भारत
व अन्य देशों में 'काम और शिक्षा' के नाम पर मात्र पूंजीवाद के लिए कुशल
मजदूर तैयार करने की मंशा होती है। दरअसल इन नए सुधारों व प्रयोगों से
क्यूबा की शिक्षा गांधी की 'नयी तालीम' की भावना के नजदीक हो चली है।
क्यूबा अब खेती (जैविक खेती, खेती में मशीनों की जगह घोड़ों-बैलों का उपयोग
आदि) की तरह शिक्षा में भी जो प्रयोग कर रहा है, वे हमें जाने-अनजाने
मार्क्स और गांधी के एक अद्भुत मेल की तरफ ले जा रहे हैं।
क्यूबा ने आज
स्वयं को एक ऐसे देश में परिवर्तित कर लिया है, जो तीसरी दुनिया के देशों
के लिए आदर्श है। शिक्षा को क्रांति का माध्यम बनाने की सोच ने यह साबित कर
दिया है कि किस तरह एक देश पूर्ण शिक्षित होकर अपने अनुरूप समाज तैयार कर
सकता है।
क्यूबा आधुनिक पूंजीवादी युग का एक चमत्कार है। उत्तरी और
दक्षिणी अमरीका महाद्वीपों के बीच एक छोटे से द्वीप में स्थित यह देश
दुनिया की सबसे बड़ी पूंजीवादी-साम्रायवादी महाशक्ति संयुक्त राय अमरीका के
बिलकुल बगल में स्थित है और पिछले 53 वर्षों से उसके विरोध, प्रतिबंधों,
आर्थिक घेराबंदी तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हमलों के बावजूद वहां एक
साम्यवादी व्यवस्था चली आ रही है।
सन् 1959 में वहां क्रांति हुई और
फिदेल कास्त्रो क्रांति से लेकर अब तक वहां के निर्विवाद करिश्माई नेता रहे
हैं। हालांकि अस्वस्थता के कारण कुछ समय से उन्होंने राष्ट्रपति पद अपने
भाई राउल कास्त्रो को सौंप दिया है। ांति के साथ ही वहां निजी संपत्ति की
संस्था को खतम कर दिया गया था (कुछ समय से बहुत सीमित रुप में खेती और मकान
के रुप में निजी संपत्ति की शुरुआत हुई है) पूरी अर्थव्यवस्था का
राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था और वहां एक ही पार्टी का शासन है। शिक्षा,
स्वास्थ्य, पोषण, आवास आदि की जिम्मेदारी पूरी तरह सरकार की है और इस
क्षेत्र में क्यूबा की उपलब्धियां गजब की हैं। डॉक्टर-आबादी अनुपात (प्रति
दस हजार आबादी पर डॉक्टरों की संख्या) वहां पूरी दुनिया में सबसे अच्छा है
और वहां की स्वास्थ्य सेवाएं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं।
क्रांति
के समय शिक्षा के नजरिये से क्यूबा की हालत बहुत खराब थी। आधे से भी कम
बच्चे स्कूल जाते थे। देश का औसत शैक्षिक स्तर तीसरी कक्षा से भी कम था। एक
तरफ हजारों कक्षाओं में शिक्षक नहीं थे, दूसरी तरफ हजारों शिक्षक बेरोजगार
घूम रहे थे। क्रांति के बाद शिक्षा नयी ांतिकारी सरकार की पहली प्राथमिकता
बनी। युध्द स्तर पर साक्षरता अभियान चला जो दुनिया का सबसे तेज व सफल
साक्षरता अभियान था। एक लाख से यादा स्वयंसेवक लालटेन और साक्षरता की
किताबें लेकर सुदूर इलाकों में पहुंचे और दो साल के बाद 1961 में संयुक्त
राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने प्रमाणित किया कि क्यूबा का हर नागरिक
पढ़ना-लिखना सीख चुका है। क्यूबा के शिक्षकों ने पढ़ना-लिखना सीखने के लिए एक
नयी पध्दति विकसित की है जिसे 'हां, मैं कर सकता हूं' नाम दिया गया है।
यह ब्राजील के क्रांतिकारी शिक्षाशास्त्री पालो फ्रेरे के विचारों पर
आधारित है जिसमें स्थानीय लोगों के कामों व जरुरतों से जोड़कर, उनके साथ
मिलकर, उन्हें 'शब्द और विश्व' को पढ़ना सिखाया जाता है। इसी का एक सफल
प्रयोग हाल में वेनेजुएला में हुआ है जिसे भी यूनेस्को ने निरक्षरता-मुक्त
देश घोषित कर दिया है। बोलीविया, निकारागुआ, हैती, इक्वेडोर आदि 20 देशों
में क्यूबा की मदद से साक्षरता कार्यम चल रहे हैं।
दो साल में
शत-प्रतिशत साक्षरता हासिल करने के बाद क्यूबा ने लक्ष्य रखा कि देश का हर
व्यक्ति कम से कम प्राथमिक शिक्षा हासिल करे। विभिन्न पाठयपुस्तकों की
लाखों प्रतियां छापी गई, जिन्हें बहुत ही सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराया
गया। हर जगह स्कूल खोले गए और हजारों शिक्षकों की नियुक्ति की गई। फिर
माध्यमिक व उच्च शिक्षा पर जोर दिया गया। सबको शिक्षित करने का यह काम
साम्यवादी क्यूबा के लिए यादा मुश्किल भी था। संयुक्त राय अमरीका के
बहिष्कार व प्रतिबंधों के कारण क्यूबा को कागज, उपकरण, भवन निर्माण सामग्री
एवं अन्य शैक्षणिक सामग्री दूर-दराज के देशों से अधिक लागत पर आयात करनी
पड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया के हिस्सों के लिए शिक्षा व साक्षरता
के संबंध में जो 'सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य' तय किए हैं, वे क्यूबा में
आधी सदी पहले हासिल कर लिए गए थे।
उच्च शिक्षा में भी क्यूबा ने 'सबके
लिए विश्वविद्यालय' कार्यम चलाया है। क्रांति के तुरंत बाद राजधानी हवाना
में अमीरों (जो देश छोड़कर भाग गए थे) के आलीशान भवनों को गरीब
विद्यार्थियों के छात्रावासों में बदल दिया गया। आज भी वे छात्रावास चल रहे
हैं। गरीबी के कारण उच्च शिक्षा बीच में छोड़ने वाले विद्यार्थियों के लिए
छात्रवृत्तियां शुरु करने का काम क्रांतिकारी सरकार के शुरुआती कदमों में
ही था। शिक्षा के तरीकों, पाठयमों और पाठयपुस्तकों को भी नए सिरे से रचा
गया।
चिकित्सा शिक्षा नयी शिक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही
है। क्रांति के समय देश में एक ही चिकित्सा महाविद्यालय (राजधानी हवाना
में) था और देश के छ: हजार डॉक्टरों में से आधे संयुक्त राय अमरीका चले गए
थे। आज क्यूबा के हर प्रांत में कम से कम एक विश्वविद्यालय और एक चिकित्सा
महाविद्यालय है। चिकित्सा शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है और देश की चिकित्सा
सेवाएं भी देश के हर हिस्से में व हर नागरिक के लिए पूरी तरह मुफ्त हैं।
क्यूबा के लाखों डॉक्टर दुनिया के अन्य देशों में भी मुफ्त सेवाएं देते
हैं। हवाना के पश्चिम में एक 'लातीनी अमरीकी चिकित्सा विद्यालय' भी खोला
गया है, जिसमें दूसरे देशों के युवाओं को चिकित्सा शिक्षा दी जाती है।
क्यूबा ने चिकित्सा में अनुसंधान केन्द्र भी खोले हैं, जिन्होंने टीकों,
दवाईयों और चिकित्सा उपकरणों की खोज, उत्पादन व निर्यात का महत्वपूर्ण काम
किया है।
हवाना में हर साल लातीनी अमरीका और दुनिया के अन्य हिस्सों से
शिक्षाविद इकट्ठे होते हैं जो दुनिया की शिक्षा में आ रही चुनौतियों व
समस्याओं पर चर्चा करते हैं। पिछले दो दशकों से क्यूबा के हर हिस्से में
पुस्तक मेले आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें लाखों लोग भाग लेते हैं। इनमें
