रूपया-पैसा तो खाते ही थे
अब तो चारा भी खा जाते हैं
कलयुग के भ्रष्टाचारी देखो
कोयला भी पचा जाते हैं
सड़कें बनती हैं कागजों में
घपले होते अब खेलों में
भ्रष्टाचारी तो खुले घूमते
देखे जाते हैं मेलों में
गोलमाल होते हैं अब तो
लोगों कि बीमारी में
वृद्धि दर होती है अब बस
लोगों कि बेरोजगारी में
ऐसे नेताओं के कारण
भारत में बढती है बेकारी
फिर भी जनता चुनती इनको
कितने महान हैं भ्रष्टाचारी!
(कृष्ण धर शर्मा, २०१३)
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