शनिवार, 15 अगस्त 2020

अवांछित

तुम बनाओ अच्छे-अच्छे मकान
बड़ी-बड़ी साफ़-सुथरी कालोनियां
उनमें बनें ख़ूबसूरत बाग़-बागीचे
जिसमें सुबह की सैर पर आ सकें
संभ्रांत और आभिजात्य लोग
मगर यह भी ध्यान रखना कि,
उन कालोनियों, बाग़-बागीचों में
घुसने न पायें गंदे कपडे पहने हुए
भूखे-नंगे और फटेहाल गरीब लोग
नहीं तो तुम्हारी आभिजात्यता को
पहुँच सकती है चोट, हो सकती है आहत
तुम बनाओ अच्छी-अच्छी चमचमाती
और बेहद ही साफ-सुथरी मखमली सड़कें
जिस पर चल सको तुम और तुम्हारे जैसे
सभ्य, संभ्रांत और आभिजात्य लोग
हाँ मगर यह भी ध्यान रखना कि,
उसमें घुसने न पायें कोई भी ठेलेवाले
फेरीवाले, सब्जीवाले या रिक्शेवाले
नहीं तो पड़ सकती है बाधा, रूकावट
तुम्हारे बनाये नियमों, कानूनों में
तुम्हें हो सकती है एलर्जी
ऐसे लोगों को देखकर
जो हैं तुम्हारी बनाई हुई
व्यवस्था में अनचाहे अवांछित

       (कृष्ण धर शर्मा, 04.01.2020)

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