"आघात जितना ही कठोर क्यों न हो, रुकावट न पड़ने से वह लगता नहीं। पर्वत-शिखर से फेंक देने से ही हाथ-पैर नहीं टूटते, टूटते हैं केवल तभी जबकि पैरों के तलवे के स्पर्श से कठोर भूमि उस वेग को रोकने लगती है। ठीक यही दशा हुई थी केष्टो की।"(मझली दीदी -शरतचंद्र)
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