जनरल वार्ड के बेड न. २७ पर लेटे हुए ११ साल के लड़के से जब माँ ने पूछा कि “
मैं काम पर जा रही हूँ बेटा. शाम को जल्दी आ जाउंगी. तब तक तू अकेले रह लेगा न!”.
यह सुनकर आस-पास के सभी लोगों सहित मैं भी चौंक पड़ा.
पलट कर देखा तो फटे-पुराने
कपडे पहने एक औरत अपने बेटे को दिलासा दे रही थी कि तू घबराना मत बेटे, मैं काम पर
जाकर शाम तक जल्दी वापस आ जाउंगी.
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह
दिलासा अपने बेटे को दे रही है या खुद अपने को!
औरत से पूछने पर पता लगा
कि कल रात उसके शराबी पति ने शराब के लिए रूपये न मिल पाने पर अपनी बीवी और बच्चे
की पहले तो पिटाई की बाद में हताशा में अपनी ही झोपडी में आग लगा दी. वह औरत चाहकर भी झोपडी से अपना कुछ भी सामान नहीं निकल पाई और रोती-बिलखती रह गई.
पति को तो पुलिस उठाकर ले गई और बच्चे की पिटाई और सदमें से तबियत बिगड़ गई जिसे लेकर वह सरकारी अस्पताल में आई थी जहाँ पर पर्ची कटवाने के लिए उसके पास १० रूपये भी नहीं थे.
अगले दिन सुबह काफी सोच-विचार कर उसने काम पर जाने का निर्णय लिया.
उसके इस निर्णय पर अस्पताल में उपस्थित सभी लोग एक साथ हैरान और शर्मिंदा लग रहे थे................कृष्ण धर शर्मा 4.2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें