निर्वाण ही सत्य बाकी सब असत्य
अव्याकृत
का अर्थ है जो व्याकरण-सम्मत नहीं है। जब भगवान बुद्ध से जीव, जगत आदि के
विषय में चौदह दार्शनिक प्रश्न किए जाते थे तो वे सदा मौन रह जाते थे। ये
प्रसिद्ध चौदह प्रश्न निम्नांकित हैं।
1-4. क्या लोक शाश्वत है? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?
5-8. क्या जगत नाशवान है? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?
9-11. तथागत देह त्याग के बाद भी विद्यमान रहते हैं? अथवा नहीं? अथवा दोनों? अथवा दोनों नहीं?
11-14. क्या जीव और शरीर एक हैं? अथवा भिन्न?
उक्त
प्रश्न पर बुद्ध मौन रह गए। इसका यह तात्पर्य नहीं कि वे इनका उत्तर नहीं
जानते थे। उनका मौन केवल यही सूचित करता है कि यह व्याकरण-सम्मत नहीं थे।
इनसे जीवन का किसी भी प्रकार से भला नहीं होता। उक्त प्रश्नों के पक्ष या
विपक्ष में दोनों के ही प्रमाण या तर्क जुटाए जा सकते हैं। इन्हें किसी भी
तरह सत्य या असत्य सिद्ध किया जा सकता है। यह पारमार्थिक दृष्टि से व्यर्थ
है।
उक्त
संबंध में बुद्ध ने कहा है कि भिक्षुओं! कुछ श्रमण और ब्राह्मण शाश्वतवाद
को मानते हैं। दृष्टियों के जाल में और बुद्धि की कोटियों में फँसने के
कारण ये लोग इन मतों को मानते हैं। तथागत इन सबको जानते हैं और इनसे भी
अधिक जानते हैं। किंतु तथागत सब कुछ जानते हुए भी जानने का अभिमान नहीं
करते हैं। इन बुद्धि कोटियों में न फँसने के कारण तथागत निर्वाण का
साक्षात्कार करते हैं।- दीर्घनिकाय-ब्रह्मजालसुत्त
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