गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको


अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको

मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने

ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन

कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।

बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’

शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।
                                                            क़तील शिफ़ाई 

1 टिप्पणी: