रविवार, 28 जून 2020
माणा- एक ऐसा गाँव जहाँ दिव्यता का निवास है
गुरुवार, 18 जून 2020
चटपटी चटनियां
चना दाल, टमाटर और डोसा
लाल चटनी बनाने की आसान रेसिपी, इन्हें बनाकर कुछ दिनों के लिए रख भी सकते हैं
चटनियां हर डिश का स्वाद बढ़ा देती हैं। यह अच्छी सेहत के लिए भी जरूरी हैं। आप चाहें तो इन्हें रोज बनाकर खाएं। अगर रोज चटनी बनाने का समय न हो तो इन्हें आप फ्रिज में बनाकर कुछ समय के लिए रख भी सकते हैं। ये चटनियां खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ ही आपको सेहतमंद रखने में भी मदद करती हैं।
चना दाल चटनी
सामग्री :
चने की दाल- 1
कप
मूंगफली- 1 बड़ा
चम्मच
नारियल- 1 कप
कद्दूकस किया हुआ
लहसुन की
कलियां- 5-6
हरी मिर्च- 2-3
दही- 1 कप
नमक-
स्वादानुसार
तड़के के लिए :
तेल- 1 बड़ा
चम्मच
राई- 1 छोटा
चम्मच
जीरा- 1 छोटा
चम्मच
कढ़ी पत्ता- 6-8
साबुत लाल
मिर्च- 2-3
हींग- चुटकी भर
ऐसे बनाएं :
कड़ाही में चने
की दाल धीमी आंच पर गुलाबी होने तक रोस्ट करें। इसमें मूंगफली डालकर एक मिनट और
चलाते हुए भूनें। फिर थोड़ा ठंडा कर लें। मिक्सर जार में दाल, मूंगफली, लहसुन, हरी मिर्च और
दही मिलाकर थोड़ा दरदरा पीस लें। फिर इसमें नमक मिलाएं। पैन में तेल गर्म करें।
इसमें राई और जीरा डालकर तड़काएं। कढ़ी पत्ता और लाल मिर्च डालकर हल्का भूनें। फिर
हींग मिलाएं और इस तड़के को चटनी पर डालें। स्वादिष्ठ चटनी स्नैक्स या खाने में
साइड डिश के रूप में परोसें।
डोसा लाल चटनी
सामग्री :
टमाटर- 3-4 कटे
हुए
लहसुन की
कलियां- 12 से 15
प्याज़- 1 कटा
हुआ
साबुत लाल
मिर्च- 4 से 6
कढ़ी पत्ता- 6-7
चने की दाल- 1
बड़ा चम्मच
धुली उड़द की
दाल- 1 छोटा चम्मच (बिना छिलके की)
नमक-
स्वादानुसार
तेल- 1 छोटा
चम्मच
बारीक सरसों- 1
छोटा चम्मच
ऐसे बनाएं :
पैन में तेल
गर्म करें। सरसों और कढ़ी पत्ता डालकर तड़काएं। इसमें चने की दाल और उड़द की दाल
डालकर हल्का-सा भूनें। लहसुन और प्याज़ डालकर एक मिनट तक भूनें। फिर टमाटर और नमक
डालकर मिलाएं और ढंककर पकाएं। टमाटर पानी छोड़ देगा इसलिए इसे बीच-बीच में चलाते
रहें। जब टमाटर का पानी सूखकर थोड़ा- सा बचे, तो इसे आंच से उतार दें और ठंडा कर लें। मिश्रण
को मिक्सर में बारीक पीस लें। चाहें तो इसमें ऊपर से सरसों, कढ़ी पत्ता और
हींग का तड़का भी लगा सकते हैं।
स्मोकी टमाटर
चटनी
सामग्री :
टमाटर- 3-4
नमक-
स्वादानुसार
घी या तेल -1
छोटा चम्मच
जीरा- छोटा
चम्मच
हींग- चुटकीभर
अदरक और हरी
मिर्च का पेस्ट- 1 छोटा चम्मच
हरा धनिया-
थोड़ा-सा, कटा हुआ
ऐसे बनाएं :
टमाटर पर हल्का-सा घी या तेल लगाकर धीमी आंच पर हर तरफ़ से घुमाते हुए भूनें। फिर प्लेट में निकालें और ऊपर से ठंडा पानी डालें। इससे टमाटर के छिलके आसानी से निकल जाएंगे। टमाटर को हाथों से या मिक्सर जार में मैश कर लें। इन्हें चिकना नहीं बल्कि थोड़ा दरदरा रखना है। फिर इसमें नमक अच्छी तरह से मिलाएं। अब पैन में घी गर्म करके जीरा तड़काएं। अदरक-मिर्च का पेस्ट डालकर भूनें। हींग डालकर इस तड़के को टमाटर में मिलाएं। चटनी में हरा धनिया डालकर चावल, रोटी, पूरी या मनपसंद व्यंजन के साथ परोसें।
(साभार-भास्कर)
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फलों और सब्जियों को ब्लीच से डिसइंफेक्टेंट करना है नुकसानदायक
फलों और सब्जियों को ब्लीच से डिसइंफेक्टेंट करना है नुकसानदायक, चीजों को
बैक्टीरिया फ्री करने का तरीका बता रही हैं डाइटीशियन डॉ अनामिका सेठी
कोविड - 19 के दौरान अपने
हाथों और घर को अल्कोहल बेस्ड सेनिटाइजर से डिसइंफेक्टेंट करना तो सही है। लेकिन
खाने की चीजों को डिसइंफेक्टेंट करने के लिए ब्लीच जैसे केमिकल का उपयाेग आपकी
सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
कोरोना वायरस के
कहर से बचने के लिए हम सभी कई तरह की सावधानी बरत रहे हैं। इन दिनों ऐसे लोगों की
भी कमी नहीं है जो खाने की चीजों से बैक्टीरिया खत्म करने के लिए सेहत को नुकसान
पहुंचान वाले डिस्इंफेक्टेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही वे एक सर्वे में ये
बात सामने आई है कि कई लोग फलों और सब्जियों को साफ करने के लिए ब्लीच तक का उपयोग
कर रहे हैं।
सेंटर्स फॉर
डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन की वेबसाइट पर जारी 19% लोगों पर किए गए सर्वे के अनुसार फूड आइटम्स को
बैक्टीरिया फ्री करने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल गलत है। इस सर्वे से ये 3 बातें साबित
होती है।
1. कोरोना वायरस पर हुई अब तक की किसी शोध से यह साबित नहीं होता कि खाद्य
सामग्री को डिस्इंफेक्टेंट करने के लिए ब्लीच का उपयाेग किया जाना चाहिए।
2. कोरोना काल में गले को बैक्टीरिया फ्री करने के लिए डाइल्यूट ब्लीच सॉल्यूशन
या साबुन के पानी से गरारे करना भी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
क्लीनर्स या
डिस्इंफेक्टेंट के ज्यादा इस्तेमाल से नाक या साइनस में जलन, सिरदर्द, पेट में दर्द, वॉमिटिंग या
सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
खाद्य सामग्री
को साफ करने का सही तरीके बता रही हैं जयपुर की सीनियर डाइटीशियन डॉ. अनामिका
सेठी।
1. गर्म पानी से धोकर साफ करें
सबसे पहले
मार्केट से लाई गई सब्जियां या फलों को सादे पानी से दो-तीन बार धो लें। उसके बाद
इन चीजों को नमक मिले हुए गर्म पानी में डालकर लगभग 15 मिनट तक रखें।
फिर किसी साफ कपड़े से पोंछ लें और अच्छी तरह सूखाने के बाद फ्रिज में रखें।
सब्जियों को साफ करने के दौरान मास्क पहनकर रखें ताकि इन फूड में पाए जाने वाले
बैक्टीरिया चेहरे तक न
2. सेंधा नमक और हल्दी का उपयोग करें
सेंधा नमक मिले हुए पानी से फलों और सब्जियों को
धोने से बैक्टीरिया दूर होते हैं। इसके लिये एक बाउल में पानी भरें। उसमें सेंधा
नमक डालकर 10 मिनट के लिये फल और सब्जियों को भिगो दें। फिर साफ पानी से धोकर खाने के लिये
प्रयोग करें। इसी तरह हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो बैक्टीरिया दूर
करने में मदद करते हैं।
डॉ अनामिका सेठी
(साभार-भास्कर)
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मंगलवार, 16 जून 2020
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में धर्म से अर्थ बड़ा
चीन और पाकिस्तान से हमारा सीमा विवाद कोई नया नहीं है। आए दिन इन सीमावर्ती भागों से कुछ न कुछ तनाव की खबरें आती ही रहती हैं अत: यह हमारी स्मृति में भी नहीं रहता कि इन दो देशों के अलावा एक और देश भी है जिससे हमारी सीमाएं साझा होती हैं और वह देश है नेपाल। हिमालय की तराईयों में बसा यह एक छोटा सा देश जो भारत के अलावा दुनिया का एकमात्र हिन्दू बहुल देश है। हिमालय को अपने मुकुट में धारण किया यह देश और इसके वासी गोरखा अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं और शायद इसलिए यह कभी भी किसी का उपनिवेश रहा।
नेपाल के प्रतिनिधि सभा में उस देश के नक्शे को बदलने के लिए संशोधन बिल को शनिवार को लगभग पूर्ण बहुमत से पारित किया गया। इस प्रक्रिया में अभी भी कुछ कदम बाकी हैं जैसे कि नेपाल के ऊपरी सदन की मंजूरी, राष्ट्रपति की मंजूरी इत्यादि।
