सोमवार, 26 सितंबर 2016

गुंजाइश



थक तो बहुत जाता हूँ
इस 12 घंटे की
ईमानदारी कि नौकरी में मैं
मगर यह सोचकर
तसल्ली भी मिलती है मुझे
कि अब अच्छी और गहरी
नींद तो आएगी मुझको
जो लाखों बेईमानों की
किस्मत में नहीं है
कभी-कभी
अपनी ईमानदारी पर
पछतावा भी होता है मुझे
कि देखो तो जरा
कितने आगे निकल गए हैं
मेरे ही साथ चलने वाले
मगर तसल्ली भी होती है
जब कुछ दूर चलने पर
मिलते हैं वही लोग
थके-हारे से जीवन के
पथरीले पहाड़ों पर
यही सोचते हुए से
कि रास्ते में छोड़ आये हैं
जो जीवन के सुनहरे पल
कि अब वापस लौटने की
नहीं बची है गुंजाईश
रत्ती भर भी!
          (कृष्ण धर शर्मा, 9.2016)

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