शनिवार, 15 अगस्त 2020

कुत्तों का रोना

कुत्तों को आज फिर खाना नसीब नहीं हुआ
रात से ही शुरू हुई बारिश देर शाम तक चली
बारिश जरा थमी तो लोग अंगड़ाई लेते हुए
जकड़न मिटाने अपने-अपने घरों से निकले
मगर बारिश ने उन्हें उससे भी कम वक्त दिया
जितना वक्त कर्फ्यू में मिल पाता है लोगों को
जरूरी सामानों की खरीददारी करने के लिए
भुनभुनाते हुए लोग फिर अपने घरों में घुस गए
कुत्तों को जो आशा मिली थी खाना मिलने की
बारिश शुरू होते ही ख़त्म सी हो गई
सुबह के भूखे कुत्तों से जब बर्दाश्त नहीं हुआ
तो फूट पड़ी उनकी रुलाई रोने लगे एक सुर में
घर की महिलाओं ने कहा अपने घर के पुरुषों से
कुत्तों का रोना बड़ा अपशकुन माना जाता है
जाओ उन्हें भगाओ अपने घर के सामने से जरा
पुरुषों ने भी उठाई अपनी छतरी और निकले बाहर
खदेड़ दिए गए कुत्ते अपने घरों के सामने से
भूख से रोते कुत्ते जहाँ भी गए वहीँ से भगाए गए
सब डर रहे थे कुत्तों के रोने से अपशकुन से
किसी को भी गलती से यह ख्याल नहीं आया
कि यह रोते हुए कुत्ते कहीं भूख से तो नहीं रो रहे...

                 (कृष्ण धर शर्मा, 14.08.2020)

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