मंगलवार, 16 अगस्त 2011

किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ 'अन्ना हजारे' की मुहिम- भ्रष्टाचार रहित भारत


किसन बाबूराव हज़ारे उर्फ़ 'अन्ना हजारे' प्रसिद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। साफ-सुथरी छबि वाले हज़ारे भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये प्रसिद्ध हैं। जन लोकपाल बिल  पारित कराने के लिये उन्होने आमरण अनशन आरम्भ किया जिसे अपार समर्थन मिला जिससे घबराकर सरकार को उनकी मांगे मानने को विवश हुई।

15 जनवरी 1940 को महाराष्ट्र के अहमद नगर  के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज है। गांव में तो उन्होंने राम राज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं : भ्रष्टाचार रहित भारत।


 

अन्ना की शख्सियत बडे अनगढ़ तरीके से गढ़ी हुई है। 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठे दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गए। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बता कर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक बुकलेट 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 साल फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने वीआरएस ले लिया और गांव में आकर डट गए। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का रामराज है। गांव में तो उन्होंने रामराज स्थापित कर दिया है। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में रामराज की स्थापना की मुहिम में निकले हैं.

गांधी की विरासत उनकी थाथी है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने मौत को भी धता दे दी थी। उनकी प्लाटून के सारे सदस्य मारे गए थे। ऐसी शख्सियत है किसन बाबूराव हजारे की। प्यार से लोग उन्हें अन्ना हजारे बुलाते हैं। उन्हें छोटा गांधी भी कहा जा सकता है।
अन्ना आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। वह गुस्से में हैं। उन्होंने धमकी दी है कि लोकपाल विधेयक की तर्ज पर भ्रष्टाचार विरोधी कानून लागू नहीं किया तो वह 5 अप्रैल 2011 से आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। उनकी चेतावनी से फिलहाल केंद्र सरकार हिल गई है। पहले भी वह महाराष्ट्र सरकार के पांच मंत्रियों की बलि ले चुके हैं। प्रधानमंत्री ने अन्ना से इस बारे में बातचीत की है। आश्वासन भी दिया है, लेकिन अन्ना तो अन्ना हैं। कहा है कि ठोस कुछ नहीं हुआ तो वह दिल्ली को हिला देंगे। अन्ना ने आज तक जो सोचा है, उसे कर दिखाया है। उन्होंने शराब में डूबे अपने पथरीले गांव रालेगन सिद्धि को दुनिया के सामने एक मॉडल बनाकर पेश किया। रामराज के दर्शन करने हैं तो उसे देखा जा सकता है। इस काम के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया। सूचना के अधिकार की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सख्त लोकपाल विधेयक बनाने और उसमें जनता की हिस्सेदारी की मांग को लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे देश के भीतर ईमानदारी और इंसाफ की लड़ाई लड़ने से पहले सीमा पर देश के दुश्मनों के भी दांत खट्टे कर चुके हैं। 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील के बाद अन्ना सेना में बतौर ड्राइवर भर्ती हुए थे। 1965 की लड़ाई में खेमकरण सेक्टर में अपनी चौकी पर हुई बमबारी के बाद अन्ना की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल गई। पाकिस्तानी हमले में उनकी चौकी पर तैनात सारे सैनिक शहीद हो गए। अन्ना इस हमले में सुरक्षित रहे। अपने साथियों की मौत से दुखी अन्ना ने अपना जीवन समाज के हित में लगाने का संकल्प ले लिया।
समाजसेवी अन्ना हजारे का मूल नाम डॉ. किशन बाबूराव हजारे है। उनका जन्म 15 जनवरी 1940 को महाराष्ट्र के भिंगारी गांव में हुआ था। उन्होंने 1975 में अपने सामाजिक जीवन की शुरुआत की थी। अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान 1995 में बनी थी जब उन्होंने शिवसेना-बीजेपी की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। 1990 तक हजारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता की थी, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगांव सिद्धि नाम के गांव की कायापलट कर दी थी। पहले इस गांव में बिजली और पानी की जबर्दस्त किल्लत थी। हजारे ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया। उनके ही कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई भी मिली। इसके बाद हजारे की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।
1995 में महाराष्ट्र के तीन 'भ्रष्ट' मंत्रियों-शशिकांत सुतार, महादेव शिवंकर और बबन घोलाप के खिलाफ वे अनशन पर बैठे थे। सरकार को झुकना पड़ा और सुतार और शिवंकर को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया। घोलाप ने हज़ारे के खिलाफ अवमानना का मुकदमा कर दिया। हजारे ने दावा किया था घोलाप ने ज्ञात स्रोतों से अपनी कमाई के अनुपात में बहुत ज़्यादा रकम इकट्ठा कर ली है। हालांकि, हजारे अदालत में इन दावों के समर्थन में सबूत पेश नहीं कर पाए, जिसके बाद अदालत ने उन्हें तीन महीने की जेल की सज़ा सुनाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने एक दिन की सज़ा के बाद ही उन्हें जेल से बाहर कर दिया। इसके बाद अन्ना ने मनोहर जोशी, गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। हालांकि, बाद में उन्होंने अपने आरोप वापस ले लिए।
अन्ना के गाँधीवादी विरोध का सामना महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी की सरकारों को भी करना पड़ा है। अन्ना 2003 में कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार भ्रष्ट मंत्रियों-सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गए। हजारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। मलिक ने इस्तीफे दे दिया। आयोग ने जैन के खिलाफ आरोप तय किए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अन्ना हजारे को 1990 में सरकार ने 'पद्मश्री' सम्मान से नवाजा था।

  • अन्ना हजारे ने 1975 से सूखा प्रभावित रालेगांव सिद्धि में काम शुरू किया। वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायो गैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गांव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया। यह गांव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है।
महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। भ्रष्ट प्रशासन की खिलाफत हो या सूचना के अधिकार का इस्तेमाल, हजारे हमेशा आम आदमी की आवाज उठाने के लिए आगे आते रहे हैं। अन्ना हजारे ने 1997 में मुंबई के आजाद मैदान से सूचना के अधिकार की लड़ाई शुरू की थी।
9 अगस्त, 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना के अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिलने के बाद महाराष्ट्र सरकार को मजबूरन इस बिल को पास करना पड़ा। 12 अक्टूबर 2005 को केंद्र सरकार ने भी इस कानून को लागू कर दिया। अगस्त, 2006 में सूचना के अधिकार में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। नतीजन, सरकार ने संशोधन से हाथ खींच लिए।आमरण अनशन को बनाया हथियार महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा बार आमरण अनशन और भूख हड़ताल पर बैठने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हैं हजारे। 1991 में अन्ना हजारे ने पुणो के अलांडी में सरकार की भ्रष्ट मशीनरी के खिलाफ आमरण अनशन शुरू किया। 6 मंत्रियों और 400 अधिकारियों को उनको पदों से हटा दिया गया। 1995 में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र के 2 भ्रष्ट कैबिनेट मंत्रियों के खिलाफ अनशन का बिगुल फूंका। अन्ना को व्यापक समर्थन मिलने के बाद शिव सेना - भाजपा सरकार को दोनों मंत्रियों को हटाना पड़ा। 2003 में महाराष्ट्र में कांग्रेस - एनसीपी गठबंधन सरकार के चार मंत्री सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक. विजय कुमार गवित और पद्म सिंह पाटिलअन्ना हजारे के अनशन के शिकार हुए।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के विरोध और जन लोकपाल बिल के लिए अपने कई सहयोगियों के साथ जंतर - मंतर पर आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। अन्ना हजारे चाहते हैं कि सरकार जन लोकपाल बिल तुरंत लाए , लोकपाल की सिफारिशें अनिवार्य तौर पर लागू हों और लोकपाल को जजों , सांसदों , विधायकों आदि पर भी मुकदमा चलाने का अधिकार हो। लेकिन सरकार इन खास मुद्दों पर बहस और चर्चा की जरूरत मान रही है।
72 वर्षीय हजारे ने 5 अप्रैल सुबह 9 बजे राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद एक मार्च निकाला और जंतर - मंतर पर अनशन पर बैठ गए। हजारे ने यहां कहा , ' जब तक सरकार हमारे देश में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जन लोकपाल बिल को प्रभाव में नहीं लाती तब तक वह आमरण अनशन पर रहेंगे। इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश , पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी और संदीप पांडेय भी मौजूद थे।
सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में हजारे ने आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था , ' उन्हें इस बात से काफी दुख हुआ कि प्रधानमंत्री ने जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाली संयुक्त समिति में वरिष्ठ मंत्रियों के साथ समाज के जाने माने लोगों को शामिल करने के उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसलिए पूर्व में की गई घोषणा के अनुसार मैं आमरण अनशन पर बैठूंगा। यदि इस दौरान मेरी जिंदगी भी कुर्बान हो जाए तो मुझे इसका अफसोस नहीं होगा। मेरा जीवन राष्ट्र को समर्पित है। '
हजारे ने कहा कि न्यायमूर्ति ( रिटायर्ड ) संतोष हेगड़े , वकील प्रशांत भूषण और स्वामी अग्निवेश जैसे जानेमाने लोगों के विचारों को सरकार ने महत्वपूर्ण नहीं समझा और शरद पवार सरीखे एक मंत्री बिल का मसौदा तैयार करने वाली समिति के प्रमुख हैं , जो महाराष्ट्र में बड़े स्तर पर जमीन रखने के लिए जाने जाते हैं।

अन्ना हजारे जी को देश के कई महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिले हैं एक नजर:-



  • पदम् भूषण अवार्ड (१९९२)


  • पदम श्री अवार्ड (११९०)


  • इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार (१९८६)


  • महाराष्ट्र सरकार का कृषि भूषण पुरस्कार (१९८९)


  • यंग इंडिया अवार्ड


  • मैन ऑफ़ द ईयर अवार्ड (१९८८)


  • पॉल मित्तल नेशनल अवार्ड (२०००)


  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंटेग्रीटि अवार्ड (२००३)


  • विवेकानंद सेवा पुरुस्कार (१९९६)


  • शिरोमणि अवार्ड (१९९७)


  • महावीर पुरुस्कार (१९९७)


  • दिवालीबेन मेहता अवार्ड (१९९९)


  • केयर इन्टरनेशनल (१९९८)


  • BASAVSHRI PRASHASTI 2000 AWARD (२०००)


  • GIANTS INTERNATIONAL AWARD (२०००)


  • नेशनलइंटरग्रेसन अवार्ड (१९९९)


  • VISHWA-VATSALYA & SANTBAL AWARD


  • जनसेवा अवार्ड (१९९९)


  • ROTARY INTERNATIONAL MANAV SEVA PURASKAR (१९९८)


  • विश्व बैंक का 'जित गिल स्मारक पुरस्कार (२००८)


  • जानकारी स्रोत- विकिपीडिया व अन्य

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