"सारा कमरा निस्तब्ध हो उठा और इस प्रकार की नीरवता के बीच इतनी देर में मानो एक साथ ही सब कार्यों की कदर्य श्रीहीनता सबकी दृष्टि में आ गई। मानो बाजार में क्रय-विक्रय की वस्तु के संबंध में दो पक्षों में तीव्र कठोर मोल-भाव हो रहा था। जिसमें लज्जा, शर्म, श्री-शोभा की रत्तीभर गुंजाइश न थी। केवल दो व्यक्ति नग्न स्वार्थ को मजबूत मुट्ठी में पकड़कर छीन लेने के लिए खींचा-तानी कर रहे थे।" (दत्ता-शरतचंद्र)
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