शनिवार, 20 अप्रैल 2013

तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे


तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे, महफ़िल-महफ़िल गायेंगे
जब तक आंसू साथ रहेंगे, तब तक गीत सुनायेंगे

तुम जो सोचो वो तुम जानो, हम तो अपनी कहते हैं
देर ना करना घर जाने में, वरना घर खो जायेंगे

बच्चों के छोटे हाथों को चाँद-सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

किन राहों से दूर है मंजिल, कौन-सा रास्ता आसां है
हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे

अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों, मुमकिन है
हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खाएँगे.
                                                                         निदा फाज़ली 

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