शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

रोते रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की


अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

वस्ल की रात ना जाने क्यों इसरार था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की

उड़ते उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते रोते बैठ गयी आवाज़ किसी सौदाई की.
                                                                 कतील शिफ़ाई 

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