शनिवार, 21 जुलाई 2012

सड़क मेरे गाँव में

आखिर सड़क आ ही गई मेरे भी गाँव में 
जहाँ पर गूंजती थी अभी तक 
कोयल की कूकें और चिड़ियों की चहचहाहट
महकता था सारा गाँव आम की बौरों 
और महुए की मदमस्त खुशबू से 
सुनाई देती हैं अब वहां 
बेलगाम वाहनों और कानफोडू हार्न
की कर्कश आवाजें 
सुरमई वातावरण में फैली है अब 
डीजल और पेट्रोल की खुशबू!
अब दब जाती है कोयल की कूकें 
और चरवाहे की बांसुरी की तान भी 
लद गए हैं दिन बैलगाड़ी के भी 
जिस पर बैठ कर गाये जाते थे लोकगीत 
बाजार-हाट या कहीं नाते-रिश्तेदारी जाते हुए 
आसान तो बहुत हो गया जीवन अब 
चुकानी पड़ी है मगर कीमत भी हमें 
अपने मूल्यों की तिलांजलि देकर-  कृष्ण धर शर्मा 2012  

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