शनिवार, 24 सितंबर 2011

आत्म-सुधार तो ह्रदय परिवर्तन से ही संभव है

संत एकनाथ के साथ तीर्थयात्रा पर एक चोर भी चल पड़ा. साथ लेने से पूर्व संत ने उससे रस्ते में चोरी न करने की प्रतिज्ञा करवाई.
यात्रा मंडली को नित्य ही एक परेशानी का सामना करना पड़ता, रात को रखा गया सामान कहीं से कहीं चला जाता फिर लोग जैसे-तैसे कहीं से अपना सामान ढूंढकर लाते.
नित्य की इस परेशानी से तंग आकर कारण की खोज शुरू हुई और रात भर जागकर इस उलट-पलट की वजह ढूँढने का जिम्मा एक चतुर यात्री ने उठाया.
खुराफाती पकड़ा गया और उसे संत एकनाथ के सम्मुख पेश किया गया. पूछने पर उसने वास्तविकता बताई कि चोरी करने कि उसकी आदत पड़ चुकी है और यात्रा में उसे कसम दिलाये जाने के कारण वह चोरी नहीं कर पा रहा है, पर मन नहीं मानता इसलिए वह सामानों को इधर से उधर रख देता है और ऐसा करने से उसका मन बहल जाता है.
संत एकनाथ ने अपनी मंडली के सदस्यों को समझाया कि मन भी एक चोर है, उसे बाहरी दबाव से सीमित मात्रा में ही काबू में रखा जा सकता है. आत्म-सुधार तो ह्रदय परिवर्तन से ही संभव है और उसे स्वयं ही करना होता है. 

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