देखते ही देखते यह क्या हो गया
हमारा प्यारा बचपन कहाँ खो गया
रास आती नहीं अब तो ये जिन्दगी
वो उन्मुक्त जीवन कहाँ सो गया
कहाँ वो खुला आसमां था
कहाँ ये तनावों भरी जिन्दगी
लगता है फिर से ना हँस पाएंगे
बचपन वाली वह खुली हँसी.
[कृष्ण धर शर्मा] "1998"
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