कि हाँ उसे सब पता था। मैंने तुरंत कहा कि फिर वे दो-तीन घंटे के कार्यक्रम क्यों दे रहीं थीं? मेरी बात सुनकर रघुनाथ जी ने जो उत्तर दिया उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने कहा :' संजुक्ता कहती थी कि जब तक नृत्य है तब तक मृत्यु कहां! वो कहती थी कि नृत्य से अलग होना ही असल में मृत्यु होगी। बस इसीलिए वो नृत्य करती रही और सचमुच कुछ दिन नृत्य नहीं किया तो जीवन ने भी साथ छोड़ दिया।' वे रो पड़े और मैं फिर कुछ न कह पाया। मैंने उन्हें सहज देखा तो पूछ ही बैठा कि बुधनी में इतनी परेशानी के बाद भी उन्होंने दो घंटे क्यों बजाया? पंडित जी ने मुस्कुराकर जो कहा वह हमेशा याद आता रहता है। उन्होंने कहा : 'लोग हमारी परेशानी सुनने नहीं आते वे हमारा संगीत सुनने आते हैं। मंच से अपनी परेशानी नहीं अपनी कला को बांटना होता है। वो भी इस तरह कि हमारी कला सबके दिल में एक याद की तरह बस जाए। 

कलाकार चाहे कितनी ही तकलीफ में क्यों न हो उसे अपने श्रोताओं को आनंद ही देना होता है। जिस दिन कार्यक्रम था पंडित जी उसी दिन सुबह की फ्लाइट से भोपाल आए और लगभग दस बजे होशंगाबाद आ गए। तबले पर संगत के लिए बनारस से सुप्रसिद्ध तबला वादक राम कुमार मिश्रा जी आ रहे थे लेकिन सुबह आने वाली उनकी ट्रेन लेट होते चली गई और जब वे आए तब शाम के पाँच बज चुके थे। सात बजे कार्यक्रम शुरू होना था और हमें एक सौ बीस किलोमीटर की यात्रा करके पचमढ़ी पहुँचना था। राम कुमार जी को बस एक चाय पिलाकर हम चल पड़े। मालूम था कि बहुत तेज चलेंगे तब भी पहाड़ी रास्ता पहुँचते-पहुँचते आठ बजा ही देगा। मैंने पचमढ़ी सूचना भेज दी थी कि हम आठ बजे तक पहुँचेंगे। पिपरिया के बाद जब पहाड़ी रास्ता शुरू हुआ तो लगा कि अभी परीक्षा का एक और हिस्सा बाकी है। राम कुमार जी को अचानक उल्टियां होना शुरू हुईं और बदन बुखार से तपने लगा। हम सभी घबरा गए। कुछ देर के लिए गाड़ी रोकी। पंडित जी के पास कुछ दवाएँ थीं और मेरे पास प्रार्थना। 

थोड़ी देर बाद लगा कि राम कुमार जी की तबीयत कुछ ठीक है तो मैंने बहुत संकोच के साथ उनसे पूछा कि क्या हम चलें? उन्होंने कहा कि हाँ चलें लेकिन गाड़ी तेज न चलाएं। हम चल पड़े और जब पचमढ़ी पहुँचे तो नौ बज रहे थे। खुला मैदान, दिसंबर की तेज ठंड और उतनी ही तेज ठंडी हवा। पंडाल में कई अलाव जल रहे थे। मंच पर भी एक अलाव था। पंडित जी ने साज निकाला और राम कुमार जी ने भी तबला मिलाना शुरू किया। ठंड इतनी तीखी थी कि मैं जैकिट की जेब से हाथ नहीं निकाल पा रहा था और लगातार यही सोच रहा था कि पंडित जी और अस्वस्थ राम कुमार जी कैसे कार्यक्रम दे पाएंगे। मैं सोच ही रहा था कि पंडित जी ने माइक संभाल लिया। देरी से आने के लिए खेद जताकर उन्होंने सवाल उछाला कि क्या आप लोगों ने कभी शास्त्रीय संगीत सुना है। 

