मंगलवार, 9 अगस्त 2011

हम मजदूर हैं

ऐ महलों में रहने वालों

हम भी तो इन्सान हैं

मगर जानें क्यों फिर भी

हम सदा ही गुमनाम हैं

ये जो तुम्हारे महल खडे़ हैं

हमारे पुरखे ही इनकी नींव मे गडे़ हैं

ये तुम्हारे ऐशो आराम के सामान

सब हम ही तो बनाते हैं

मगर क्या कभी हम इनका

जरा सा भी सुख ले पाते हैं

इतना सब बनाकर भी

हम इनसे बहुत दूर हैं

करें हम कितनी भी मेहनत

आखिर हम मजदूर हैं.(कृष्ण धर शर्मा,1998)

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