“स्कूल जाते-जाते आज पंडित को जरूर बोल देना कि कल सवेरे कथा सुनाने आ
जायेंगे”.
“ठीक है माँ, बोलते हुए जाऊंगा”. “वैसे बुढ़ऊ पंडित को ही बोलना है कि बच्चू
पंडित को बोल दूंगा”!
“तू फ़ालतू की बकवास मत कर. बुढ़ऊ पंडित जब तक जिन्दा हैं हम लोग उन्हीं से ही
कथा सुनेंगे.”
“ठीक है माँ”. कहकर विपुल स्कूल जाने की तैयारी में लग गया मगर उसके मन में
कुछ उलझन जरूर थी कि माँ कथा सुनने के लिए बुढ़ऊ पंडित को ही क्यों बुलाती हैं जबकि
बच्चू पंडित भी अच्छी कथा सुनाते हैं! बुढ़ऊ पंडित को तो साईकिल से लेने भी जाना
पड़ता है क्योंकि ज्यादा बूढ़े होने कि वजह से वह ठीक से चल-फिर भी नहीं पाते हैं और
फिर एक बार उन्हें और दूसरी बार उनकी दक्षिणा का सामान (गेहूं, चावल आदि) पहुँचाने
जाना पड़ता है जबकि बच्चू पंडित अपनी मोटरसाइकिल से खुद आ जाते हैं और अपनी दक्षिणा का
सामान भी साथ लेकर जाते हैं”.
विपुल पंडित जी के घर पहुंचा तो सामने ही बच्चू पंडित मिल गए. विपुल ने उन्हें प्रणाम किया तो
हाल-चाल पूछने लगे. विपुल ने कहा "सब आप लोगों का आशीर्वाद है पंडितजी. सब ठीक-ठाक
है. माँ कल सुबह कथा सुनना चाहती हैं तो उन्होंने आज ही सूचित करने के लिए भेजा
है, मैं पंडितजी से मिल लेता हूँ!." "ठीक है भाई, जाओ मिल लो बुढ़ऊ पंडित से,
कांखते-पादते पड़े होंगे. वैसे भी तुम्हारे घर के अलावा कोई और तो पूछता नहीं है
उन्हें." विपुल थोडा नर्वस होते हुए बोला “मैंने तो माँ से कहा था कि बच्चू पंडित
को बुला लाता हूँ मगर उन्होंने ही कहा कि मैं बुढ़ऊ पंडित से ही कथा सुनूंगी." बच्चू
पंडित ने हँसते हुए कहा “अरे कोई बात नहीं है विपुल! वैसे भी बुढ़ऊ पंडित अब
जियेंगे भी कितने दिन और! बाद में तो मुझे ही बुलाना पड़ेगा न!."
विपुल को बच्चू
पंडित की हंसी में कुटिलता का आभास हुआ मगर वह कुछ न बोल आगे आँगन की तरफ बढ़ गया
जहाँ पर गोरसी (अंगीठी) में आग जलाये बुढ़ऊ पंडित आग ताप रहे थे. हालांकि ठण्ड इतनी
ज्यादा भी नहीं थी मगर कहते हैं न कि बुढ़ापे की हड्डियों को ठण्ड कुछ ज्यादा ही
लगती है शायद, या फिर समय काटने का जरिया भी बन जाती है गोरसी में जलती हुई आग.
विपुल के पैर छूने पर बुढ़ऊ पंडित ने आशीर्वाद देते हुए पूछा “घर में सब कुशल-मंगल
है!”. “हाँ पंडितजी सब ठीक है. माँ ने कहा है कि कल सुबह सत्यनारायण कि कथा सुनना
है तो आप को आज बताने आया हूँ." “मेरी तो तबियत भी अब ठीक नहीं रहती है, बच्चू को
ही बोल देते वह जाकर सुना देता!”. “नहीं पंडितजी! माँ ने कहा है कि वह सिर्फ आपसे
ही कथा सुनेंगी”. “आप सुबह तैयार रहना मैं आपको साईकल में बिठा कर ले चलूँगा”.
“ठीक है भई जैसी तुम्हारी इच्छा”.
विपुल वहां से निकल कर अपने स्कूल पहुंचा मगर उसके मन में उथल-पुथल चल रही थी.
शाम ४ बजे स्कूल की छुट्टी होने पर वह घर पहुंचा तो चाचाजी दिख गए. उसने पूछा “आप
कालेज से जल्दी आगये चाचाजी!”. “हाँ विपुल, खेत के लिए खाद लाना था और तुम्हें तो
पता ही है कि सोसायटी जल्दी बंद हो जाती है इसलिए कालेज में २ पीरियड ही लिया और
छुट्टी लेकर निकल आया”.
