"जिन लोगों के वैवाहिक सम्बन्ध, या इसी किस्म के दीर्घकालिक सम्बन्ध टूट जाते हैं, उनके पहले कुछ दिन, हफ्ते और महीने बड़ी मुश्किल से बीतते हैं। उन्हें अपने साथ तरह-तरह के समझौते करने पड़ते हैं, अपने अभिभावकों, और उनके साथ उनके सगे-सम्बन्धियों, अपने बच्चों, भाइयों और बहनों जैसे रिश्तेदारों के पुराने सम्बन्धों में सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है। उन्हें अपनी मित्रमंडली के सदस्यों की अनेकानेक जिज्ञासाओं की भूख को भी विस्तार से तृप्त करना पड़ता है। ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि उनका जवाब देना बड़ा कठिन हो जाता है" (औरतें-खुशवन्त सिंह)
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