सस्ती किताबों की बिी के साथ लेखकों व कलाकारों के साथ संवाद भी होता है।
क्यूबा के पांच राष्ट्रीय टीवी चैनलों में से दो शिक्षा को समर्पित हैं।
जबरदस्त संकट या बहिष्कार ने क्यूबा के शासकों, बुध्दिजीवियों और आम लोगों
को कई चीजों पर नए सिरे से विचार करने, समीक्षा करने और नए प्रयोग करने को
मजबूर किया। इसमें शिक्षा भी शामिल थी। किन्तु शिक्षा की पध्दति और विषय
सामग्री पर जरुर पुनर्विचार हुआ। 1986 से ही महसूस और मंजूर किया जाने लगा
था कि शिक्षा में सोवियत संघ का अनुकरण करने से नकारात्मक प्रवृत्तियां
पैदा हो रही हैं तथा अराजनीतिकरण हो रहा है और उसमें रटने, ज्ञान को ठूंसने
तथा परीक्षा-परिणामों पर बहुत जोर दिया जा रहा था। कक्षाएं कुछ
अधिनायकवादी बन गई थीं और पढ़ाई रस्मी बनने लगी थी। कक्षा और समाज के बीच भी
अंतर्विरोध दिखाई दे रहे थे। इन सब की आलोचना व समीक्षा हुई। इसके बाद
क्यूबा लातीनी अमरीकी क्रांतिकारी चेग्वारा (जिसकी क्यूबा की क्रांति में
भी महत्वपूर्ण भूमिका थी) की ओर मुड़ा, जो कि शिक्षा को मुक्ति का बुनियादी
पहलू मानते थे और इंसान की रचनात्मक व मानवीय क्षमताओं के खिलने एवं विकसित
होने की कुंजी मानते थे। अब क्यूबा में शिक्षण के रचनात्मक तरीके अपनाने
तथा शिक्षा में विद्यार्थियों, शिक्षकों और लोगों की सयि भागीदारी पर जोर
दिया जा रहा है। शिक्षा की वैचारिक-राजनैतिक भूमिका पर भी जोर है, किन्तु
नारों और समाजवादी मूल्यों की रस्मी अनालोचनात्मक घुट्टी पिलाने के बजाय
आग्रह है कि कक्षाओं में इन पर बहस हो, इन मूल्यों पर अमल हो तथा
विद्यार्थी इन्हें गहराई से सीखें। शैक्षणिक प्रशासन का विकेन्द्रीकरण भी
किया जा रहा है और स्कूलों को ज्यादा स्वायत्तता दी जा रही है। क्यूबा में
शिक्षा में एक महत्वपूर्ण प्रयोग पढ़ाई और काम, ज्ञान और श्रम, स्कूल व समाज
के समन्वय का चल रहा है। इसके तहत शिक्षा को सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ने
की कोशिश होती है। विद्यार्थियों को कक्षा के अंदर व बाहर कई तरह के
सामाजिक कामों में लगाया जाता है जैसे हवाना को डेंगू-मच्छरों से मुक्त
करने के अभियान में भागीदारी, जुलाई माह में तूफानी मौसम से पहले की बचाव
तैयारियों में भाग लेना, पुस्तकों की मरम्मत, स्कूल व नगर की सफाई आदि।
भारत
व अन्य देशों में 'काम और शिक्षा' के नाम पर मात्र पूंजीवाद के लिए कुशल
मजदूर तैयार करने की मंशा होती है। दरअसल इन नए सुधारों व प्रयोगों से
क्यूबा की शिक्षा गांधी की 'नयी तालीम' की भावना के नजदीक हो चली है।
क्यूबा अब खेती (जैविक खेती, खेती में मशीनों की जगह घोड़ों-बैलों का उपयोग
आदि) की तरह शिक्षा में भी जो प्रयोग कर रहा है, वे हमें जाने-अनजाने
मार्क्स और गांधी के एक अद्भुत मेल की तरफ ले जा रहे हैं। (सुनील)
(शिक्षा से
अर्थशास्त्री सुनील मध्यप्रदेश में होशंगाबाद जिले के केसला आदिवासी
क्षेत्र में 'किसान आदिवासी संगठन' एवं समाजवादी जन परिषद के साथ पिछले कई
वर्षों से सयि रहने के अलावा लगातार आर्थिक एवं अन्य सम-सामयिक विषयों पर
लिखते रहते हैं।)
साभार- देशबन्धु परिशिष्ट अवकाश अंक