मैं बेरोजगार हूं
मैंने न जाने कितने आवेदन किये
कितने ही लोगों से निवेदन किये
जाने कितने ही दफ्तरों के चक्कर काटे
कितनी ही गलियों की खाक छानी
न दिन को दिन माना
न रात को रात मानी
न जाने कितने ही जूतों के घिस गये तले
फिर भी मैं और चलने को तैयार हूं
क्योंकि मैं बेरोजगार हूं.(कृष्ण धर शर्मा,2000)
मैंने न जाने कितने आवेदन किये
कितने ही लोगों से निवेदन किये
जाने कितने ही दफ्तरों के चक्कर काटे
कितनी ही गलियों की खाक छानी
न दिन को दिन माना
न रात को रात मानी
न जाने कितने ही जूतों के घिस गये तले
फिर भी मैं और चलने को तैयार हूं
क्योंकि मैं बेरोजगार हूं.(कृष्ण धर शर्मा,2000)
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