मंगलवार, 15 मई 2018

कायाकल्प-मुँशी प्रेमचंद

 "वह जमाना लद गया जब विद्वानों की कद्र थी, अब तो विद्वान टके सेर मिलते हैं, कोई नहीं पूछता। जैसे और भी चीजें बनाने के कारखाने खुल गए हैं, उसी तरह विद्वानों के कारखाने खुल गए हैं, और उनकी संख्या हर साल बढ़ती जाती है।" (कायाकल्प-मुँशी प्रेमचंद)



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