विपुल और उसके चाचा की उम्र में 5 साल का ही फर्क था इसलिए उसके चाचा उससे
मित्रवत व्यवहार करते थे. विपुल के चाचा ने कहा “मैं तो खाद डलवाने खेत तरफ जा रहा
हूँ, शाम को मिलते हैं”. “मैं भी चलता हूँ चाचा, बस कपडे बदलकर और बैग रखकर आता
हूँ”. विपुल ने फटाफट बैग रखा, कपडे बदले, एक गिलास पानी पिया और माँ को बोला “माँ
मैं चाचाजी के साथ खेत तरफ जा रहा हूँ खेतों में खाद डलवाना है”. माँ ने हँसते हुए
कहा “तू खेतों में खाद डालेगा क्या! उसके लिए तो रमलू को बोला हुआ है. ठीक है जा
मगर जल्दी आना”. “चलिए चाचाजी मैं आ गया”. दोनों साथ चलने लगे तो चाचा ने कहा “कुछ
ख़ास बात है क्या! जो मेरे साथ चल रहे हो?”. “नहीं चाचाजी ऐसी तो कोई बात नहीं है
मगर एक बात पूछनी थी आपसे!”. “हाँ कहो न, क्या बात है!”. “माँ कल सत्यनारायण जी की
कथा सुनना चाहती है तो आज उन्होंने मुझे बुढ़ऊ पंडित को बताने के लिए भेजा था, मगर
एक बात समझ में नहीं आती कि माँ बुढ़ऊ पंडित से ही क्यों कथा सुनना चाहती हैं!
बच्चू पंडित से क्यों नहीं? वह बच्चू पंडित के नाम से चिढती क्यों हैं जबकि बच्चू
पंडित भी बढिया कथा सुनाते हैं. उनकी आवाज भी दमदार है!”. “भाभी अपनी जगह पर सही
हैं विपुल. बच्चू पंडित है ही ऐसा”. “मैं समझा नहीं चाचाजी! आप क्या कहना चाह रहे
हैं? बच्चू पंडित का व्यवहार तो सबसे अच्छा ही है”. “तुम्हें पता नहीं है विपुल,
इसलिए तुम ऐसा कह रहे हो”. “किसी से कहना मत मगर बच्चू पंडित में कई बुराइयाँ हैं,
वह गांजा तो पीता ही था मगर अब शराब भी पीने लगा है और सुनने में आया है कि उसके
खेतों में काम करनेवाली एक मजदूर औरत से भी अवैध सम्बन्ध हैं शायद इसलिए ही
तुम्हारी माँ उनसे चिढती हैं!”. “बुढ़ऊ पंडित ने जो इज्जत और दौलत अपने व्यवहार से कमायी थी वह सब मिटटी में मिलाने में लगा है बच्चू पंडित." "30-35 साल पहले जब गाँव
वालों ने बुढ़ऊ पंडित को पूजा-पाठ करने के लिए गाँव में बसाया था, घर बनाने के लिए
थोड़ी सी जमीन और खेती के लिए 2 बीघे जमीन दान में दी थी. बुढ़ऊ पंडित बहुत ही
मेहनती और सज्जन इंसान थे. उन्होंने पंडिताई करते हुए खेत में भी मेहनत की और 2
बीघे जमीन को बढ़ाकर आज 11-12 बीघे जमीन बना ली है. पान, तम्बाकू तक नहीं खाते हैं.
लोगों में बड़ी श्रद्धा और विश्वास है उनके प्रति. बड़ा बेटा एक्सीडेंट में मर गया
था अब बच्चू पंडित की ही चलती है घर में. सुनने में आया है कि बुढ़ऊ पंडित के पास
कुछ सोना-चांदी पड़ा हुआ था जिसे बच्चू पंडित ने चुरा लिया और उसी को बेचकर उसने
अपने लिए एक पक्का कमरा बनवाया और मोटरसाइकिल भी खरीद ली. इसके बाद बच्चू पंडित ने हिस्सा-बाँट कर लिया
है इसलिए बुढ़ऊ पंडित अब पंडिताईन, बड़ी बहु और उसके दो बच्चों के साथ रहते हैं. अभी
भी कोई बुढ़ऊ पंडित को कथा सुनने के लिए बुला लेता है जिससे किसी तरह उनकी गुजर-बसर
चल रही है. तुम्हारी माँ को शायद यह सब पता है, इसीलिये वह बच्चू पंडित से चिढ़ती
हैं और बुढ़ऊ पंडित से ही कथा सुनना चाहती हैं”.
“मगर अधिकतर लोग तो बच्चू पंडित को ही बुलाते हैं कथा सुनने के लिए! क्या उनको
नहीं पता है बच्चू पंडित के बारे में?”.
“अब तो बनावटी लोगों का ही जमाना है विपुल. बच्चू पंडित एक तो मीठी-मीठी
बातें करने में माहिर हैं दुसरे उसके पास मोटरसाइकिल भी है जिससे वह खुद ही चला
आता है और अपना दक्षिणा का सामान भी ले जाता है, जबकि बुढ़ऊ पंडित को लाने-छोड़ने और
उनका सामान भी पहुँचाने जाना पड़ता है इसलिए भी लोग बच्चू पंडित को ज्यादा
प्राथमिकता देते हैं”. “वैसे भी कथा-पूजा करवाना चाहिए यह सोचकर लोग करवाते हैं. उन्हें
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कथा-पूजा करवाने वाले का आचार-विचार या चरित्र
कैसा है”.
विपुल सोचने लगा “तो क्या बुढ़ऊ पंडित
के मरने के बाद माँ कथा सुनना ही बंद कर देंगी!”.
(कृष्ण धर शर्मा -2015)
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