शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

लिखना बाकी है

सिद्धांत और वैचारिकता पर

लाखों कविताएं लिखकर

जब हम कवि बना चुके होंगे

एक नैतिक और बौद्धिक संसार

जहां पर नहीं होगा किसी भी तरह का

कोई भी गलत या अनैतिक काम

सब लोग रहेंगे अपनी मर्यादा में

जिओ और जीने दो के सिद्धांत

का विधिवत पालन करते हुए

आ चुका होगा जब रामराज्य

देश और दुनिया के हर कोने में

तब एक अजीब सी उदासी

छा चुकी होगी कवियों के जीवन में

कि अब क्या लिखें हम!

अब क्यों लिखें हम!

जबकि हमारे लिखने का

पूरा हो चुका है उद्देश्य

इसी चिंता और कशमकश में

पसीने से तरबतर उमस भरी रात में

बेचैनी से करवट बदलते हुए

अचानक गिर पड़ता है कवि

अपनी चारपाई से नीचे और

खुल जाती है अचानक से उसकी नींद

अचानक हुए इस घटनाक्रम से उबरकर

जब समझता है कवि

कि देख रहा होता है सपना

वह मानवता की भलाई के

तब वह लेता है छैन की सांस

कि चलो अभी तो बहुत सारी

कविताएं लिखना बाकी ही है न!

               कृष्णधर शर्मा 5.10.24

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