सोमवार, 11 अगस्त 2014

फुटपाथ के व्यापारी

शहर से बड़ा और महानगर से थोडा छोटा था हमारा शहर. इसी शहर में करीब १५०० व्यापारी फुटपाथ पर अपनी दुकानें लगाया करते थे जिसमें दैनिक उपयोग कि लगभग सभी वस्तुएं बड़ी-बड़ी दुकानों से कम दाम पर मिल जाया करती थीं जिससे सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती मंहगाई से आम जनता को कुछ राहत मिल जाती थी और हजारों फुटपाथी व्यापारियों को रोजगार भी मिलता  था मगर शहर के बड़े दुकानदारों और व्यापारियों को यह रास नहीं आ रहा था कि जनता को कम दामों पर सामान मिल रहा और हजारों लोगों को रोज़गार.
इस मुद्दे पर व्यापारी संघ की पहले भी कई बैठकें हो चुकी थीं मगर कुछ दयावान और समाजसेवी खाए-अघाए व्यापारियों के  हस्तक्षेप से फुटपाथी दुकानदारों पर कार्रवाई का मामला टाल दिया जाता था लेकिन इस बार की बैठक में फुटपाथियों के खिलाफ कार्रवाई का पूरा माहौल बनाया गया था. कई व्यापारियों ने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारा धंधा-पानी बंद ही समझो! ये फुटपाथी कई साल से अपनी दुकानें फुटपाथ पर लगा रहे हैं और इनका अपना संघ भी बन चुका है जिसकी सरकार से ये मांग है कि फुटपाथ के किनारे ही छोटी-छोटी दुकानें बनाकर इन फुटपाथियों को नियमित किया जाए और अगर ऐसा हो गया तो हम बड़ी दुकान वाले अपनी दुकानों पर खाली बैठकर मक्खी मारा करेंगे. हमारी दुकानों पर फिर कोई नहीं आने वाला!. व्यापारी संघ की बैठक में उपस्थित लगभग सभी व्यापारियों ने उस व्यापारी का समर्थन करते हुए एक सुर में फुटपाथी व्यापारियों पर कार्रवाई की मांग करने का प्रस्ताव रखा और वह प्रस्ताव भारी बहुमत से पास भी हो गया. व्यापारी संघ की बैठक में तय हुआ कि फुटपाथी व्यापारियों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार और प्रशासन भी जनविरोध की वजह से जल्दी तैयार नहीं होगा इसलिए हमें अपने भविष्य के लाभ के लिए अभी कुछ पूँजी लगानी होगी. हमें रूपये इकट्ठे करके सरकार में बैठे कुछ लोगों और प्रशासन के कुछ अधिकारियों को देने होंगे तभी वह कार्रवाई करने को तैयार होंगे. बैठक में उपस्थित सभी व्यापारियों ने आपस में मिलकर चंदा किया और इकट्ठे किये हुए रुपयों को निश्चित लोगों तक पहुंचा दिया गया और तीसरे दिन ही प्रशासन द्वारा अवैध कब्जे की बात करते हुए भारी दल-बल के साथ पहुंचे अधिकारियों द्वारा हजारों फुटपाथी व्यापारियों को उजाड़ दिया गया. सारी कार्रवाई इतने आक्रामक अंदाज में की गई कि किसी को भी विरोध का मौका नहीं मिल पाया और बिना किसी बड़े विरोध के कथित अतिक्रमण विरोधी अभियान संपन्न हुआ और हजारों लोग एक ही झटके में बेरोजगार हो गए. हमारे शहर की फितरत के अनुसार इस कार्रवाई का विरोध होना तय था मगर आश्चर्य कि जनता कि तरफ से कोई भी विरोध या प्रदर्शन नहीं हुए और सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब हुआ जब अखबारों और मीडिया ने भी इस खबर को कोई तरजीह नहीं दी.
अब तो समझ में ही नहीं आ रहा था उन बड़े दुकानदारों की पहुँच हर जगह थी या हमारे समाज की मानवता और संवेदनाएं ठंडी पड़ चुकी थीं या ख़त्म हो चुकी थीं.............
कृष्णधर शर्मा 7.2014   

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