शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

पागल का घर


शाम के धुंधलके में
जबकि चिडियां वापस जा रही थीं
अपने घोंसलों में बच्चों के पास
गायें भी रंभाती हुई भागती सी
अपने छौनों के लिए
आलस भरी अंगड़ाई लेकर
जागने की तैयारी में थे उल्लू भी
पेड़ की शाखों पर उल्टे लटके हुए
दिनभर खेतों में काम करके
किसान भी लौट रहे थे घरों को
अपने हल और बैलों के साथ
कुछ बैलगाड़ियाँ भी लौट रही थीं हाट-बाजार से
और इन सबका इंतजार करती हुई
कुछ जोड़ी आँखें भी झांक रही सी
घरों की चारदीवारी से
अँधेरा गहराने लगा था अब तक
पहुँच चुके थे तब तक लोग अपने घरों में
चिडियां अपने घोसलों में
गायें अपने छौनों के पास
और पहुँच चुका था पागल भी
चाय-पकौड़ी वाले होटल के
बाहर बिछे तख़्त पर
दिनभर यहां-वहां भटकने के बाद 

                   (कृष्ण धर शर्मा, २०१६)

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