मैदान में बैठे अधिकांश लोग हँसे और आगे बैठे कुछ लोगों ने साफ-साफ़ कह दिया कि नहीं सुना। पंडित जी ने कहा कि आप मुझे पाँच मिनिट दीजिए मैं आलाप बजाऊंगा और उसके बाद जो बजेगा वो शास्त्रीय संगीत तो होगा लेकिन आपके दिल में एक यादगार बन कर हमेशा रहेगा। लोगों ने तालियां बजाईं और मोहन वीणा के तारों पर आलाप ने उतरना आरंभ किया। दो-तीन मिनिट बीते तो आलाप की गति जोड़ झाले की ओर बढ़ी और फिर पचमढ़ी की उन वादियों में संगीत का एक सम्मोहन जागा और देखते ही देखते सब के सब उस सम्मोहन में खोते चले गए। कुछ देर पहले जो राम कुमार जी ठीक से बैठ भी नहीं पा रहे थे उनकी उंगलियां तबले पर जादू रच रहीं थीं और सुनने वाले जैसे हर एक तिहाई के बाद आते सम को तालियों से भर देना चाहते थे। 

अद्भुत दृश्य था। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो श्रोता बहुत देर तक खड़े होकर तालियां बजाते रहे। मेरे लिए यह एक बिलकुल भिन्न अनुभव था। कोई कलाकार भीड़ को शास्त्रीय संगीत से इस तरह जोड़ सकता है यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। लेकिन जो विश्व मोहन हैं उनके लिए क्या असंभव है। मैंने पंडित जी से कहा कि आपकी मोहन वीणा असल में मोहिनी वीणा है। कार्यक्रम की सफलता राम कुमार जी के चेहरे पर भी थी और हम भूल चुके थे कि कुछ वक्त पहले वे कितने अस्वस्थ थे। वापस होशंगाबाद लौटे तो रात के दो बज रहे थे। थोड़ा-सा विश्राम करके पंडित जी सुबह की फ्लाइट के लिए भोपाल चले गए। 

मैं कला को समर्पित एक महान साधक की अनथक यात्रा को लेकर अब भी हैरान होता रहता हूँ। शायद ही कोई कलाकार इतनी यात्राएँ कर पाए। बिना रुके एक के बाद दूसरी यात्रा। पंडित जी के वादन में गति चमत्कार रचती है लेकिन उनकी यात्राओं की गति भी चमत्कार ही रचती है। पंडित विश्व मोहन भट्ट ने पूरी दुनिया में भारतीय संगीत के जादू से लोगों को जोड़ने में सफल हुए हैं तो यह उनकी साधना के साथ साथ उनकी निरंतर चलती यात्राओं और अथक मेहनत का ही परिणाम है। डॉ. किरण सेठ से मेरी पहली मुलाकात को याद करता हूँ तो हमेशा एक आदर्श जगमगा उठता है। 

राहुल ने ही मुझे बताया था कि मध्य प्रदेश का राज्य अधिवेशन एमएसीटी में होने वाला और उसमें डॉ सेठ भी आएंगे। उनके बारे में इतना कुछ सुन चुका था कि सारे काम छोड़कर भोपाल चला गया। एमएसीटी के वीआईपी गेस्ट हाउस में हम सभी को मिलना था। मैं कुछ समय पहले ही पहुँच गया था लेकिन कई लोग तो मुझसे भी पहले आ चुके थे। सभागार में काफी हलचल थी। मैं चप्पलें उतारकर भीतर जाने लगा तो देखा कि एक दुबले पतले व्यक्ति जिनकी दाढ़ी बढ़ी हुई है वे सभी की चप्पलों और जूतों को को एक व्यवस्थित क्रम में जमा रहे थे। गुरुद्वारों में इस तरह की सेवा करते लोगों को देखा था इसलिये लगा शायद यहाँ भी कोई टोकन मिलेगा। लेकिन उनके पास कोई टोकन नहीं था। वे तो बस इतने सलीके से चप्पलों को जमा रहे थे कि मैं कुछ देर तक उन्हें देखता रहा फिर मैं भीतर चला गया। मैं स्पिक मैके में नया था। 

राहुल ने कुछ लोगों से मिलवाया फिर देखा कि वही व्यक्ति जो दरवाजे पर चप्पलें जमा रहे थे भीतर आ रहे हैं। सब लोग खड़े हो गए। कुछ ने पाँव छुए कुछ ने हाथ जोड़कर स्वागत किया। मैंने राहुल से पूछा कि ये कौन हैं तो राहुल ने कहा कि यही तो डॉ. किरण सेठ हैं। मैं बेहद हैरान था। राहुल ने मुझे उनसे मिलवाया तो वे मुस्कराए। शायद वे समझ गए थे कि मैं क्या सोच रहा हूँ। उन्होंने कहा कि हम एक सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा हैं। यदि हम अपनी चप्पलों और जूतों को इतने खराब ढंग से बाहर फैलाकर आएंगे तो जो लोग हमसे मिलने आएंगे वे कैसे यकीन करेंगे कि हम संस्कृति की बात कर रहे हैं।  

असद अली खां साहब अपने खानदान की ग्यारहवीं पीढ़ी के कलाकार थे और यह सिलसिला इतना लंबा चला तो उसका श्रेय वे इन कद्रदानों को देना कभी नहीं भूलते थे। दोपहर के भोजन के बाद वे आराम करने चले गए और शाम को कार्यक्रम शुरु हुआ तो वे मंच पर देर तक अपने साज को मिलाते रहे। कार्यक्रम में आए युवाओं का धैर्य इतना सहन कैसे करता। आधे से अधिक युवा श्रोता इस बीच उठकर बाहर चले गए। हमें लगा कि कुछ देर और हुई तो पूरा सभागार खाली हो जायेगा। लेकिन साज मिल चुका था और खां साहब ने उसे पहन लिया तो उसके बाद उन्होंने कहा कि आइए मैं आपको ॐ से मिलवाता हूँ। मंद्र सप्तक के सुरों में ॐकार गूँजा तो पूरे सभागार में एक अनोखी शांति छा गई जो युवा बाहर चहलकदमी कर रहे थे वे भी भीतर आ गए तो कुछ देर पहले खाली-खाली लग रहा सभागार न केवल पूरा भर गया बल्कि बहुत से युवा साथी बाहर खड़े होकर भी सुन रहे थे। खां साहब ॐ को अलग-अलग ढंग से सुना रहे थे। 

यह राग का आलप भी था लेकिन गूँज रहा था केवल और केवल ॐॐॐ। मैंने कितने कार्यक्रम सुने देखे हैं लेकिन उस दिन जैसी शांति फिर कभी नहीं उतरी। युवा श्रोता पूरी तन्मयता से रुद्रवीणा जैसे दुर्लभ वाद्य के संगीत से जुड़े हुए थे और मुझे दोपहर में खां साहब की कही बात याद आ रही थी कि सच्चे सुर का दौर कभी नहीं बीतता। ॐ ध्वनि ने विस्तार पाया और फिर आलाप से लेकर झाले तक युवा श्रोता मंत्रमुग्ध सुनते रहे। यह बेहद खास बात थी कि लयकारी का अतिरेक नहीं था तब भी युवा आंनदित थे नहीं तो पूर्व के कार्यक्रमों में उनका आनंद तभी मुखर होता था जब गति ताबड़तोड़ हो जाती थी। (मेरे स्पिक मैके दिन- अशोक जमनानी)



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रविवार, 14 जुलाई 2024

काम की खबर: स्पायवेयर से मोबाइल में लगी रही सेंध, डाटा चोरी से बचना है... तुरंत ऑटो डाउनलोड करें बंद

 APK File: ऐसे कई मामले हैं, जिनमें लोगों ने न तो कोई कॉल उठाया, न एसएमएस आया और अचानक मोबाइल हैक हुआ, खाते से रुपये निकल गए। यह एपीके फाइल के जरिये स्पायवेयर अटैक है। इसमें एपीके फाइल के जरिये हैकर मोबाइल में सेंध लगा रहे हैं।