उच्च सदन में भी सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है इसलिए इस बिल के अटकने की कोई संभावना नहीं है। हालांकि ओली ने वोट के दौरान सदन में बोलने से परहेज किया लेकिन उन्होंने भारत के साथ चर्चा का उल्लेख किया। पाकिस्तान और चीन के बाद पहली बार किसी पड़ोसी देश ने भारतीय क्षेत्र पर दावा किया है। जैसा कि ओली कहते हैं चर्चा का अगला महत्वपूर्ण चरण निकट भविष्य में होने वाला नहीं है। उनके लिए कोविद-19 कोई महत्वपूर्ण कारण नहीं है। दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ है कि भारत-नेपाल सीमा क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व से संबंधित सभी विवादास्पद मुद्दों को चर्चा के माध्यम से हल किया जाएगा; लेकिन भारत ने यह स्थिति ले ली है कि नेपाल का संविधान संशोधन समझौते का उल्लंघन करता है।
वह कुछ हद तक सही भी है। लेकिन यह भी प्रतीत होता है कि कोई भी देश आज इस तरह के विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा के परिणाम की प्रतीक्षा करने की इच्छा नहीं दिखाता है। इतिहास से पता चला है कि भूमि के स्वामित्व विवाद शायद ही कभी आपसी सहमति और संतुष्टि से तय होते हैं। कई देश अब इस तरह की चर्चाओं में बाधा की भूमिका निभा रहे हैं। नेपाल इस नियम का अपवाद नहीं है।
नेपाल के मुद्दे को भारत के संयम से ही निपटना चाहिए। भारत के चारों ओर विभिन्न 'पाकिस्तान' बनाने का चीन का व्यवसाय कोई रहस्य नहीं है। इसलिए उस देश पर चीन का प्रभाव सर्वविदित है। वास्तव में भारत और नेपाल के बीच 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा का केवल दो प्रतिशत भाग विवादित है। भौगोलिक दृष्टि से नेपाल एक लैंडलॉकड देश है जिसकी तीन ओर सीमाएं भारत के साथ और एक तिब्बत के साथ साझा होती हैं। कालापानी विवाद बहुत पुराना है। कालापानी एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत, चीन और नेपाल तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं।
स्पष्टता की कमी के कारण दुनिया के सबसे विवादास्पद हिस्सों में से एक है। 1923 में ब्रिटिश और नेपाली राजाओं के बीच संधि को फिर से मुहरबंद कर दिया गया था। हालांकि नेपाल ने तब कुछ मुद्दों को उठाया और अभी भी उन्हें उठा रहा है। चीन ने कभी भी लिपुलेख के भारत के स्वामित्व पर आपत्ति नहीं जताई लेकिन नेपाल के अनुसार यह क्षेत्र केवल विवादित नहीं है, यह नेपाल का है। हिमालय से आगे का बीहड़ इलाका अपनी नदियों और नालों के साथ सीमांकन और योजना दोनों के लिए एक प्रतिकूल है नतीजतन, भारत पाकिस्तान, चीन और अब नेपाल के साथ सीमा विवाद है।
ऐसा लगता है कि भारत द्वारा 8 मई को धारचूला-लिपुलेख सड़क का उद्घाटन करने के बाद नेपाल नाराज था जिसके पीछे की सच्चाई और कुछ है। यह सड़क कैलाश मानसरोवर की यात्रा के समय को बहुत कम कर देगी। इसके अलावा अन्य उपलब्ध मार्गों की तुलना में यह मार्ग भारतीय सीमा के 80 फीसदी होकर गुजरता है। उसका काम कई महीनों से चल रहा था पर उस समय नेपाल को कोई नाराजगी नहीं थी। 80 किमी लंबी यह सड़क उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से शुरू होती है और सीधे लिपुलेख घाट तक जाती है। लिपुलेख दर्रे के माध्यम से शेष यात्रा तिब्बत की सीमाओं और निश्चित रूप से चीन से होनी है।
लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस घाट की पिछली यात्रा बहुत कठिन थी। अब जबकि नई सड़क पूरी हो चुकी है तो दिल्ली से दो दिन में लिपुलेख पहुंचना संभव होगा। वर्तमान में, कैलाश दर्शन के लिए केवल दो वैकल्पिक मार्ग हैं, अर्थात नाथू ला-ला पास सिक्किम के माध्यम से और नेपाल के माध्यम से। दोनों मामलों में 80 प्रतिशत यात्रा चीनी सीमा से होकर जाती थी। विशेष रूप से ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत और चीन के बीच व्यापार इस मार्ग से जारी है। नेपाल द्वारा लिपुलेख पर लिया गया आक्रामक रुख, हालांकि कुछ अप्रत्याशित और चौंकाने वाला है किंतु उनके पीछे बहुत से कारण हैं।
इस विवाद का नायक नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली को भारत के समर्थक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 1996 में महाकाली समझौते के समय नेपाल के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2007 तक, वह नेपाल के विदेश मंत्री थे और उन्होंने कभी भी इस तरह की अतिवादी भूमिका नहीं निभाई थी। इस समस्या मूल कारण 2015 में नेपाल सरकार द्वारा किए गए संविधान अनुसंधान और उस वजह से लगाए गए अघोषित आर्थिक नाकेबंदी है।
नेपाल में मधेसी समुदाय की काफी बड़ी मात्रा है, जिनकी जड़ें उत्तर प्रदेश और बिहार से जुड़ी हैं। नए संविधान ने उन्हें न्याय नहीं दिया ऐसा मानकर हमने एक प्रकार की अघोषित आर्थिक नाकाबंदी लगा दी, जिसने आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा दिया और अभूतपूर्व बिखराव पैदा कर दिया। इस वजह से सरकार और लोगों के बीच हमारे प्रति बढ़ते रोष को देखकर चीन ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए। चीन की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए उसके इस रुख से कोई अचरज नहीं होना चाहिए। आज चीन ने नेपाल में अरबों डॉलर का निवेश किया है।
माल, अस्पताल, सड़क से लेकर रेलवे तक प्रत्येक क्षेत्र में यहां चीन हावी है। नेपाल पेट्रोलियम ने 2015 में पेट्रो चाइना के साथ ईंधन आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, और आज यहां कई स्कूलों में चीनी मेंडेरियन भाषा की शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया है, ये कुछ उदाहरण चीन की नेपाल पर बढ़ती पकड़ को अधोरेखित करते हैं। बिना किसी परिणाम के कुछ दिनों बाद यह अघोषित आर्थिक नाकेबंदी खत्म तो कर दी गई किन्तु इस बीच चीन ने अपना दांव साध लिया। नेपाल में नेपाली रुपयों से ज्यादा भारतीय मुद्रा प्रचलन में है और उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यकायक की गई नोटबंदी और फिर नेपाल से 500 और 1000 के नोटों को न बदलने के फैसले ने नेपाल की आर्थिक रीढ़ को कमजोर कर दिया और चीन से मिली मदद के भरोसे पर आज नेपाल हमसे आंख तरेरकर बात कर रहा है। आज नेपाल में 100 रुपयों से बड़ी भारतीय मुद्रा स्वीकार नहीं की जाती।
इसके बाद डेमेज कण्ट्रोल के लिए मोदी ने नेपाल का दौरा किया, पशुपतिनाथ के दर्शन किये, किन्तु नेपाल को जिस वित्तीय सहायता या पैकेज की आवश्यकता थी, उस मामले में हमने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। भौगोलिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समानताओं के बावजूद भारत का नेपाल में वित्तीय निवेश बहुत कम है। विदेश नीति के एक जानकार की यह टिप्पणी विचारणीय है की जिस प्रकार भारत को राष्ट्रवाद के लिए पाकिस्तान की गरज पड़ती है उसी प्रकार राष्ट्रवाद के लिए भारत की गरज पड़ने लगी है।
एक समय तक हिन्दू राष्ट्र होने के कारण नेपाल हमारे लिए गर्व का विषय हुआ करता था किन्तु हाल की घटनाओं ने साबित कर दिया कि धर्म से ज्यादा दो देशों के बीच के संबंधों में प्रत्येक देश के आर्थिक हितसंबंध सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। हमें इन तथ्यों पर विचार कर तुरंत उचित कदम उठाने होंगे। आज तक केवल भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने नेपाली प्रतिनिधि सभा के निर्णय पर बात की है उस जिम्मेदारी को एक केंद्रीय मंत्री को उठाना चाहिए। 'नेपाल के साथ कोई और बातचीत नहीं' की भूमिका केवल भारत के बारे में नेपाली लोगों के संदेह को बढ़ाएगी।
तुषार अ. रहटगांवकर
(साभार -देशबंधु)