कुटिलताओं
और आशंकाओं के दौर में
सहजताओं
और सरलताओं को बचाए रखना
भले
ही इसमें अतिशय धैर्य की होगी आवश्यकता
मगर
कुटिलों के कुचक्रों से बचने के लिए
सहनशीलता
की पराकाष्ठा के भी पार
सहना
होगा तुम्हें उस ताप को उस अग्नि को
जो
तुम्हें तपकर अपनी आंच में बना देगी कुंदन
फिर
तुम हो जाओगे इतने खरे
कि
तुम्हें खोटा साबित करने के
तमाम
प्रयास होंगे असफल
बस,
तब तक तुम्हें बचाकर रखने होंगे
अपने
हृदय के किसी कोने में
आशाओं
के कुछ सुनहरी लौ वाले स्वप्नदीप
(कृष्ण
धर शर्मा, 22.2.2017)
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