ग्वालियर का कारोबारी विनोद अग्रवाल। न मोबाइल पर एसएमएस आया, न ओटीपी आया। अचानक मोबाइल बंद हो गया, खाते से धड़ाधड़ ट्रांजेक्शन हुआ और करीब 87 हजार रुपये निकल गए। नगर निगम के उपायुक्त डॉ.प्रदीप श्रीवास्तव, एक एसएमएस के जरिये आई फाइल डाउनलोड करते ही आधा घंटे तक मोबाइल हैक रहा और खाते से 47 हजार रुपये निकल गए। यह तो सिर्फ दो उदाहरण हैं।

लगातार हो रही इस तरह की घटनाओं के बाद जब नईदुनिया ने साइबर एक्सपर्ट से बात की तो सामने आया कि ऐसी वारदातों के पीछे सबसे बड़े जिम्मेदार खुद लोगों की चूक है या यह भी कहा जा सकता है कि लोगों को जानकारी ही नहीं है। उनका डाटा उनकी ही छोटी सी चूक से चोरी हो रहा है। उनके मोबाइल की हर गतिविधि पर निगाह रखी जा रही है।

क्या है एपीके फाइल?

 एंड्रायड ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करती है। एपीके यानि एंड्रायड पैकेज किट फाइल। यह सिर्फ एंड्रायड ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करती है। एपीके फाइल एक तरह का स्पायवेयर है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है, स्पाय यानि निगरानी रखना।  सारी जानकारी हैकर तक पहुंच जाती है स्पायवेयर ऐसा टूल है, जिससे मोबाइल, लैपटाप या अन्य डिवाइस के डाटा और यूजर्स के डाटा से लेकर हर गतिविधि पर बिना अनुमति निगाह रखी जाती है। गैलरी, डॉक्यूमेंटस, कांटेक्ट, एसएमएस बिना अनुमति थर्ड पाट्री को भेज दिए जाते हैं। इसमें लोकेशन, इमेल से लेकर अन्य जानकारी तक हैकर तक पहुंच जाती हैं।  मीडिया आटोडाउनलोड से मोबाइल में प्रवेश करती है एपीके फाइल कई बार लोग ऐसी फाइल को क्लिक भी नहीं करते और यह फाइल डिवाइस में पहुंचकर डाटा चोरी कर लेती हैं। इसकी वजह होती है वाट्स एप व अन्य मैसेंजर का आटो डाउनलोड फीचर्स। जिसमें लोग मीडिया, डाक्यूमेंट, आडियो, वीडियो को आटो डाउनलोड मोड पर रखते हैं। यही सबसे बड़ी गलती है। अगर एपीके फाइल मोबाइल में डाउनलोड नहीं हुई तब तक स्पायवेयर काम नहीं करेगा। फाइल डाउनलोड होते ही मोबाइल का एक्सेस हासिल हो जाता है और मोबाइल हैक कर ठगी होती है।

 यह रखें सावधानी अगर आप वॉट्सएप या कोई अन्य मैसेंजर चलाते हैं तो आटो डाउनलोड मोड पर न रखें। अनजान फाइल डाउनलोड न करें। रिवार्ड पाइंट रिडीम करने का झांसा देकर सबसे ज्यादा ऐसी फाइल डाउनलोड करा दी जाती हैं। फाइल साइज में बहुत ही कम केबी की होती हैं, इसलिए क्लिक करते ही डाउनलोड हो जाती हैं। अगर आप मोबाइल में एंटी वायरस रखते हैं तो यह तुरंत हार्मफुल फाइल को पकड़कर आपको अलर्ट देगा।

साइबर एक्सपर्ट चातक वाजपेयी ने बताया कि एपीके फाइल एक तरह का स्पायवेयर है। यह स्पायवेयर के जरिये डाटा पर निगाह रखता है और डाटा चोरी कर थर्ड पार्टी को भेज देता है। ऑटो डाउनलोड मोड पर मोबाइल न रखें और कोई भी अंजान फाइल, लिंक पर क्लिक ही न करें। उन्होंने कहा, 'एंटी वायरस मोबाइल या अन्य डिवाइस में रखें। एंटी वायरस भी मुफ्त वाला नहीं, क्योंकि यह खुद वायरस होते हैं।'


साभार- नई दुनिया 

Samaj Ki Baat समाज की बात 

Krishnadhar Sharma कृष्णधर शर्मा