समाज की बात - Samaj Ki Baat
"जिंदगी ख़ूबसूरत है, बस जीना आना चाहिए" *कृष्णधर शर्मा*
गुरुवार, 16 मई 2013
वो फ़िराक और विसाल कहाँ?
वो फ़िराक और विसाल
कहाँ?
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ?
थी वो एक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई
_
ए-ख़याल कहाँ?
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ?
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ?
मिर्ज़ा ग़ालिब
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें