कितने
ही चेहरे खिल उठे होंगे
सूखे
सावन के बाद हुई
भादों
की इस भारी बारिश में
कितने
ही अरमानों को आज
पंख
मिल गए होंगे
भादों
की इस भारी बारिश में
कितने
ही तो भजिये खाकर
इतराते
होंगे, इठलाते होंगे
भादों
की इस भारी बारिश में
कितने
ही कवि कवितायें
लिखते
होंगे इस बारिश पर
भादों
की इस भारी बारिश में
कितनी
ही कच्ची दीवारों ने
दम
तोड़ा होगा आज अपना
भादों
की इस भारी बारिश में
कितने
ही बेघर हुए होंगे आज
भादों
की इस भारी बारिश में
कितने
ही चूल्हे जले न होंगे
भादों
की इस भारी बारिश में
चूल्हे
को तकती आँखों को देख
कितनी
ही माएं होंगी उदास
भादों
की इस भारी बारिश में
(कृष्ण धर शर्मा, 19.08.2020)
Nice article
जवाब देंहटाएंreally helpful
Keep it up
Love you all
Thanks a lot bro